निवेदन
मनुष्य-जन्म केवल भगवत्प्राप्तिके ही लिये मिला है, यह बात सभी शास्त्र और महापुरुष कहते हैं। परन्तु इस संसारकी चकाचौंधमें मनुष्य इतना मुग्ध हो जाता है कि उसे अपने लक्ष्यका ध्यान ही नहीं रहता। श्रीमद्भागवतमें आया है कि गर्भमें मनुष्य जब आता है तब उसे अपने बीते हुए सौ जन्मोंके कर्मोंकी याद रहती है । वह भगवान्से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! मुझे गर्भसे बाहर निकालिये, मैं आपका स्मरण एवं भजन करूँगा। किन्तु इस प्रतिज्ञाको गर्भसे बाहर निकलकर यह मनुष्य भूल जाता है। प्रतिज्ञा भंग करना महान् पाप है। अपने जीवनका समय वह खाने- पीने और सोनेकी व्यर्थकी बातोंमें खर्च कर देता है। उन क्रियाओंमें उससे कितने पाप बनते हैं, इस ओर वह ध्यान ही नहीं देता। उन कर्मोंके फलस्वरूप उसे भविष्यमें महान् दुःखोंका भोग करना पड़ता है । इन सब बातोंको देखकर महापुरुषोंको बड़ी करुणा होती है। वे प्रयास करते हैं कि यह मनुष्य किस तरह भावी दुःखोंसे बचकर भगवान्की ओर दृढ़तासे लगकर भगवत्प्राप्ति कर ले एवं जन्म-मरणके चक्करसे छूट जाय। श्रीजयदयालजी गोयन्दका भी एक ऐसे ही महापुरुष थे। उन्होंने मनुष्योंके कल्याणके लिये अथक प्रयास किया। गीताप्रेसकी स्थापना की ताकि आध्यात्मिक साहित्य सस्ते मूल्यों में जनसाधारणको उसके कल्याणके लिये प्राप्त हो। वे स्वर्गाश्रम ऋषिकेशमें प्रतिवर्ष लगभग चार माह ठहरकर सत्संगकी व्यवस्था करते थे। आप स्वयं सत्संग कराते एवं अन्य महापुरुष और संतोंको बुलाकर सत्संग कराते थे। इसी प्रयासमें सन् 1944 के लगभग वटवृक्ष स्वर्गाश्रममें उन्होंने जो प्रवचन दिये उन्हें किसी सत्संगी भाईने लिख लिया था। उन प्रवचनोंमें उन्होंने जो बातें बतायीं वे सभी हमें भगवत्प्राप्ति करानेवाली हैं। उन बातोंका इस पुस्तकमें संकलन किया गया है।
खास बात यह है कि उन्होंने हमें चेत कराया है कि सामने जो वृक्ष खड़े हैं इनका कारण इनकी मनुष्य-जन्ममें असावधानी रही । यदि हम भी असावधान रहे, भजन-साधन नहीं किया तो हमारी भी यही दशा होगी। घरमें कलह कालरूप है। प्रतिकूलतामें प्रसन्न रहनेसे बहुत शीघ्र भगवत्पाप्ति हो सकती है । हमें मर्यादा एवं सभ्यतापूर्ण आचरण करना चाहिये। सत्यतापूर्वक व्यापार कितना लाभदायक है । भगवान्की विशेष दया माननेसे हर समय प्रसन्नता रह सकती है। हमें विश्वास है कि इनमेंसे एक प्रवचनके अनुसार भी अपना जीवन बना लें तो हमें भगवत्यप्राप्ति हो सकती है।
सभी पाठकोंसे विनम्र निवेदन है कि इन प्रवचनों को मननपूर्वक जीवनमें लानेके उद्देश्य से पढ़ें तो हमारा जीवन बहुत ऊँचा उठ सकता है।
विषय-सूची
1
भगवान्की विशेष दया माने
5
2
भगवन्नामकी महिमा
11
3
ध्यानकी विधि
19
4
भगवान्की लगन लगावें
27
महात्मा बनें
36
6
कलहसे बचे, भक्ति करे
51
7
साधककी क्रमश : उन्नति
58
8
सच्चे व्यापारकी विशेषता और महापुरुषोंकी बातें
77
9
प्रतिकूलतामें प्रसन्नतासे भगवत्प्राप्ति
104
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