मनुष्य एक सामाजिक, बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है। इसी के आधार पर वह संसार के अन्य प्राणियों से विल्कुल भिन्न है। वह बुद्धि के बल पर ही समाज के पर्यावरण और अन्य प्राणियों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। निर्देशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति उसकी अन्तर्निहित शक्तियों से अवगत होकर उनका उपयोग अपने और समाज के हित में कर सके।
मानव जीवन एक जटिल जीवन है। इन जटिल समस्याओं से हम अपना निर्णय स्वयं लेने में, अपना पथ-प्रदर्शन करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं इन्हीं कारणों से निर्देशन की आवश्यकता होती है। परामर्श अकेले और व्यक्तिगत रूप से व्यक्तिगत शैक्षिक, व्यावसायिक समस्याओं में सहायता प्रदान करना है जिससे सभी सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने गुरू की भूमिका का निर्वाह करते हुए तथा अर्जुन की चेतना पर प्रहार करते हुए उन्हें उपदेश के रूप में परामर्श और निर्देशन दिये हैं। श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा व्यावहारिक राजपथ है जिस पर आरूढ़ होकर सामान्य जन निरन्तर ऊपर उठते हुए, अध्यात्म के शिखर तक सहज रूप से पहुंच जाते हैं। कर्म की उर्जा, भक्ति की सरसता और ज्ञान की सात्विक स्थिरता उसमें एक बिन्दु पर स्थित है। इसलिए गीता को विश्व का सर्वश्रेष्ठ व्यवहार शास्त्र कहा गया है। मनुष्य हृदय में इस संघर्ष के उपस्थित होने पर मनुष्य जिस प्रकार अपना रथ सुनिश्चित कर सके, यही है गीता का यक्ष प्रश्न।
गीता में अर्जुन मन का और श्री कृष्ण सात्विक बुद्धि के प्रतीक है। यदि मन सात्विक एवं परिनिष्ठित बुद्धि अर्थात विवेक के निर्देशन में अपना कर्त्तव्य कर्म अहंकार और कामना को त्यागकर करे तो मन का सारा संघर्ष और द्वन्द्व समाप्त होकर परम शान्ति प्राप्त की जा सकती है। इस दृष्टि से देखा जाये तो श्रीमद्भगवद्गीता निर्देशन और परामर्श का एक अथाह कोष है। इसमें एक कुशल परामर्शदाता व निर्देशक की भांति श्री कृष्ण ने अर्जुन को निर्देशन व परामर्श के साथ सम्पूर्ण जीवन की वास्तविकता सिखा दी।
निर्देशन-परामर्श के शाश्वत मूल्यों की आवश्यकता आज जीवन के हरक्षेत्र में है। यदि निर्देशन परामर्श के शाश्वत मूल्यों की सम्पूर्ण प्रक्रिया भारतीय परिस्थितियों व सामाजिक वातावरण के अनुरूप होगी, तो उससे हम अधिक लाभान्वित होंगे। निर्देशन और परामर्श जितने विस्तार से गीता में दृष्टिगोचर होता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि निर्देशन व परामर्श, शिक्षण प्रक्रिया के स्वरूप का अध्ययन श्रीमद्भगवद्गीता में किया जाये। क्योंकि संसार के घनघोर विपत्ति, संकट, क्षोभ, भय और निराशा आदि का समाधान गीता में निहित है। गीता न केवल आध्यात्मिक साधकों का मार्गदर्शन करती है, बल्कि इस लोक में उत्तम जीवन जीने तथा सुख-शान्ति प्राप्त करने का मार्ग भी सुझाती है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12491)
Tantra ( तन्त्र ) (986)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1890)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1093)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23031)
History ( इतिहास ) (8222)
Philosophy ( दर्शन ) (3378)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist