भाषा किसी भी समाज में उसकी संस्कृति का अभिन्न अंग होती है। समाज में ज्ञान का प्रसार, ज्ञान को अर्थपूर्णता देने में भाषा सशक्त आधार होती है। जिस तेजी से सामाजिक परिवर्तन की गति बढ़ रही है, उसने बहुत कुछ बदला है और इस परिवर्तन के दौर में हमारी अभिव्यक्ति का आधार हमारी मातृभाषा भी बदलाव से अछूती नहीं रही। यह भी सच है कि ज्ञान की धरोहर को आगे बढ़ाने व नयी जानकारियों को सामाजिक संदर्भ में समझ सकने का आधार तैयार किए बगैर हम अपनी जड़ों से हिल जाएंगे अर्थात् भाषा की प्रगति हमारे राष्ट्र की प्रगति का आधार है।
देश में हिन्दी के सृजन में अनेक संस्थागत प्रयास हो रहे हैं। उन प्रयासों में एक प्रयास मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी का भी है, जो 1969 से अब तक उच्च शिक्षा हेतु पाठ्यपुस्तकें एवं संदर्भ सामग्री सुलभ कराने के प्रयास में कृत संकल्पित है। अकादमी का लक्ष्य तब पूरा होगा जब हमारे सम्पर्क की भाषा हिन्दी को हम सब मिलकर सशक्त बनाएं।
हिन्दी भाषा में लेखन का अहर्निश परिश्रम करने वाले अध्यापकों को मैं साधुवाद देता हूँ क्योंकि लेखन भाषा के सृजन का आयाम है। हमारा प्रयास सार्थक हो क्योंकि ज्ञान के विमर्श का श्रेष्ठ आधार हमारी भाषा ही हो सकती है। पुनः पठन पाठन का मजबूत आधार मातृभाषा में प्रदान करने में आप सबके सहयोग के लिए मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी की ओर से मैं सभी अध्यापकों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। साथ ही ऐसे ही सहयोग की सदैव अपेक्षा करता हूँ।
विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या विभिन्न नये विषयों के प्रति बढ़ती अभिरूचि के अनुरूप मौलिक लेखन की आवश्यकता भी निरंतर बढ़ रही है। अकादमी इन परिवर्तनों के अनुरूप प्रकाशन के कार्य को आपकी तत्परता और लेखन में सहयोग के बगैर पूरा नहीं कर सकती। अपना सहयोग प्रदान कर मातृभाषा के विकास के इस पुनीत कार्य में सहभागी बनें।
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