"ग़ालिब की आप बीती" सन् 1969 ई० में गालिब की मृत्यू की सौ सालः यादगार के मौके पर खुद मिर्जा "गालिब" की अलग-अलग तहरीरों (लेखों) की मदद से संकलित करके प्रकाशित की गई थी । इसे दिलचस्प तो होना ही था इसलिए कि उन शब्दों के पर्दे में खुद "गालिब" बोल रहे हैं। इस लिए यह आमतौर पर पसंद की गई, और एक दो साल में ही इसका पहला संस्करण ख़तम हो गया था, मगर दूसरे संस्करण की नौबत नहीं आई । अब दिसम्बर सन् 1997 ई0 में "ग़ालिब" की पैदाइश को पूरे दो सौ साल हो रहे हैं। उस के दो सौ सालः उत्सव के लिए गालिब इन्स्टीट्यूट नई देहली ने अनेक मन्सूबे बनाए हैं- प्रकाशन कमेटी ने जिन किताबों को इस मौके मर प्रकाशित करने का फैसलः किया उन में "ग़ालिब की आपबीती" भी शामिल । इसके लिए मैं ग़ालिब इन्स्टीट्यूट के सब ज़िम्मेदार हज्रात का शुक्रिया अदा करता हूँ । प्रकाशन कमेटी के चेयरमैन जनाब सय्यद मुज़फ्फर हुसैन बर्नी और उसके एक ज़िम्मेदार सदस्य जनाब शाहिद माहुली का ख़ासतौर मर आभारी हूँ कि इनकी तवज्जोह और दिलचस्पी से यह किताब प्रकाशित हो रही है।
ग़ालिब इन्स्टीट्यूट इस साल "गालिब" के दो सौ सालः जन्मोत्सव का आयोजन सर्वश्रेष्ठ पैमाने पर कर रहा है। इस मौके पर "गालिब" के मशहूर समकालीन शाइर "जफर", "जौक" और "मौमिन" पर एक रोज़ः सेमिनार आयोजित किये जा चुके हैं। अब 27-29 दिसम्बर सन् 1997 ई0 को "गालिब" पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित होगा। कोशिश की जा रही है कि इसमें हिन्दोस्तान के मशहूर गालिबयात के माहिरीन शामिल हों। इसके अलावः एक कुल हिन्द मुशाअरे का भी आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मुल्क भर के विश्वस्त और मशहूर शाईर शिर्कत करेंगे। "गालिब" के शायान-ए-शान एक बज़्म-ए-मौसीकी (काव्य गोष्ठी) का भी बन्दोबस्त किया जा रहा है। इन्स्टीट्यूट "ग़ालिब" और "गालिब" के ज़माने पर उर्दू ड्रामे स्टेज करने के लिए मुल्क भर में शुहरत हासिल कर चुका है। चुनांचे इस मौके पर भी एक नया और दिलचस्प ड्रामा पेश किया जायेगा। इसके अलावः गालिव इन्स्टीट्यूट का इस साल "ग़ालिब" पर बहुत सी किताबें प्रकाशित करने का भी मन्सूबः है जिस पर तेज़ी ओर मुस्तइद्दी से अमल किया जा रहा है।
किताबों के प्रकाशन के सिलसिले की एक कड़ी यह मुख़्तसर सी किताब "गालिब की आप बीती" संपादित डाक्टर निसार अहमद फारुकी साहब पेश-ए-खिदमत है। यहाँ यह बात काबिल-ए-ज़िक्र है कि सब से पहले "गालिब" की जीवनी मौलाना अल्ताफ हुसैन "हाली" ने "यादगार-ए-ग़ालिब" के नाम से लिखी थी। इसके बाद विभिन्न साहित्यकारों व आलोचकों ने इस विषय पर लिखा । जिनमें गुलाम रसूल "मेहर", शेख मुहम्मद इक्राम और मालिक राम मुम्ताज़ हैं। डाक्टर निसार अहमद फारुकी साहब ने "गालिब" की जेर-ए-नज़र जीवनी एक नये और अछूते अंदाज़-ए-बयाँ में लिखी है। इसकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका एक एक लफ़्ज़ खुद "ग़ालिब" का है। इसे बजा तौर पर "ग़ालिब की कहानी खुद उनकी ज़बानी" कहना मुनासिब होगा । इसे पहली बार रिसालः "नुकूश" (लाहौर) के "आप बीती नम्बर" (सन् 1994 ई०) के लिए संग्रहीत किया गया था ।
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