ग्रन्थ परिचय
अष्टम भाव एवं मारक ग्रहों द्वारा आयु की सीमा के निर्णय हेतु समय की सत्ता के जटिल एवं दुरूह बहुकोणीय समीकरण के सघन संज्ञान सूत्र और शोध सिद्धान्त आयु आकलन नामक इस कृति में अविष्ठित हैं जिन्हें अग्रांकित सोलह अध्यायों में विभाजित व व्याख्याति किया गया है 1 आयु आकलन 2 अष्टम भाव एवं आधिपत्य 3 बालारिष्ट योग 4 किशोरवस्था में अरिष्ट योग 5 बालारिष्ट भंग योग 6 गर्भवती युवती की मृत्यु 7 शिशु के माता पिता की मृत्यु सम्बन्धी ग्रहयोग 8 आयु की अवधि जीवन की परिधि 9 माकेश ग्रह संज्ञान प्रविधि 10 विभिन्न लग्नों के लिए मारकेश का विचार 11 जन्म नक्षत्र एवं ग्रह योग जीवन का संयोग 12 आयु निर्धारण में गोचर की भूमिका 13 मृत्यु के कारणों का अनुमान 14 मृत्यु का पूर्वाभास 15 असामयिक अकाल मृत्यु 16 व्याधि शमन एवं प्रबल मारकेश परिहार प्रावधान।
आयु आकलन में आयु निर्णय हेतु ऋषियों द्वारा प्रदत्त सिद्धान्तों को आधुनिक एवं व्यावहारिक प्रसंगों के निकष पर परखने एवं संस्कारित करने के उपरान्त जिज्ञासु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न लग्नों के आधार पर 100 से भी अधिक उदाहरणों द्वारा मारकेश निर्णय की प्रचलित प्रतिष्ठित तथा परंपरागत प्रविधि सहज और सरल स्वरूप में प्रस्तुत की गई है जो समस्त ज्योतिष प्रेमियों के लिए प्रबल पथ प्रदर्शन एवं दिग्दर्शिका सिद्ध होगी। विभिन्न नक्षत्रों के पृथक् पृथक् चरणों में जन्म होने तथा जन्मांग में विद्यमान बालारिष्ट अल्पायु मध्यायु दीर्घायु ग्रह योग आदि के अनुसार मारकेश निर्णय हेतु दशान्तर्दशा का सटीक परिज्ञान इस कृति का वैशिष्ट्य है जिसे व्यवहारिक धरातल पर परीक्षित प्रतिष्ठित करने के पश्चात् ही इसमें समायोजित किया गया है।
मृत्युकाल निर्धारण में गोचर के ग्रहों की प्रबल भूमिका आी उल्लेखनीय है।अकाल एवं असमय मृत्यु क्रूर काल के कराल कर द्वारा रचित दुर्दमनीय दारूण दु ख की असहनीय वेदना प्रदान करने में शनि मंगल और राहु कृत त्रिक भावों के पापाक्रांत होने की अवस्था के दुर्लभ ग्रहयोगों की व्याख्या एवं उदाहरण आयु आकलन के अध्ययन अनुभव अनुसंधान और अभ्यास का उल्लेखनीय पक्ष है।
आयु रकलन जीवन की अवधि के यथार्थ पर आधारित एक दुर्लभ परमोपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक शोध प्रबल है। आयु संदर्भित विषय पर सघन सामग्री के अभाव के कारण ही इस कृति के लेखन का दायित्व देश के प्रसिद्ध पुरस्कत बहुप्रशंसित तथा सत्तर शोध कृतियों के ग्रंथकार ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी एवं श्री टीपीत्रिवेदी ने वहन किया जो समस्त ज्योतिष प्रेमियों तथा जिज्ञासु पाठकों के लिए पठनीय अनुकरणीय तथा संग्रहणीय है।
लेखक परिचय
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश की प्रथम पक्ति के ज्योतिषशास्त्र के अध्येताओं एव शोधकर्ताओ में प्रशंसित एवं चर्चित हैं । उन्होने ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप संस्कारित तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने देशव्यापी विभिन्न प्रतिष्ठित एव प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओ मे प्रकाशित शोधपरक लेखो के अतिरिक्त से भी अधिक वृहद शोध प्रबन्धों की सरचना की, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, प्रशंसा, अभिशंसा कीर्ति और यश उपलव्य हुआ है जिनके अन्यान्य परिवर्द्धित सस्करण, उनकी लोकप्रियता और विषयवस्तु की सारगर्भिता का प्रमाण हैं।
ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश के अनेक संस्थानो द्वारा प्रशंसित और सम्मानित हुई हैं जिन्हें वर्ल्ड डेवलपमेन्ट पार्लियामेन्ट द्वारा डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलॉजी तथा प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद तथा सर्वश्रेष्ठ लेखक का पुरस्कार एव ज्योतिष महर्षि की उपाधि आदि प्राप्त हुए हैं । अध्यात्म एवं ज्योतिष शोध सस्थान, लखनऊ तथा द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी, दिल्ली द्वारा उन्हे विविध अवसरो पर ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास ज्योतिष वराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्य विद्ममणि ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एव ज्योतिष ब्रह्मर्षि ऐसी अन्यान्य अप्रतिम मानक उपाधियों से अलकृत किया गया है ।
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी, लखनऊ विश्वविद्यालय की परास्नातक हैं तथा विगत 40 वर्षों से अनवरत ज्योतिष विज्ञान तथा मंत्रशास्त्र के उत्थान तथा अनुसधान मे सलग्न हैं। भारतवर्ष के साथ साथ विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं । श्रीमती मृदुला त्रिवेदी को ज्योतिष विज्ञान की शोध संदर्भित मौन साधिका एवं ज्योतिष ज्ञान के प्रति सरस्वत संकल्प से संयुत्त? समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में प्रकाशित किया गया है और वह अनेक पत्र पत्रिकाओं में सह संपादिका के रूप मे कार्यरत रही हैं।
श्रीटीपी त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी एससी के उपरान्त इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की एवं जीवनयापन हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद मे सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने के साथ साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति तथा ज्योतिष और मंत्रशास्त्र के गहन अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना तथा इस समर्पित साधना के फलस्वरूप विगत 40वर्षों में उन्होंने 460 से अधिक शोधपरक लेखों और 80 शोध प्रबन्धों की संरचना कर ज्योतिष शास्त्र के अक्षुण्ण कोष को अधिक समृद्ध करने का श्रेय अर्जित किया है और देश विदेश के जनमानस मे अपने पथीकृत कृतित्व से इस मानवीय विषय के प्रति विश्वास और आस्था का निरन्तर विस्तार और प्रसार किया है।
ज्योतिष विज्ञान की लोकप्रियता सार्वभौमिकता सारगर्भिता और अपार उपयोगिता के विकास के उद्देश्य से हिन्दुस्तान टाईम्स मे दो वर्षो से भी अधिक समय तक प्रति सप्ताह ज्योतिष पर उनकी लेख सुखला प्रकाशित होती रही । उनकी यशोकीर्ति के कुछ उदाहरण हैं देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद और सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान एव पुरस्कार वर्ष 2007, प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट तथा भाग्यलिपि उडीसा द्वारा कान्ति बनर्जी सम्मान वर्ष 2007, महाकवि गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट, आगरा के डॉ मनोरमा शर्मा ज्योतिष पुरस्कार से उन्हे देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी के पुरस्कार 2009 से सम्मानित किया गया । द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी तथा अध्यात्म एव ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा प्रदत्त ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास, ज्योतिष वाराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्यविद्यमणि, ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एवं ज्योतिष ब्रह्मर्षि आदि मानक उपाधियों से समय समय पर विभूषित होने वाले श्री त्रिवेदी, सम्प्रति अपने अध्ययन, अनुभव एव अनुसंधानपरक अनुभूतियों को अन्यान्य शोध प्रबन्धों के प्रारूप में समायोजित सन्निहित करके देश विदेश के प्रबुद्ध पाठकों, ज्योतिष विज्ञान के रूचिकर छात्रो, जिज्ञासुओं और उत्सुक आगन्तुकों के प्रेरक और पथ प्रदर्शक के रूप मे प्रशंसित और प्रतिष्ठित हैं । विश्व के विभिन्न देशो के निवासी उनसे समय समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं।
अनुक्रमणिका
अध्याय 1
आयु आकलन
1
अध्याय 2
अष्टम भाव एवं आधिपत्य
13
अध्याय 3
बालारिष्ट योग
21
अध्याय 4
किशोरवस्था में अरिष्ट योग
103
अध्याय 5
बालारिष्ट भंग योग
115
अध्याय 6
गर्भवती युवती की मृत्यु
149
अध्याय 7
शिशु के माता पिता की मृत्यु सम्बन्धी ग्रहयोग
157
अध्याय 8
आयु की अवधि जीवन की परिधि
177
अध्याय 9
माकेश ग्रह संज्ञान प्रविधि
261
अध्याय 10
विभिन्न लग्नों के लिए मारकेश का विचार
299
अध्याय 11
जन्म नक्षत्र एवं ग्रह योग जीवन का संयोग
381
अध्याय 12
आयु निर्धारण में गोचर की भूमिका
435
अध्याय 13
मृत्यु के कारणों का अनुमान
463
अध्याय 14
मृत्यु का पूर्वाभास
513
अध्याय 15
असामयिक अकाल मृत्यु
533
अध्याय 16
व्याधि शमन एव प्रबल मारकेश परिहार प्रावधान
619
अध्याय 17
प्रबल मारकेश परिहार प्रावधान।
635
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