दो शब्द
नाथ सम्प्रदाय की स्थापना एवं उसके योगियों के विषय में जनश्रुति है कि कलिकाल का प्रारम्भ होते समय कुसंग, कदाचार आदि के प्रभाव से उत्पन्न दु:ख-दारिद्रय, रोग-क्षोभ आदि कष्टों से कलियुग के लोगों को मुक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से भगवान् शंकर ने 'नाथ पंथ' की स्थापना करने का विचार किया था । देवाधिदेव के उक्त विचार को कार्यरूप में परिणत करने के हेतु ब्रह्मा एवं विष्णु भी सहमत हो गये । फलस्वरूप 1. कविनारायण, 2. हरिनारायण, 3. अन्तरिक्ष नारायण, 4. प्रबुद्ध नारायण, 5. द्रुमिल नारायण, 6. करभाजन नारायण, 7. चमस नारायण, 8. आविर्होत्रि नारायण तथा 9. पिप्पलायन नारायण त्रिदेवताओं केप्रति रूप इन नौ नारायणों ने क्रमश : 1. मल्मेन्द्रनाथ, 2. गोरखनाथ, 3. जाल-धरनाथ, 4. कानीफानाथ, 5. भर्तृहरिनाथ, 6. गहिनीनाथ, 7. रेवणनाथ, 8. नागनाथ तथा 9. चर्पटीनाथ के रूप में पृथ्वी पर अवतार ग्रहण कर नाथ पंथ की स्थापना एवं प्रचार-प्रसार के लोकोपयोगी कार्य किये ।
नौ नारायणों के उक्त सभी अवतार अयोनिसम्भव थे, अर्थात् इनमें से किसी का जन्म स्त्री के गर्भ से नहीं हुआ था । कोई मछली के पेट से, कोई अग्नि कुण्ड से, कोई हाथी के कान से, कोई हाथ की अंजलि से, कोई भिक्षा पात्र से, कोई नागिन के पेट से और कोई कुश की झाड़ी आदि से प्रकट हुआ था । ये सभी नाथ योग-विद्या, अस्त्र-शस्त्र विद्या, तप एवं समाधि आदि विषयों में पारंगत थे । पृथ्वी, आकाश, पाताल-सभी स्थानों में इनकी गति थी । परकाया प्रवेश, मुर्दे को जीवित कर देना तथा क्षण- भर में ही कुछ भी कर दिखलाने की इनमें अपूर्व क्षमता थी ।
महासती अनुसूया के पातिव्रत्य धर्म की परीक्षा लेने के लिए गये हुए ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव को जब बालक बन जाना पड़ा था, उस समय अनुसूया की प्रार्थना पर इन तीनों देवताओं ने उन्हें वरदान दिया था कि वे तीनों अपने-अपने अंश द्वारा अनुसूया के गर्भ से जन्म लेकर उनके पुत्र कहलायेंगे । समयानुसार ब्रह्मा के अंशरूप में चन्द्रमा, शिव के अंशरूप में दुर्वासा ऋषि एवं विष्णु के अंशरूप में भगवान् दत्तात्रेय का जन्म हुआ । यद्यपि भगवान् दत्तात्रेय मुख्यत : विष्णु के अंश से उत्पन्न हुए थे, फिर भी उनमें ब्रह्मा तथा शिव, इन दोनों देवताओं का अंश एवं रूप भी विद्यमान था । भगवान् दत्तात्रेय के तीन मुंह तथा छह हाथ हैं । विष्णु के चौबीस अवतारों में एक गणना ' दत्तात्रेय अवतार ' की भी की जाती है ।
भगवान् दत्तात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरु थे । नवनारायणों के अवतार रूपी मुख्य नवनाथों की दीक्षा भगवान् दत्तात्रेय के द्वारा ही हुई थी और उन्होंने सभी नाथों को अस्त्र? शस्त्र, मन्त्र तथा योग विद्या आदि का अभ्यास कराया था । नवनाथों में मल्मेन्द्रनाथ का स्थान सबसे मुख्य था: क्योंकि भगवान् दत्तात्रेय ने सर्वप्रथम उन्हीं को अपना शिष्य बनाया था । मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्यों में गोरखनाथ का नाम बहुत प्रसिद्ध है ।
नाथ योगियों की वेशभूषा में 1. मुद्रा, 2. धांधरी. 3. सुमिरनी, 4. आधारी. 5. कन्धा, 6. सोटा. 7. भस्म, 8. त्रिपुण्ड, 9. छड़ी तथा 10. खप्पर का स्थान प्रमुख है । कुछ योगी 1 मृगी, 2. चिमटा 3. त्रिशूल आदि भी धारण करते हैं । ये मस्तक पर जटाए रखते शरीर पर भस्म लगाते तथा कोपीन धारण करते हैं । मत्स्येन्द्रनाथ तथा गोरखनाथ के अनुयायी कान के मध्य भाग को फाड़कर उसमें मुद्रा (हाथी दात, हरिण का सींग अथवा किसी अन्य धातु का बना हुआ गोल छल्ला जैसा कुण्डल) पहनते है तथा जालन्धरनाथ एव कानीफानाथ के अनुयायी कान की लौर (निचले भाग) में छेद करके मुद्रा धारण करते हैं और कहीं कोई विशेष अन्तर इस समुदाय में नहीं पाया जाता ।
पूर्वोक्त नौ नाथों को अमर माना जाता है और पंथ के भक्तों द्वारा विश्वास किया जाता है कि ये सभी नाथ विभिन्न लोकों पर्वतों वनों तथा अन्य स्थानों में आज भी गुप्त रूप से रह रहे हैं तथा अपने प्रिय भक्तों को यदा-कदा दर्शन भी देते रहते हैं । इन नाथों के चमत्कारों की कहानियां तो भारतवर्ष के घर-घर में प्रचलित हैं ।
उक्त नवनाथों के उपरान्त चौरासी सिद्धों की परम्परा में अन्य योगियों ने भी भारतवर्ष तथा इतर देशों में नाथ पंथ का बहुत कुछ प्रचार किया था । नाथ पंथ की महिमा के साक्षी स्वरूप गोरखपुर आदि नगर, गोरक्ष क्षेत्र आदि स्थान, विभिन्न मठ एवं योगियों के समाधि स्थल आदि देश में यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं । प्रस्तुत पुस्तक में नाथ सम्प्रदाय, उसके मुख्य नौ नाथ तथा इस पंथ के अनुयायी कुछ अन्य योगियों के जन्म, कर्म, तप, चमत्कार तथा अन्य क्रिया- कलापों से सम्बन्धित सामग्री का संकलन विभिन्न गन्थों, दत कथाओं, लोकगीतों आदि के आधार पर किया गया है । यह विवरण ऐतिहासिक प्रमाणों की अपेक्षा नहीं रखता; क्योंकि श्रद्धालु- भक्तों के हृदय में अपने धर्म-सम्प्रदाय आराध्य अथवा महापुरुषों के प्रति शंका के लिए कोई स्थान नहीं होता । इसी दृष्टि से हमें भक्ति-वैराग्य-चमत्कार पूर्ण इस ग्रन्थ का अध्ययन एवं मनन करना चाहि ।
विषय-सूची
1
नवनाथ स्मरण
7
2
गुरु गोरखनाथ चालीसा
8
3
गुरु गोरखनाथ की आरती
11
4
नाथ और नाथ सम्प्रदाय
12
5
श्री दत्तात्रेय चरित्र
31
6
मत्स्येन्द्रनाथ चरित्र
60
गोरखनाथ चरित्र
109
जालन्धरनाथ चरित्र
145
9
श्री कानीफानाथ चरित्र
183
10
श्री भर्तृहरिनाथ चरित्र
191
श्री गहिनीनाथ चरित्र
215
श्री रेवणनाथ चरित्र
220
13
श्री नागनाथ चरित्र
232
14
चर्पटीनाथ चरित्र
252
15
चौरंगीनाथ चरित्र
264
16
श्री अड़बंगनाथ चरित्र
272
17
गोपीचन्द्रनाथ चरित्र
275
18
मीननाथ एवं श्री धुरन्धरनाथ चरित्र
277
19
करनारिनाथ एवं श्री निरंजननाथ चरित्र
286
20
दूरंगतनाथ चरित्र
295
21
धर्मनाथ चरित्र
301
22
माणिकनाथ चरित्र
302
23
निवृत्तिनाथ एवं श्री ज्ञाननाथ चरित्र
308
24
श्री गोरखनाथी का पर्यटन
330
25
विविध कथाएं
340
26
पूरण भक्त (बाबा चौरंगीनाथ)
349
27
गोरक्षपद्धति संहिता
359
28
सिद्धसिद्धान्तपद्धति:
427
29
गोरखबानी
514
30
उपासना खण्ड
533
नवनाथ-नवकम्
अथ नवनाथ स्तोत्रम्
नवनाथ-वन्दनाष्टक
नवनाथ स्तुति
गोरखवाणी
548
32
गोरख ज्ञान गोदड़ी
556
33
नवनाथ वाणी संग्रह
558
श्री चर्पटीनाथजी की सबदी
अथ सिध बंदनां लिष्यते
गोपीचन्द्रजी की सबदी
राजा रार्णी संबाद
बालनाथजी की सबदी
हणवतजी की सबदी
हणवतजी का पद
बाल गुंदाईजी सबदी (1-2)
भरथरीजी की सबदी
मछन्द्रनाथजी का पद
घोड़ाचोलीजी की सबदी
अजयपालजी की सबदी
चौरंगीनाथजी की सबदी
जलंध्री पावजी की सबदी
पृथीनाथजी की सबदी
34
गुरु गोरखनाथ कृत दुर्लभ शाबर मन्त्र
577
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