पुस्तक परिचय
एक्युपंक्चर और एक्युप्रेशर औषधिरहित, सरल, सुरक्षित एवं सस्ती चिकित्सा पद्धतियां हैं जो विभिन्न प्रकार के सामान्य तथा जटिल रोगों एवं विकारों में अत्यधिक प्रभावी हैं। ये चिकित्सा पद्धतियाँ अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ उपयोग में लाई जा सकती हैं और इसके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में एक्युपंक्चर को समझाने का प्रयास किया गया है और यिन यांग सिद्धांत और उसके प्रभावों का अध्ययन किया गया है, जोकि एक्युपंक्चर का आधार है। इसमें व्याधियों के कारणों और शरीर के अंगों के कार्यों का परीक्षण किया गया है तथा 14 चैनलों में पाए जाने वाले एक्युपंक्चर बिन्दुओं की प्रकृति और शरीर के विविध विकारों को दूर करने के लिए इन बिन्दुओं को क्रियाशील करने के उपायों के बारे में बताया गया है। इस संस्करण में शरीर के विभिन्न अंगों एक्युपंक्चर बिन्दुओं के वर्णन के साथ साथ, विशेष ऊतकों का इलाज करने के लिए एक्युपंक्चर बिन्दुओं का विवेचन किया गया है।
इस पुस्तक में एक्युप्रेशर तथा कुण्डलिनी ऊर्जा के सम्बन्ध पर भी चर्चा की गई है तथा एक्युपंक्चर चिकित्सकों के लिए महत्तवपूर्ण निर्देश दिए गए हैं जो बिन्दुओं पर सही तरीके से दबाव देने के बारे में जानकारी देते हैं।
निश्चित रूप से यह पुस्तक चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए तो उपयोगी सिद्ध होगी ही, साथ ही साथ उन लोगों के लिए भी जो कि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में रुचि रखते हों।
डॉ. रमा वेंकटरमन ने पर्यावरण सामाजिक शास्त्र में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की है और वे एक्युपंक्चर की प्रतिष्ठित प्रशिक्षिका हैं। इनके द्वारा एक्युपंक्कचर पर कई पुस्तकें सरल भाषा में लिखी गईं हैं।
इन्होंने ड्रॉमेटिक वर्जन ऑफ द सेवन मेज़र उपनिषदस् पुस्तक का सृजन किया है जिसमें मुख्य उपनिषदों को नाटक रूप देकर जनमानस को सरल भाषा में इन्हें समझने का अवसर दिया है। इसके अलावा इन्होंने लद्दाख हिमालयन ट्रेज़र नामक पुस्तक भी लिखी है जिसमें पर्यटन से सम्बन्धित सामाजिक सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर किया है।
प्रस्तावना
एस्युपंक्चर और एक्यूप्रेशर भारतीय मूल की औषधिहीन चिकित्सा है । परन्तु अब इन पर चीन की मुहर लग चुकी है क्योंकि इन्हें चीन ने प्रश्रय दिया है ।
यह चिकित्सा पद्धति आसान, सुरक्षित, सस्ती और बहुत ही प्रभावकारी है । यह दिन प्रतिदिन के जीवन में कई आम बीमारियों के इलाज के लिए तथा आपातकालीन स्थिति के मामलों में प्राथमिक उपचार हेतु और बीमारियों से बचाव के लिए बहुत लाभदायक है ।
इनसे जुड़ी हुई जानकारियों को समझने से स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने में मदद मिलती है । सस्ता होने की वजह से एक्यूपंक्चर एवं एक्यूप्रेशर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं । दवाइयों पर हो रहे खर्चों में कटौती करक उसी पैसे से लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है ।
डॉ० रमा वेंकटरामन एक प्रख्यात एक्यूपंक्चर चिकित्सक हैं । मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी इस विद्यार्थी ने इस किताब को संकलित करने में बहुत प्रयास किए हैं। मुझे आशा है कि इस विज्ञान के शिक्षार्थियों के लिए यह किताब बहुत लाभदायक होगी । मैं डॉ० रमा को यह किताब लिखने के लिए बधाई देता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ ।
लेखिका की कलम से
पिछले कुछ वर्षो से मैं अपने अन्दर बेचैनी अनुभव कर रही थी । अपने चारों तरफ लोगों को खतरनाक बीमारियों से घिरा पाकर मैंने अनुभव किया कि बहुत से लोग विवश होकर इन असहनीय कष्टों के साथ जी रहे हैं ।
बहुत से आधुनिक रोग जीवनपर्यत दवाइयों के बल पर केवल नियन्त्रण में रखे जा सकते हैं, जैसे कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा मनुष्य को विकलांग बनाने वाले रोग जैसे कि (स्पाँडीलाइसिस, अस्थमा) वात, व्याधि, दमा और कुछ हृदय से सम्बन्धित रोग जो और भी खतरनाक हैं । इन रोगों की चिकित्सा अधिक समय तक चलती है तथा महंगी भी है । मैंने अपने निकटतम साथियों को भी इन रोगों का शिकार होते देखा है ।
इसी कारण मैंने आधुनिक चिकित्सा शास्त्र का विकल्प ढूँढने का निश्चय किया । कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों जैसेकि योगासन, ध्यान, चुम्बक चिकित्सा, रत्न चिकित्सा, प्रतिबिम्ब (रिफ्लैक्सोलॉजी) चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, एक्यूपंक्चर, आदि का पता लगाने के बाद सस्ती, समझने में तथा प्रयोग करने में आसान चिकित्सा पद्धति को ढूँढ रही थी ।
प्राचीन काल से चीन तथा पूर्वी देशों में अधिकतर उपयोग में आने वाली एक्युपंक्चर प्रणाली का जब मुझे पता चला तब मेरी खोज पूर्ण हुई । इस शास्त्र से मैं कुछ सीधे साधे कारणों से प्रभावित हुई
1. यह प्रणाली प्रभावी होने के साथ साथ छोटे बड़े विभिन्न रोगों का तुरन्त निदान एवं निवारण कर सकती है ।
2. आम लोग आसानी से इस शास्त्र को समझ सकते हैं । थोड़ा बहुत समझाकर बताए जाने के बाद व्यक्ति किसी भी प्रकार के शारीरिक कष्टों में इसका उपयोग कर सकता है ।
3. यह आर्थिक रूप से बहुत ही सस्ता है । इसमें किसी भी प्रकार की दवा खाने की आवश्यकता नहीं होती । शरीर में केवल सही बिन्दुओं पर सही दबाव का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है ।
4. यह प्रणाली किसी भी प्रकार के दुष्परिणामों से मुक्त है । यह शास्त्र अन्य चिकित्सा पद्धातियों कै साथ (एलोपैथी, होमियापैथी, आदि) भी प्रयोग में आता है । एक्यूपंक्चर के प्रभाव से दवाओं की मात्रा कम की जा सकती है। इस शास्त्र के मूलभूत सिद्धान्त प्रयोग में कैसे लाए जाएं, यह समझाने का प्रयास मैंने इस पुस्तक में किया है । तुरन्त प्रभावित करने वाले इस बहुमूल्य चिकित्सा शाख को अधिकतम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया है ।
वाचकों को समझने में आसानी हो इसलिए अपनी पुस्तक में मैंने कई स्थानों पर अंग्रेज़ी शब्दों का भी प्रयोग किया है । कुछ शब्दों को अंग्रेज़ी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में दिया है । कई एक्यूपंक्चर की किताबें जिन शब्दों के लिए जो संक्षिप्त रूप प्रयोग करती हैं वही संक्षिप्त रूप यहाँ भी दिए गए हैं । पाठकों को अन्य अंग्रेजी किताबें पढ़ने तथा समझने में इस पद्धति के कारण आसानी रहेगी । उदाहरण के तौर पर फेफड़े फी धारा के आगे Lung लिखा है तथा Lu. भी लिखा है । इसी प्रकार यकृत की धारा के आगे Liver एवं Liv. भी लिखा है । पुस्तक में हर जगह इन्हीं संक्षिप्त रूपों फा जान बूझकर प्रयोग किया गया है । भाषाई तकनीकी क्लिष्टता न बड़े इसलिए जगह जगह कई मेडीकल टर्म्स को ज्यों का त्यों देवनागरी में प्रस्तुत कर दिया है तह ट्रिपल हीटर T.H. गवर्निंग वेसल Du एवं कन्सेप्शन वेसल Ren. कई रोगों के नाम भी अंग्रेज़ी में दिए हैं अथवा दोंनों भाषाओं में दिए हैं ।
vii
ix
1
विषय प्रवेश
2
एक्यूपंक्चर की समझ
सूइयों वाली पद्धति
3
एक्यूपंक्चर के प्रभाव
एक्यूप्रेशर एक्यूपंक्चर के बिन्दुओं द्वारा
4
दबाव बिन्दुओं का रचना विज्ञान
5
हाथ के प्रयोग से दबाव प्रदान करने के अन्य तरीके
7
उत्तेजित करने के अन्य तरीके
9
चेहरे के दबाव बिन्दु
11
सूचना केन्द्र (जाग्रत करने वाले)
14
अंगों की जानकारी के और तरीके
19
सरल प्रसव
24
ऑर्गन घड़ी
मूलभूत सिद्धान्त
28
रोगों के कारण
29
शरीर के विभिन्न अंग (इन्द्रिय)
30
यीन, यांग अंगों का कार्य
शक्ति धाराएँ
31
शक्ति धाराओं के मार्ग
32
यीनयांग का आपसी सम्बन्ध
33
6
शक्ति के बिन्दु
36
कार्य
शक्ति के बिन्दुओं का स्थान
37
चुन का माप
38
प्रत्येक धारा के विशिष्ट बिन्दु
39
शरीर मे स्थित तीन खजाने
40
आवश्यक रस
चौदह शक्ति धाराएँ
41
फेफडे
42
बडी आँत
45
जठर (आमाशय)
48
प्लीहा (अग्न्याशय)
52
हृदय
57
छोटी आँत
60
मूत्राशय
63
वृक्क (गुर्दे)
69
हृदय कवच
73
ट्रिपल हीटर
76
पित्ताशय
79
यकृत (जिगर)
84
गवर्निंग वेसल
87
कन्सेप्शन वेसल
91
हाथ पाँव की अँगुलियों पर धाराओं का उद्गम एवं समाप्ति
95
8
प्रभावी केन्द्र
96
दूरस्थ केन्द्र
98
विशिष्ट परिणाम केन्द्र
101
दर्द निवारक बिन्दु
उपशमन बिन्दु
102
समरूप शक्ति संवहन बिन्दु
103
प्रतिकारक शक्तिवर्धक
बलवर्धक बिन्दु
104
आपातकालीन बिन्दु
105
विभिन्न अंगों के रोग निदान करने का लक्षण
106
10
रोग एवं उनसे सम्बन्धित चिकित्सा केन्द्र
108
श्वसन तन्त्र सम्बन्धित रोग
हृदय तथा रक्तवाहिनियों की विकृति
110
जठर तथा आँतों से सम्बन्धित विकार
112
यकृत एवं प्लीहा के विकार
114
प्रजनन एवं मूत्र सम्बन्धी विकार
115
स्त्रियों के रोग
117
अस्थि सम्बन्धी विकार
118
चर्म तथा त्वचा रोग
121
कानों के विकार
123
आँखों की विकृति
124
अन्त स्राव सम्बन्धी विकृति
126
मानसिक विकार
128
चेता तन्त्र (नर्वस सिस्टम) सम्बन्धी विकार
130
स्नायु संस्थान (नर्वस सिस्टम) की अनैच्छिक क्रियाएँ
133
अतिरिक्त केन्द्र
134
12
कुण्डलिनी
136
13
पाठकों के लिए कुछ अनिवार्य सूचनाएँ
137
क्लिनिक के कुछ उदाहरण
139
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