लोकविरसा किसी भी प्रांत की धरोहर होती है। इसकी मासूमियत में इतनी ताकत होती है कि जो प्राकृतिक आपदाओं और मानव द्वारा छेड़छाड़ के बावजूद भी जिन्दा रहती है। यह अन्नत तक चलने वाली लोकधरोहर है, जो कभी खत्म हो ही नहीं सकती।
हरियाणा की लोककथाओं में लोकनायक, जिन्न, भूतों, पिशाचों, राक्षसों तथा खौफनाक दरिन्दों से भिड़ने की क्षमता रखते हैं तथा अदृश्य शक्तियों से जीत प्राप्त करने का फन जानते हैं। यह लोककथाएं मनुष्य में जिज्ञासा तथा दिलचस्पी उत्पन्न करती हैं। किस तरह अंधेरी अनदेखी जगहों पर लोककथाओं का नायक खौफनाक जीव-जन्तुओं से भिड़ कर अपने वष में कर लेता है।
यह तिलिस्मी लोककथाएं आज भी पाठकों को भीतरी मन से प्रभावित करती हैं और सच ही वह उन तिलिस्मी कन्दराओं में विचरने लगता है।
हमारे बुजुर्ग ना तो किसी राजघराने से होते थे और ना ही बहुत धनाढ्य होते थे। उनमें अधिकतर मेहनतकश किसान या श्रमजीवी ही होते थे। उनके लिए लोकविरासत एक जुनून, एक चुम्बकीय आकर्षण .. तथा जीने का बहाना ही हुआ करता था।
कोई ज़माना था हम अपने दादा-नाना से कहानी सुनते थे, जिन्हें जम्मू-कश्मीर में बात सुनाना भी कहते हैं। इन्हीं लोककथाओं को हमने 'बातों' के रूप में जाने कितनी बार सुना होगा। हमारी लोकविरासत बहुत ही समृद्ध और गंभीर है, जिनमें आलौकिक आकर्षण तथा चुम्बकीय शक्ति के अनेक द्वार खुलते प्रतीत होते हैं।
हरियाणा की यह लोककथाएं हरियाणा के जनमानस और लोकधारा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा अभिन्न अंग हैं। लोककथाओं में एक तिलिस्मी दुनिया के अनेक द्वार स्वतः ही खुलते प्रतीत होते हैं। हमारी लोककथाओं के कथानक भी अद्भुत और तिलिस्म से भरे होते हैं। इनमें क्या-क्या नहीं होता। हमारी लोककथाओं में परियाँ, प्रेत, पिशाच, दैत्य, गिठमुठिए, बोलने वाले साँप, तोते, बिल्लियाँ, लोमड़ियाँ, इच्छाधारी नाग, उड़ने वाले घोड़े, शलेडे, रहम दिल मछलियाँ, रहस्यमयी पेड़, रहस्यमयी कुएं, रहस्यमयी नदी-नाले, रूप बदलने वाले जंगली जानवर, दरख़्तों की डालियों पर लटके साँप, चन्दन से महकते जंगल, ढोंगी साधु, रहम दिल राजा-वजीर, चोरों के काफिले और भी ना जाने क्या-क्या नहीं होता। यह सब हमें एक तिलिस्मी दुनिया में विचरने को विवश कर देते हैं।
यह कपोल कल्पित पात्र लोककथाओं की रूह होते हैं। यह कल्पित पात्र चाहे विज्ञान की कसौटी पर खरे नहीं उतरते लेकिन हमारी लोक विरासत ने इन्हें कभी विस्मृत नहीं होने दिया। 'एक बार की बात है' या 'बात बहुत पुरानी है' या 'बात बहुत पुरानी नहीं है' आदि शब्द सुनते ही एक तिलिस्मी और रहस्यमयी परिलोक, एक आलौकिक दुनिया के मायवी किस्सों वाला संसार मन की भीतरी तहों में जीवित होने लगता है।
जन्म : 29 दिसम्बर 1978 (पंजाब के शहर बटाला में)
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), एम.फिल., पी.एच.डी. (गुरु नानक विश्वविद्यालय, अमृतसर)
प्रकाशन : अमर अजाला, दिव्य हिमाचल, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक सवेरा, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी, उत्तर प्रदेश, परिकथा, हंस इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
कृतियाँ
कथाकार सतीश जमाली (लघुशोध ग्रंथ) अंधेरों के खिलाफ लड़ना है (कविता संग्रह) पंजाब का हिन्दी साहित्य और प्रमुख चिन्तक 'शिखरों का स्पर्शी', 'कविता कहो जिन्दगी' तथा 'काव्य विविधा' कविता संग्रहों में कविताएँ संकलित
मूलतः कवयित्री, कथाकार सैली बलजीत की ज्येष्ठ संतान, उदयीमान कलाशिल्पी अमितेश्वर सैली की ज्येष्ठ बहन। लेखन की शुरूआत घर के साहित्यिक माहौल से आरम्भ हुई। देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त। कविताओं में नारी चेतना तथा सामाजिक विषमताओं का चित्रण करने में दक्ष आकाशवाणी और दूरदर्शन जालन्धर से कविताएँ तथा वार्ताएँ प्रसारित । विश्वविद्यालय स्तर के सेमीनारों तथा कवि सम्मेलनों में भागीदारी ।
सम्मान : साहित्य-कला विकास परिषद्, बेगूसराय (बिहार) 2021, राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार 1995, दिशा साहित्य मंच सम्मान 2012, त्रिवेणी साहित्य अकादमी सम्मान (जालन्धर) 2017, पंजाब कला साहित्य अकादमी जालन्धर का युवा कवयित्री विशेष अकादमी सम्मान 2021
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