प्रकाशकीय निवेदन
'सुखी बनो' पुस्तक परमश्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके कुछ पत्रोंका संग्रह है। इनमेंसे कुछ पत्र 'कामके पत्र' शीर्षकसे समय समयपर 'कल्याण' में प्रकाशित हुए हैं; कुछ उनके व्यक्तिगत पत्र भी जो अबतक कहीं प्रकाशित नहीं हुए थे, इसमें सम्मिलित कर लिये गये हैं । श्रीभाईजीका जीवन वैविध्यपूर्ण था । वे आदर्श पिता थे, आदर्श पुत्र थे, आदर्श पति थे, आदर्श मित्र थे, आदर्श बन्धु थे, आदर्श सेवक थे, आदर्श स्वामी थे, आदर्श आत्मीय थे, आदर्श स्नेही थे, आदर्श सुहद् थे, आदर्श शिष्य थे, आदर्श गुरु थे, आदर्श लेखक थे, आदर्श सम्पादक थे, आदर्श साधक थे, आदर्श सिद्ध थे, आदर्श प्रेमी थे, आदर्श कर्मयोगी थे, आदर्श ज्ञानी थे। इस प्रकार उन्हें लौकिक एवं पारलौकिक सभी विषयोंका सम्यक्रूपसे ज्ञान था, अनुभव था और यही हेतु है कि वे व्यवहार और परमार्थकी जटिलसेजटिल समस्याओंका समाधान बड़े ही सुन्दर और मान्यरूपमें कर पाते थे।
व्यक्तिके जीवनका प्रभाव सर्वोपरि होता है और वह अमोघ होता है। श्रीभाईजी अध्यात्मसाधनाकी उस परमोच्च स्थितिमें पहुँच गये थे जहाँ पहुँचे हुए व्यक्तिके जीवन, अस्तित्व, उसके श्वासप्रश्वास, उसके दर्शन, स्पर्श एवं सम्भाषणयहाँतक कि उसके शरीरसे स्पर्श की हुई वायुसे ही जगत्का, परमार्थके पथपर बढ़ते हुए जिज्ञासुओं एवं साधकोंका मंगल होता है । हमारा विश्वास है कि जो व्यक्ति इन पत्रोंको मननपूर्वक पढ़ेंगे, इनमें कही हुई बातोंको अपने जीवनमें उतारनेका प्रयत्न करेंगे, उनको निश्चय ही इस जीवनमें तथा जीवनके उस पार वास्तविक सुख और शान्तिकी उपलब्धि होगी।
विषय-सूची
1
सबमें एक ईश्वर या आत्माको देखनेपर ही दु:खनाश
7
2
प्रकृतिकी लीलाके द्रष्टा बनिये
10
3
भूलके लिये पश्चात्ताप तथा पुन: भूल न करनेकी
प्रतिज्ञासे भूल मिटती है
12
4
दो प्रश्नोंका उत्तर
14
5
अपने कर्तव्यका पालन कीजिये
17
6
शान्तिके लिये कर्तव्य
19
कमजोरियाँ और बुराइयाँ दूर हो सकती हैं
20
8
कुछ आवश्यक परामर्श
21
9
प्रेम तथा नम्रतासे फिर समझाइये
23
पत्नीका परित्याग उचित नहीं है
24
11
जगत् और जगत्के भोगोंमें सुख है ही नहीं
25
विपत्ति भगवान्का वरदान
27
13
सबमें एक ही आत्मा समझकर सबका हित करना है
29
पतिका धर्म
31
15
भगवान्को गुरु बनाइये
32
16
अनन्य श्रद्धाका स्वरूप
35
अपनी भूलके लिये क्षमा माँगना ऊँचापन है
39
18
हाड़मांसके पुतलेको भगवान्के आसनपर बैठाना पाप है
44
'हीन भावना ' नहीं आनी चाहिये
46
लाटरीएक प्रमाद
50
आध्यात्मिक जगत्में पतन
52
22
अध्यात्मशून्य भौतिक विज्ञानका परिणाम
मानवताका नाश
54
भगवान्के मंगलविधानमें संतुष्ट रहिये
56
सबमें एक ही भगवान् हैं
57
प्रत्येक व्यवस्थामें भगवान्का वरदहस्त
59
26
भगवत्कृपा किसपर है?
62
चार प्रकारके मनुष्य
64
28
आपपर बड़ी भगवत्कृपा है
67
प्रायश्चित्त
69
30
मैं भगवदिच्छासे ही 'गोरक्षामहाभियानसमिति' में
सम्मिलित हुआ
70
'गोरक्षामहाभियानसमिति ' में मैं क्यों सम्मिलित हुआ?
76
कानूनन गोवध बंद होना चाहिये
80
33
भगवत्कृपासे ही भगवत्प्रेमकी प्राप्ति
82
34
उत्थानके नामपर पतन
83
मानप्रतिष्ठा और पूजा आदिसे बचना चाहिये
86
36
मीठा जहर
88
37
'सदा विवेकको जाग्रत् रखें
91
38
व्यवहारमें ऊँची बात
97
अपनी स्थितिकी बात
100
40
प्रभु सदा जीवके साथ रहते है
102
41
भजन ही परम सम्पत्ति है
104
42
मृत्युपर विषाद या शोक करनेसे भला नहीं होता
105
43
मन आत्माका सेवक है
109
प्रत्येक स्थितिको सिर चढ़ाओ
110
45
उसकी छत्रछायामें रहें
112
श्रीकृष्ण कृपा करके मेरे दिलको मारकर मुझे
बेदिल कर दें
115
47
सुखी बननेकी कुछ महत्त्वपूर्ण बातें
118
48
मनुष्यजीवनका प्रयोजन भगवान् या
भगवत्प्रेमकी उपलब्धि
121
49
जगत् दुःखकी खान है
123
प्रभो! तेरी मंगल इच्छा सफल हो
124
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