नम्र निवेदन
आज समाजमें जो एक महापाप रूप दूषित परम्परा प्रचलनमें आ गयी है और लोगोंमें जो एक अजीब रिवाज जैसा चल पड़ा है उसके गम्भीरतम दुष्परिणामोंको ध्यानमें रखकर श्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराजने सभी स्त्री पुरुषों तथा भाई बहनोंको ठीक दिशा निर्देश देनेके लिये तीन अलग अलग शीर्षकोंके माध्यमसे अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त किये हैं । उनकी विशेष उपयोगिताको ध्यानमें रखकर एक स्वतन्त्र पुस्तक प्रकाशित की गयी है । मातृशक्तिका घोर अपमान, दहेज प्रथासे हानि तथा ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी इन तीन शीर्षकोंमें उपनिबद्ध स्वामीजीके उत्कृष्ट विचार लोक कल्याणके लिये तथा लोगोंको सही मार्ग दिखलानेके लिये प्रस्तुत किये गये हैं । इस पुस्तकमें स्वामीजी महाराजने स्त्री पुरुषोंको उनके कर्तव्य अकर्तव्यका उचित बोध कराते हुए उनके द्वारा जाने अनजाने किये जा रहे दुष्कर्मोंके प्रति सचेत किया है और शास्त्रोंकी क्या आज्ञा है, क्या करणीय है, क्या अकरणीय है, उसे बताते हुए उसी भारतीय सनातन परम्पराका अनुकरण, अनुसरण करनेके लिये विशेष जोर दिया है । पाप पुण्यकी परिभाषा करते हुए नित्य पुण्यकर्मोंके सदनुष्ठानकी ओर प्रयत्नशील रहनेका मार्ग बतलाया है ।
मूलत इसमें ब्रह्मचर्य पालन, युक्त आहार विहार, त्याग वृत्ति, निर्लोभिता, शास्त्र मर्यादित व्यवहार करने, गृहस्थ जीवनकी सच्ची शिक्षा तथा कामनाके समूल उच्छेदकी शिक्षा दी गयी है । इसे पढ़ने तथा इसकी बातोंको अमलमें लानेसे जीवनमें अवश्य लाभ होगा एवं लोक परलोक सुधरेगा और सच्ची सुख शान्तिकी भी प्राप्ति होगी, ऐसा हमारा विश्वास है ।
विषय सूची
1
मातृशक्तिका घोर अपमान
5
2
दहेज प्रथासे हानि
19
3
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी
30
4
मातृशक्तिका तिरस्कार
37
मातृदेवो भव
45
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