बाल-पुस्तक माला की श्रृंखला में प्रस्तुत यह लघु पुस्तिका रोचक और शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ आज के संदर्भ में अत्यंत उपयोगी भी है। प्रथम कहानी "गुरु-दक्षिणा" आज के विकृत होते जा रहे गुरु-शिष्य सम्बन्धों को देखते हुए बहुत ही उपयुक्त और आवश्यक है क्योंकि इस प्रकार के दृष्टांत बाल-मन के ऊपर अपना एक अनूठा संस्कार छोड़ जाते हैं जो उन्हें तात्कालिक वातावरण के प्रवाह में भटक जाने से बचा सकते हैं। दूसरी कहानी दान-पुण्य आदि का अभिमान न करने और सच्चे साधु-महात्माओं का समुचित आदर-सत्कार करने की प्रेरणा देती है। तीसरी कहानी एक संत की चिन्ता-रहित जीवन शैली का परिचय देती है जिसके सम्मुख राजमहल का सुख और ऐश्वर्य भी तुच्छ दर्शाया गया है। साथ ही परमात्म-चिन्तन का जीवन में कितना ऊँचा स्थान है यह लक्ष्य भी इससे स्पष्ट होता है। चौथी कथा भक्तों के लिए परम हितकारी है क्योंकि भक्त अभिमान के पतन का सबसे बड़ा हेत् बनता है।
इस प्रकार कुल मिलाकर ये दृष्टांत जीवन की दिशा को बदलने में बहुत ही सहायक सिद्ध हो सकते हैं यदि इनका व्यापक पठन-पाठन हो। श्रीसतपाल जी महाराज के समय-समय और स्थान-स्थान पर दिए गए प्रवचनों में से इन्हें संग्रहीत किया गया है। इस बाल-पुस्तक माला के प्रकाशन की प्रेरणा भी उन्हीं से मिली है और उन्हीं की कृपा का यह प्रसाद प्रेमी पाठकों के हित के लिए प्रस्तुत है।
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