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ग्रह और भाव बल: ग्रहो और भावो का सांख्यिक बल ज्ञात करने का अद्वितीय ग्रंथ (Graha aur Bhava Bal )

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Item Code: NZA250
Author: बेंगलोर वेंकट रमन (Banglore Venkat Raman)
Publisher: MOTILAL BANARSIDASS DELHI
Language: Hindi
Edition: 2015
ISBN: 9788120824409
Pages: 80
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch x 5.5 inch
Weight 100 gm
Fully insured
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100% Made in India
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Book Description
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ग्रह और भाव बल

 

इस पुस्तक के प्रकाशन का मुख्य ध्येय यही रहा है कि ज्योतिष के विद्यार्थी ग्रह, और भाव बल का ठीक-ठीक हिसाब लगा सकें जो शुद्ध ढंग से जन्मकुंडली की व्याख्या करने में सर्वथा आवश्यक है लेखक के अनुसार यह माना हुआ सत्य है कि शुद्ध गणित के बिना ठीक भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन कार्य है सफल भविष्यवाणी के लिये गणितीय ज्योतिष अपने आप में एक सहायक के रूप में कुछ निश्चित अवस्था तक महत्वपूर्ण है परन्तु इसमें अधिक लगना हानिकारक है क्योंकि वह व्यक्ति की अंतर्ज्ञान शक्ति को, जिसका समुचित विकास अत्यंत आवश्यक है, नष्ट करता है इसी कारण पुस्तक में ज्योतिषीय गणित के वही सिद्धान्त दिये गए हैं जो व्यक्ति को विश्वास के साथ भविष्य कथन में वास्तव में सहायक होंगे

 

हिन्दी अनुवाद को अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से मूल ग्रंथाकार की पुस्तक''A Manual of Hindu Astrology'' का उल्लेख जहाँ आया है उसका सार इस पुस्तक में यथास्थान (उदाहरणार्थ भाव साधन, संधि साधन, वर्ग साधन वर्गाधिपति, भुज साध , आदि) कोष्ठक ( 1 में दे दिया है भुज साधन में ग्रह को सायन बनाने में मूल ग्रंथकार ने अपने अयनांश का प्रयोग किया है जो चित्रा पक्षीय, अयनांश से भिन्न है हिन्दी के सभी पंचांगकार चित्रा पक्षीय अयनांश ही देते हैं। अत: पाठक इस अयनांश का प्रयोग कर सकते हैं।

 

लेखक परिचय

डॉ० बी० वी० रमन

 

डॉ० बी० वी० रमन, रमन प्रकाशन, बंगलौर के प्रबन्धक, साझेदार तथा ज्योतिष पत्रिका, जो १८९५ में स्थापित की गई थी, के मुख्य सम्पादक अपने जीवनकाल तक रहे वह ज्योतिर्विद् तथा ज्योतिष के अनेक क्र-थों के रचयिता थे उनके ग्रंथ स्रोत रूप में अन्य लब्धप्रतिष्ठित लेखकों द्वारा मान्य थे उन्होंने अनेक पुस्तकों, सम्भाषणों तथा शोध कार्यों द्वारा विद्जनों का ध्यान ज्योतिष-शास्त्र, नक्षत्र विद्या तथा खगोल शास्त्र की ओर आकर्षित किया और मनुष्य के जीवन में इन विधाओं के महत्त्व को स्थापित किया

 

प्रथम संस्करण की भूमिका

 

गणितीय ज्योतिष की किसी पुस्तक को भूमिका की आवश्यकता नहीं यह माना हुआ सत्य है की शुद्ध गणित के बिना ठीक भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन कार्य है भास्कराचार्य (महान् हिन्दू खगोलवेत्ता) तो यहाँ तक कहता है कि जो ज्योतिषी होना चाहता है उसे ग्रहों की ठीक-ठीक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के लिये गोलाकार खगोलशास्त्र तथा उससे संबंधित गोलाकार लम्बादि सिद्धान्तों से परिचित होना आवश्यक है

 

'एस्ट्रोलोजीकल मेगज़ीन' के अनेक पाठकों की निरन्तर माँग के कारण मैंने इस प्रकार की पुस्तक की आवश्यकता का अनुभव किया इस पुस्तक के प्रकाशन में मुख्य ध्येय यही रहा है कि -ज्योतिष के विद्यार्थी ग्रह, और भाव बल का ठीक-ठीक हिसाब लगा सकें जो शुद्ध ढंग से जन्मकुंडली की व्याख्या करने में सर्वथा आवश्यक है उत्साही पाठकों को मैं यह चेतावनी भी देता हूँ कि सफल भविष्यवाणी के लिये गणितीय ज्योतिष अपने आप में एक सहायक के रूप में कुछ निश्चित अवस्था तक महत्त्वपूर्ण है परन्तु इसमें अधिक लगना हानिकारक है क्योंकि वह व्यक्ति की अंतर्ज्ञान शक्ति को, जिसका समुचित विकास अत्यंत आवश्यक है, नष्ट करता है इस कारण मैंने इस पुसाक में ज्योतिषीय गणित के वही सिद्धान्त दिये हैं जो व्यक्ति को विश्वास के साथ भविष्य कथन में वास्तव में सहायक होंगे सब व्यर्थ की बातें छोड़ दी गई है

 

इस पुस्तक में मैंने श्रीपति का अनुसरण किया है मैं पूर्णत : आश्वस्त हूँ कि हिन्दू ज्योतिष के नियमों का विधिपूर्वक अध्ययन और प्रयोग पूर्णत : संतोषप्रद परिणाम देता है इसका मैंने अपनी अंग्रेजी पुस्तक A Manual of Hindu Astrology की भूमिका में वर्णन किया है जिसे पाठक देख लें

 

ग्रहों का चेष्टा बल जानने के लिये ग्रहों की मध्यम स्थिति, ग्रहों का शीघ्रोच्च साधन आदि श्री केदारनाथ दत्त कलकत्तावासी की पुस्तक The Book of Fate से लिये गए हैं जिनके लिये मैं उनका कृतज्ञ हूँ

 

पुस्तक में दिये सभी उदाहरणों में ३० विपलों या ३० विकला से कम चाप को छोड़ दिया गया है

मैं मानता हूँ कि पाठकों को ज्योतिष के मूलभूत सिद्धान्तों का ज्ञान है और उनमें जन्मकुंडली बनाने की योग्यता है जो किसी भी प्रामाणिक ज्योतिष पुस्तक से प्राप्त की जा सकती है यदि पाठक ने अभी तक A Manual of Hindu Astrology की पुस्तक नहीं खरीदी है तो इसकी एक प्रति प्राप्त कर ले क्योंकि इस पुस्तक में व्याख्या करते समय उस पुस्तक का निरन्तर उल्लेख किया गया है

 

पुस्तक में जो न्यूनता और दोष हैं उसके लिए मैं पाठकों से क्षमा प्रार्थी हूँ और उनसे सविनय प्रार्थना है कि अपने मूल्यवान् सुझाव दें जिन्हें आगामी संस्करण में सम्मिलित किया जायेगा

 

अनुवादकर्ता का कथन

 

मूल ग्रंथ का अंग्रेजी में प्रथम संस्करण ११४० में प्रकाशित हुआ इसके १३ संस्करण अब तक प्रकाशित हो चुके हैं जो ग्रंथ की उपयोगिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है गत वर्षों में श्री रमणजी के कुछ फलित ग्रंथों का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ उसी से प्रेरणा पाकर मैंने भी उनसे 'ग्रह और भाव बल' नामक ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करने की अनुमति माँगी इसकी स्वीकृति उन्होंने सहर्ष प्रदान की जिसके फलस्वरूप मूल ग्रथ का हिन्दी अनुवाद आपके समक्ष है

 

पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से मूल ग्रंथ में जहाँ उनकी पुस्तकA Manual of Hindu Astrology का उल्लेख आया है उसका सार इस पुस्तक में यथास्थान (उदाहरणार्थ भाव साधन, संधि साधन, वर्ग साधन वर्गाधिपति, भुज साधन, आदि) कोष्ठक [ ]में दे दिया है भुज साधन में ग्रह को सायन बनाने में मूल ग्रंथकार ने अपने अयनांश क। प्रयोग किया है जो चित्रा पक्षीय, अयनांश से भिन्न है हिन्दी के सभी पचांगकार चित्रा पक्षीय अयनांश ही देते हैं अत: पाठक इस अयनांश का प्रयोग कर सकते हैं

 

अनुवाद करने में मनुष्य द्वारा धर्मानुसार त्रुटि होना संभव है विद्वानों से सविनय प्रार्थना है कि जो त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हों उन्हें सूचित करने का कष्ट करें जिससे आगामी संस्करण में शुद्धता लाई जाए

 

विषय-सूची

प्रथम संस्करण (अंग्रेजी) की भूमिका

v

हिन्दी अनुवादकर्ता का कथन

vii

अध्याय

1

षड्बल

1

2

ग्रह- भाव फल का परिमाण

4

3

स्थान बल

9

4

दिग्बल

21

5

काल बल

24

6

चेष्टा बल

43

7

नैसर्गिक बल

54

8

दृग्बल

56

9

भाव बल

62

10

इष्ट और कष्ट फल

68

सारांश

70

सारणियाँ

1

अहर्गण

73

2

प्रथम जनवरी ले मास के अंत तक दिनों की संख्या

75

ग्रह और भाव बल

3

शेष के तुल्य वार

75

4

सूर्य की मध्यम दैनिक गति (अंशों में)

75

5

मध्यम कुज (कुज की मध्यम गति)

76

6

गुरु की मध्यम गति

77

7

शनि की मध्यम गति

78

8

बुध का शीघ्रोच्च

79

9

शुक्र का शीघ्रोच्च

80

 

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