हमारा भारतवर्ष जो प्राचीन काल में आध्यात्म शक्ति के कारण द्वजगद्गुरुल्ल, राजनैतिक शक्ति की दृष्टि से द्वचक्रवर्ती सम्राट्ल की उपाधि में सुशोभित था और आर्थिक शक्ति के कारण ही इसे द्वसोने की चिड़ियाल कहते थे।
यह एक गौरव की बात थी। भारतीय संस्कृति के अनुदानों की गाया इतिहास के पृष्ठों पर आज भी अंकित है। यह देश तीनों शक्तियों का केन्द्र था। हमारे मनीषी ज्ञान विज्ञान के भण्डार थे। वेद, पुराण, दर्शन, गीता रामायण, महाभारत में शक्ति के अकूत प्रमाण मौजूद हैं।
सृष्टि की रचना हेतु कहानी आती है कि भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेप शैय्या पर लेटे हुए थे तभी उनकी नाभि से कमल की उत्पत्ति हुई और देखते देखते ब्रह्मा जी का प्रादुर्भाव हुआ। आकाशवाणी द्वारा ब्रह्मा को एक हजार वर्ष तक गायत्री महामंत्र जप करने का निर्देश मिला और वे जप ध्यान में लीन हो गये। एक शक्ति उपस्थित हुई जिसे गायत्री शक्ति (सूक्ष्म शक्ति) इसी शक्ति के तीन भाग हुये सत, रज, तम के रूप में इन्हीं को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन देवता के नाम से जाना गया। इन्हीं को ह्रीं, श्रीं, क्लीं, बीजरूप में शास्त्रों ने स्वीकार किया जिसका वर्णन महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली के रूप में दुर्गा सप्तशती में विस्तार पूर्वक दिया गया है।
इन शक्तिप्रवाहों की ध्वनियों के चमत्कार ही संसार को नये नये शोध के आयामों तक पहुँचाते हैं जो विज्ञान की ही मुख्य धारा है। हीं शक्ति से योगी, भक्त, परमार्थपरायण आदि को आत्मिक शक्ति का लाभ प्राप्त होता है। श्रीं- वैभव प्रदान करती है जिसमें व्यवसायी उद्योगपति सुधारक आदि संलग्न हैं। क्लों-भौतिक विज्ञानी, अन्वेषक अपनी खोजों से आज आगे बढ़ रहे हैं। प्राचीन काल में योगी कुण्डलिनी शक्ति (क्लों) का उच्चस्तरीय लाभउठाते थे।
उक्त शक्ति के जागरण और शब्द प्रवाह हेतु सूक्ष्म ब्रह्म ओंकार की ध्वनि के प्रवाह को समझना होगा। हमारे ऋषि मुनि शक्ति केन्द्रों, षट्चक्रों, ग्रन्थियों, मातृकाओं भ्रमरों को जगाते थे। इनकी जागृति से जो शक्ति पैदी होती थी, उसका उपयोग लोकमंगल के कार्यों में नियोजित करते थे।
यह प्रक्रिया ऐसे ही थी जैसी आज विज्ञान की शोधों से सबके सामने आई है। आज की शक्तियों पर तो भारी भरकम खर्च करने पड़ते हैं; पर ऋषि-योगियों को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता था। आज आकाशवाणी, मोबाइल टावर, इन्टरनेट, ट्रांसमीटर (ध्वनिविक्षेपण यन्त्र) से जोड़ दिया जाता है, एक दूसरे से वार्तालाप किया जा सकता है। दोनों ओर की विद्युत् शक्तियाँ समश्रेणी में होने के कारण आपस में जुड़ जाती हैं और लाभ उठाया जाता है; ठीक उसी प्रकार आत्मिक शक्ति की साधना द्वारा भी शरीर के अन्दर के सुसुप्त केन्द्रों का जागरण किया जाता है और सूक्ष्म शक्ति के प्रवाह से जोड़ा जाता है। रावण अपनी शक्ति को लंका में बैठा अहिरावण से जोड़ता है जो अमेरिका में था। संजय महाभारत की प्रत्येक घटना जो कुरुक्षेत्र घट रही थी, उसे देखकर धृतराष्ट्र को सुना रहा था। इस प्रकार आत्मिक एवं भौतिक शक्ति का लाभ प्राप्त करने की विधा हमारे योगियों, साधकों के पास रहती थी, जिससे परोपकार के कार्य सम्पन्न होते थे। कहीं कहीं इनका उपयोग संकीर्ण या विनाश में भी किया जाता रहा इसे लोगों ने तंत्र का नाम दिया।
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