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प्रभावी मानव सशक्तीकरण चुनौतियाँ एवं अनुकूल संभावनाएँ: Effective Human Empowerment: Challenges and Favorable Prospects

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Item Code: HBB244
Author: Edited By Bharti Rastogi
Publisher: Bharati Prakashan, Varanasi
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789391297381
Pages: 350
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.00x6.00 inch
Weight 510 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description
पुरोवाक

राष्ट्रीय सांस्कृतिक निधि की स्थापना जब 29 मार्च 1997 को की गई तो उसका उद्देश्य था कि सरकारी, गैर सरकारी एजेंसियाँ, निजी संस्थाएँ और व्यक्तियों द्वारा भारत के प्राकृतिक विरासत और समृद्ध संस्कृति की सुरक्षा किस प्रकार की जाए. उनका संरक्षण किस प्रकार हो कि इसका लाभ समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मिल सके। परिषद हेतु 24 सदस्य चुने गए और परिषद में दान करने के लिए आयकर की धारा में शत-प्रतिशत छूट दी गई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, विभिन्न सामाजिक संस्थाएं, गैर सरकारी स्वैच्छिक संस्थाएं इसके सदस्य बने, इसके पीछे मूल उद्देश्य यह था कि भारत के लोगों को प्रकृति का सहचर कैसे बनाया जाए अर्थात् जब व्यक्ति और प्रकृति में साम्य होगा तभी व्यक्ति असली खुशी प्राप्त कर सकता है। मानव विकास में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा का स्तर और जीवन स्तर के आधार पर रैंकिंग प्रदान की जाती है लेकिन क्या कभी हमने इस पर सोचा कि इन सारी चीजों में प्राप्य और अप्राप्य होने के बीच में कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो शायद इस समानुपात को घटाती और बढ़ाती है, वह समानुपात है स‌द्भावना रूपी सम्पत्ति और प्रकृति रूपी साम्य। वास्तव में किसी भी देश में स‌द्भावना के आधार पर निर्णय करें तो पायेंगे कि फिनलैंड, नार्वे जैसे देश आज इन सब सूचकांकों में जो काफी ऊपर है उसके पीछे उनकी स‌द्भावना ही मूल है। जब तक व्यक्ति के अंदर स‌द्भाव पैदा नहीं होगा और जब तक वह प्रकृति का सहचर नहीं होगा तब तक वह सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन में कहा गया था कि "स‌द्भावना एक मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्तियों में एकता, संगठन एवं शक्ति की भावना का विकास होता है, साथ ही उनमें एक समान नागरिकता की अनुभूति होती है"। अंततः इससे सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा मिलने के साथ राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वन्धुत्व की भावना का विकास होता है अर्थात् स‌द्भावना एक अदृश्य शक्ति है जो नैतिक मानदंडों पर किसी भी समाज, व्यक्ति अथवा राष्ट्र की प्रतिष्ठा को सुरक्षित करने का प्रयास करती है। भावना के मूल्य को अर्जित करना सामान्य बात नहीं है क्योंकि स‌द्भावना में समरसता, एकता, शांति और प्रेम जैसे मूल्य होते हैं जिसके अनेक लाभ है, परंतु इन्हें प्राप्त करने के लिए सतत संघर्ष, यहां तक कि अनेक पीढ़ियों के सतत् प्रयास के बाद भी प्राप्त नहीं हो पाती। स‌द्भावना में शांति और स‌द्भाव एक विशिष्ट भावना है जो व्यक्त की जा सकती है जिसमें सौहार्द और प्रेम के मूल्य अंतर्निहित रहते हैं परंतु आज प्रतिस्पर्धा ने इन मूल्यों को क्षरण कर दिया है, प्रतिस्पर्धा के तत्वों को किसी भी सामाजिक प्रक्रिया में अब निरंतर देखा जा रहा है। पेशेवर व व्यावसायिक क्षेत्रों में व्यापक रूप से इस प्रतिस्पर्धा ने स‌द्भावना के विकृत रूप को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। स‌द्भावना के मूल्य के विकास में किसी भी परिवार, समाज एवं राष्ट्र की विशेष भूमिका होती है क्योकि बचपन से जिस प्रकार का सामाजीकरण होता है, स‌द्भावना वही रूप धारण करती है। वैज्ञानिक आधार पर पिक्षा प्रणाली, सरकार की नीतियों, सामाजिक समूह, संविधान और नियम भी स‌द्भावना के लिए अपरोक्ष अथवा परोक्ष रूप से जिम्मेदार होते हैं परन्तु मानव विकास के लिए विश्व बंधुत्व की जिस आत्मीयता की जरूरत होती है वह व्यक्ति को उसके त्याग रूपी स‌द्भावना के साथ बंधुत्व रूपी सहभागिता के साथ और धनात्मक प्रतिस्पर्धा के साथ ही प्राप्त हो सकती है। तनाव और हिंसा कहीं भी स‌द्भावना में कोई स्थान नहीं प्राप्त कर सकती क्योंकि स‌द्भावना सदैव सकारात्मक प्रेरणा का विषय होता है किसी भी व्यक्ति में स‌द्भावना के गुण उसके उच्च चरित्र आदर्श मूल्य जैसे दया, परोपकार, उदारता, शिष्टाचार, शब्द-व्यवहार आदि मूल्यों से ही निर्धारित होती है।

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