पुस्तक के विषय में
हमारे प्राचीन ग्रंथों में मानव समाज के लिए ही समानता थी तथा जाति-पांति और ऊंच-नीच के भेदभाव नहीं थें । इन्हीं का प्रभाव रविदासजी पर पड़ा । चर्मकार जाति में जन्म पाकर रविदासजी ने निराश, दलित, पीड़ित वर्ग को नवजीवन और आशा एवं आश्वासन 'भरा व्यावहारिक संदेश दिया । उनकी सर्वप्रमुख देन 'मानव समानता' का विचार है ।
आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद एक समाजसेवक और राजनैतिक कार्यकर्ता रहे हैं । संत साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी । रविदासिया जाति में जन्म लेकर उन्होंने रविदास की विचारधारा का प्रचार किया । वह पंजाब के 'भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री एवं 'भारतीय संविधान सभा के भूतपूर्व सदस्य थे ।
प्रस्तावना
हमारे इस धर्म-परायण देश में समय-समय पर ऐसे महापुरुषों का प्रादुर्भाव होता रहा है जिन्होंने भारत के धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक इतिहास को अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण देन से समृद्ध किया है । ऐसे असाधारण व्यक्तियों में उन संतों और भक्तों के नाम प्रथम पंक्ति में आते हैं जिन्होंने हिदू-धर्म और संस्कृति के वास्तविक स्वरूप और गौरव को बनाए रखा एवं समाज के तिरस्कृत, उत्पीड़ित और निराश्रित लोगों को आदर, आश्रय और सांत्वना प्रदान करके ऐसे समाज की रचना का प्रयत्न किया, जिसमें सभी को समता और स्वतंत्रता के आधार पर जीवन का अधिकार मिल सके । ऐसे परम संतों में भक्त शिरोमणि श्री गुरु रविदासजी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है जिन्होंने चर्मकार जाति में जन्म लेकर भी पुरातन संस्कृति के सच्चे स्वरूप को निखारने का प्रयास किया और उसे युग-युगांतर तक बनाए रखने के लिए महान कार्य किया।
गुरु रविदासजी को 14वीं शती के उन संत कवियों में एक अग्रगण्य स्थान प्राप्त है जिन्होंने सहज और सरल भाषा में अपनी वाणी द्वारा भक्ति रस की पावन गंगा बहाई, मानव-मात्र के लिए समता का संदेश दिया, तत्कालीन भारत के करोड़ों अशांत लोगों को आश्वस्ति एवं शांति प्रदान की और अंधविश्वासों व ,असमानता से पीड़ित जन-मानस का उद्बोधन किया ।
रविदासजी जन्मजात संत थे । वे गृहस्थ जीवन के बंधनों में जकड़े रहने पर भी पूरे संत ही रहे। उन्होंने भक्ति-आदोलन को एक नई दिशा देकर उसे मानव-कल्याण और समाज-सुधार आदोलन का स्वरूप प्रदान किया, जिससे सामाजिक संगठन को अनोखी प्रेरक शक्ति मिली । इससे न केवल पुरातन संस्कृति की रहा हुई, अपितु मानवता को बचाए रखने में भी मदद मिली। फलत: ' 'मानव-मानव सभी समान'' की भावनाओं ने एक ऐसे जन-कल्पाणकारी आंदोलन का रूप धारण किया जिसमें कर्ममय जीवन को ही वास्तविक धर्म माना जाने लगा । रविदासजी ने ''कर्म ही धर्म है'' के सिद्धांत को अपनाकर गीता के इस आदेश की ही पुष्टि की है कि ईश्वर का आश्रय लेकर सदा कर्म करता हुआ मनुष्य भगवत-कृपा से अनश्वर परमपद को प्राप्त करता है (गीता 18,56 )। रविदासजी ने अपनी वाणी में कहा है कि-
जिहा सों ओंकार जप, हत्थन सों कर कार
राम मिलहिं घर आइ फेर, कहि रविदास विचार ।
नेक कमाई जय करहि, ग्रह तजि बन नहि जाय,
रविदास हमारो राम राय ग्रह महि मिलिहिं आय ।
सतगुरु रविदास की वाणी में कटुता नहीं, अपितु मधुरता और विनम्रता है । उन्होंने न तो किसी पर कठोर, आक्षेप किए और न व्यंग्य । वे कबीर के समसामयिक तो थे परंतु उन्होंने कबीर की भाषा का प्रयोग नही किया । वे मधुर स्वभाव के सच्चे, वैष्णव, 'अहिसक, निरभिमानी परमसंत थे, जिन्होने ,अनेक कठिनाइयों को सहकर भी भगवत-भक्ति का रास्ता नहीं छोड़ा और परिश्रम से अपनी रोजी-रोटी कमाई, साधु-संतों की सेवा की और ऐसे समाज की स्थापना के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे जहां सबको समानता, आत्मिक शांति और सुख मिल सके ।
रविदास ने भिन्न-भिन्न संप्रदायों तथा मतवाद के प्रभाव को आत्मसात करके अपने धर्म-प्रचार और समाज-सुधार अभियान को एक स्वतंत्र रूप दिया था जिसे हम मानवधर्म अथवा विश्वधर्म की संज्ञा दे सकते हैं । यहां न तो किसी कर्मकांड का बंधन है, न वर्ण तथा जाति पर आधारित कोई सीमा । गुरु रविदास की जनकल्याण की इस विचारधारा ने ही उन्हें सर्वजन श्रद्धेय संत बना दिया । संत शिरोमणि गुरु रविदासजी की जीवन-गाथाएं और उनकी अमृतवाणी 'आज के इस वैज्ञानिक के युग में भी भावहीन कठोर मानव हृदय को द्रवित और रस-प्लावित करने की क्षमता रखती है तथा पिछड़े वर्ग के करोड़ों लोगों को सांत्वना देकर उनका मार्गदर्शन करती है ।
महापुरुषों का जीवन और उनका अमर संदेश जन-साधारण के लिए ''रोशनी के मीनार'' का काम करता है अत: यह आवश्यक है कि जन-साधारण को देश की उन महान विभूतियों के विषय में जानकारी दी जाए ताकि वे जान सके कि हमारा देश किन-किन परिस्थितियों का सामना करता हुआ यहां तक उना पहुंचा है, जहां हम आज हैं ।
''राष्ट्रीय जीवनचरित'' के अंतर्गत यह जो गुरु रविदासजी की जीवनी पाठको को भेट की जा रही है, इसका उद्देश्य विद्वतापूर्ण और सर्वांगीण तरीके से रविदास का जीवन-वृत्त प्रस्तुत करना नहीं है, अपितु सर्वसाधारण को उस परम संत गुरु रविदास के विषय में कुछ जानकारी देना है, जिनकी पवित्र वाणी में निर्माणकारी तब, जीवन की पवित्रता, आचरण की शुद्धता, वासनाओं से मुक्ति, प्रभु से मिलन की तड़प, मानव प्रेम, उदारता, शील, क्षमा, संतोष, साधुता, विनम्रता, विवेकशीलता आदि अनेक विशेषताएं हैं जो आज के इस वैज्ञानिक युग के भटके हुए इंसान को प्रभावित करके उसे मानव से महामानव बनाने की क्षमता रखती हैं । संतों और भक्तों ने अपनी पवित्र वाणियों में जनता की भाषा का प्रयोग करके उन्हें 'अपना अमर संदेश दिया है । जिन शाश्वत मूल्यों को इनवाणियों में व्यक्त किया गया है वे प्रत्येक देश, समाज और काल के लिए अपनी विशेष उपयुक्तता रखती हैं । रविदासजी की जीवन गाथा और उनकी अमृत वाणी भी जन-कल्याणी है । जन-कल्याण के लिए ही यह पुस्तक लिखी गई है ।
मैं न तो कोई विद्वान हूं और न अच्छा लेखक । ही, एक जन्मजात समाज सेवक जरूर हूं जिसका संबंध रविदास परिवार से है । मेरी समाज सेवा और रविदास में श्रद्धा एवं निष्ठा को देखकर ही 'नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया' ने मुझसे यह छोटी-सी पुस्तक श्री गुरु रविदास सभा, यू,के, के आग्रह पर लिखवाई है । इस पुस्तक को 'नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया ने छापने का निश्चय करके हमारे समाज की एक बहुत बड़ी सेवा की है जिसके लिए मैं अपने समाज की ओर से आभार प्रकट करता हूं । मुझे आशा है कि जिस श्रद्धा और भावना से प्रेरित होकर मैंने यह पुस्तक लिखी है, उसी भावना से इसे पाठक-वृद देखेंगे और जहां कहीं कोई भूल देखें, उसे ठीक करके मुझे सूचित करेंगे ताकि उसका सुधार कर सकूं ।
विषयनुक्रम
1
रामानंद का भक्ति-आदोलन और गुरु रविदास
2
गुरु रविदास-जीवन
7
3
गुरु रविदास वाणी की विशेषताएं एवं विचारधारा
32
4
गुरु रविदासजी की भक्ति भावना तथा भक्ति साधना
38
5
गुरु रविदासजी की समाज को देन
45
6
रविदास वाणी
साखी भाग
49
पद भाग
56
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