बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. शिवाजीराव कदम (सर) एक अत्यन्त ही सुलझे हुए व्यक्तित्व, शिक्षाविद् एवं परोपकारी गुणों से युक्त एक अत्यन्त लब्धप्रतिष्ठ शख्सियत हैं। वर्तमान में ये भारती विद्यापीठ डीम्ड युनिवर्सिटी के कुलपति हैं। विश्व विद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य रह चुके हैं (यु.जी.सी.) एवं फार्मेसी कॉन्सिल ऑफ इंडिया के माननीय सदस्य हैं। आपका जन्म 15 जून 1951 को सोनसळ में हुआ। यह स्थान सांगली तथा खानापुर तहसील के पास स्थित हैं यहाँ से बहुत अच्छी प्रतिभा के धनी लोग इस प्रदेश में से निकल कर आये जिन्हें भारतवर्ष में अनेकों संस्थानों, सरकारों, आन्दोलनों तथा समाजिक क्रांति में सहयोग दिया। जिन में से कुछ नाम श्री विठ्ठलराव देशमुख, श्री यशवंतराव चव्हान (पूर्व मुख्यमंत्री), आदरणीय श्री वसन्तदादा पाटिल (पूर्व मुख्यमंत्री), कान्तिसिंह, नाना पाटिल जो एक समय के ऐतिहासिक, क्रांतिकारी व्यक्ति रहे हैं। अन्य भी बहुत सारे व्यक्तित्व के धनी सांगली जिला से श्रेष्ठ भारतीय रहे हैं। सभी क्षेत्र में से एक श्रेष्ठतम व्यक्तित्व के धनी शिक्षा क्षेत्र में बहुत अग्रणी रहे हैं, उनका शुभ नाम डॉ. पतंगराव कदम साहेब है। ये भारत सरकार में सहकारिता-मंत्री भी रहे, अनेक विभाग के कर्ता रहे जैसे शिक्षा, आय, उद्योग और शिक्षा क्षेत्र में सफलतम क्रांतिकारी भी रहे। इन्हीं की बदौलत आज शिक्षा क्षेत्र में भारती विद्यापीठ, पुणे का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। इस युनिवर्सिटी की कई शिक्षण संस्थायें हमारे देश में कई जगह चल रही हैं। डॉ. पतंगराव कदम साहेब भारती विद्यापीठ शिक्षण संस्थान के परम संस्थापक हैं।
डॉ. पतंगराव कदम साहेब जी की बदौलत सांगली जिले का वह इलाका जिसे सोनहीरा खोरा कहा जाता है वह वास्तव में सोना, हीरा यानि अमूल्य रत्नों की भांति ही आज उन्नति और प्रगति के पथ पर अग्रसर है। डॉ. पतंगराव कदम साहेब के राजनीति में आने से पूर्व जहाँ इस इलाके में साईकिल भी नहीं पाई जाती थी, वहीं आज इनके राजनीति में आने के बाद अनगिनत चार पहिया वाहन अर्थात मोटरें और कारें उपलब्ध हैं। हर घर का कोई न कोई सदस्य सरकारी नौकरी पर कार्यरत है। प्रति व्यक्ति आय में बहुत सुधार हुआ है।
सिंचाई के साधनों को उन्नत बनाया गया है। कदम साहब द्वारा चलाई गई ताकारी योजना तथा टेवू जल-योजना दोनों ही खूब कामयाब हुई हैं। टेबू जल-योजना की वजह से इस इलाके में खूब पानी बहता है। एक तरीके से यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इनकी बदौलत इस इलाके में पानी नहीं दूध की गंगा बहती है। डॉ. पतंगराव कदम साहेब तथा इनके बड़े भाई श्रीमान मोहनराव कदम जी कि द्वारा इस इलाके में अनेकों उद्योग-धंधे आरम्भ किये गये जैसे- सोनहीरा चीनी मिल, सोनहीरा कपड़ा मिल, सोनहीरा डेयरी फार्म, पोलट्री फार्म, भारती बाजार, भारती बैंक इत्यादि। इन उद्योगों-धंधों की बदौलत इस इलाके ने दिन दुगनी तरक्की की है।
उनके ही छोटे भाई डॉ. शिवाजीराव कदम इन शिक्षण संस्थाओं का सफल संचालन और मार्गदर्शन करते हुए उन्हें बुलन्दियों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। मैं डॉ. अमरजीत देशमुख इसी क्षेत्र से पल-बढ़ कर कार्यरत हुआ हूँ और यदि आज कुछ भी श्रेष्ठ कर सका हूँ तो आदरणीय डॉ. पतंगराव कदम साहेब और डॉ. शिवाजीराव कदम जी की वजह से हूँ। इन्होंने तथा इनके अनुभव-जनित ज्ञान की अग्नि ने ही सदा मुझे अग्नि में जलाकर कुन्दन बनने के लिये प्रेरित किया है। अपनी जन्मस्थली तथा अपने क्षेत्र के प्रति अत्यधिक लगाव एवं प्रेम संसार में प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर्मन में निहित होता है। सभी प्रकार मेरे अन्तरमन की असीम गहराइयों में आदरनीय डॉ. पतंगराव कदम साहेब तथा उनके परिवार एवं लघु भ्राता श्रेष्ठ डॉ. शिवाजीराव कदम जी के प्रति अपार आदर एवं श्रद्धा भाव रचे-बसे हैं। जब भी कभी मुझे इनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है मुझे इनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता है और बहुत सारे गुणों का भण्डार मुझे इनसे अनायास ही मिल जाता है।
मेरी जानकारी के अनुसार आज जिन बुलन्दियों के शिखर पर भारती विद्यापीठ है, इस बात का श्रेय इनके बड़े भ्राता कर्मठ संस्थापक डॉ. पतंगराव कदम साहेब जी को जाता है। डॉ. पतंगराव कदम साहेब के अन्य अंतरंग सहयोगियों और कन्धे से कन्धा मिला कर कार्य करने में एक अन्य महत्वपूर्ण शख्सियत डॉ. शिवाजीराव कदम का नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्योंकि छोटे भाई होने के नाते भी डॉ.
शिवाजीराव कदम ने अपने अदम्य साहस, अक्षुण-योग्य श्रेष्ठताएँ एवं शिक्षा के माध्यम से इस पुनीत कार्य में सहयोग और संचालन तथा क्रियान्व्यन करने में उनके हाथ बंटाने की वजह से है। आज डॉ. शिवाजीराव कदम सर का सफल नेतृत्व इन शिक्षण संस्थाओं को न केवल प्रकाशमान कर रहा है, अपितु इन्हें शिखरगामी बनाने में सफल सिद्ध हो रहा है। कम से कम समय में अधिक से अधिक ज्ञान का उजाला फैलाने में ये शिक्षण संस्थाएँ अपनी सार्थक भूमिकाएँ निभा रही हैं।
डॉ. शिवाजीराव कदम स्वयं में एम.एस.सी. से पोस्ट ग्रेजुएट और पी-एच.डी. डॉक्टरेट डिग्री से विभुषित हैं। इसलिये ये अत्यधिक योग्यतम प्रोफेसर, एक सफल व्यवसायी और अनुसंधानकर्ता व्यक्तित्व के धनी हैं। क्योंकि इनका स्वभाव बड़ा ही मिलनसार, सराहनीय तथा सहयोगिता पूर्ण है, इसलिये इनके तमाम सहयोगी और अधिकारी, कर्मचारी इनका प्रत्येक आदेश न केवल किसी भय, आक्रोश अथवा डिपलोमेसी के कारण ही पालन करते हैं, बल्कि प्रत्येक आदेश का स्वेच्छापूर्ण मनोभाव से पूर्णतया पालन करने में स्वयं को धन्य समझते हैं। मेरे तो ये आदर्श पुरूष हैं,
इसलिये मैं तो इनके सभी आदेशों का धर्मनिष्ठा समझ कर पालन करने में स्वयं को सदेव गौरवान्वित समझता हूँ। भविष्य में भी इनके सहयोग में रहकर मैं स्वयं को शिखरांचलों की ओर आगे बढ़ने में सार्थक समझेंगा। लोग कहते हैं कि भगवान दिखाई नहीं देता पर मेरा भगवान मुझे दिखाई भी देता है और मेरी बात भी सुनता है।
अभी तक के अपने साहित्यिक और व्यवसायिक जीवन में हजारों व्यक्तियों और महान हस्तियों से मिलने, बातचीत करने का सौभाग्य मिला। बहुत सारे व्यक्ति मिलकर कुछ समयोपरान्त मानस पटल के स्मृति-स्थल से स्वतः धुमिल हो जाते हैं, किन्तु कुछेक आकर्षक व्यक्तित्व, महान कृतित्वान पुरूष हृदय-पटल पर अपने व्यक्तिगत गुणों की वजह से स्मृति-चिंह की तरह सदा-सदा के लिये अंकित हो जाते हैं, ऐसी मानव की दिनचर्या में अमूमन होता रहता है। डॉ. शिवाजीराव कदम का नाम भी इसी तरह से स्मृति-पटल पर अपना स्थान बना गया। हुआ यूँ कि मित्र डॉ. अमरजीत देशमुख जी से मैं उन्हीं दिनों से परिचित हूँ, जब वे भारती विद्यापीठ में पुस्तकालयाध्यक्ष का कार्यभार देखते थे। उनकी काम करने की लगन, अथक मेहनत और सूझ-बूझ का मैं आरम्भ से प्रशंसक रहा हूँ। पुस्तकालयाध्यक्ष से प्राध्यापक और दूरशिक्षा विभाग में निदेशक का कार्यभार सम्भालने तक के समयान्तर का मैं साक्षी भी रहा हूँ। जब कभी भी मैंने उनसे इस प्रकार उनके दक्षतापूर्ण कार्य करने के बारे में पूछा तो उन्होंने हमेशा एक ही नाम मुझे बताया डॉ. शिवाजीराव कदम जी का। उनके अपने शब्दों में"आज मैं जो भी कुछ हूँ और जैसा भी बन सका हूँ, सिर्फ और सिर्फ डॉ. शिवाजीराव कदम जी की वजह से यहाँ तक पहुँचा हूँ। वे मेरे प्रेरणास्त्रोत ही नहीं, बल्कि सब कुछ हैं।"
और फिर एक दिन यह भी निर्णय लिया गया कि जैसे भी हो डॉ. शिवाजीराव कदम जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक ऐसी पुस्तक की सर्जना की जाये, जो आज तक उन पर लिखी गई पुस्तकों में एक मील का पत्थर साबित हो। मराठी तथा अंग्रेजी में तो डॉ. शिवाजीराव कदम पर विपुल साहित्य रचना हो चुकी हैं, किन्तु हिन्दी भाषा में ऐसी एक पुस्तक का अभाव अभी तक खटकता है। फिर जिज्ञासावश मैंने भी डॉ. शिवाजीराव कदम जी के बारे में उनके आन्तरिक भावों को टटोलने की कोशिश की और इतना कुछ जब इन्होंने मुझे उनके बारे में बतलाया तो में स्वयं को उन पर लिखने के लिये रोक ही नहीं पाया। पुस्तक लेखन-कार्य प्रारम्भ हो गया।
बीच-बीच में भारती विद्यापीठ पुस्तकालय में भी डॉ. शिवाजीराव कदम पर जितनी पुस्तकें उपलब्ध थीं, सभी को खंगाल डाला। फिर लिखने का जल्दी से मन बनाया तो प्रश्न उठा कि आखिर क्यों लिखा जाये डॉ. शिवाजीराव कदम जी पर? सिर्फ इस लिये कि मित्र देशमुख जी ने मुझ से कहा। नहीं यह तो कदापि उचित नहीं होगा। पहले थोड़ा उनके बारे में पढ़ लिया जाये, उनके आचार-विचार जान लिये जायें। सिर्फ इसी कारण से उन पर उपलब्ध प्रकाशित साहित्य को पढ़ा, चिन्तन-मनन किया तो हृदय से आवाज आई कि इन पर अवश्य लिखना चाहिये। इनका व्यक्तित्व और कृतित्व निःसन्देह रूप से भूरि-भूरि प्रशंसा के काबिल हैं अतः डॉ. शिवाजीराव कदम जी पर लिखने का पक्का मन बना लिया। देशमुख जी ने मेरे इस निर्णय के बारे में सुना तो उनका दिल बाग-बाग हो उठा। वे कह उठे"आज मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मेरे दिल के हीरो के बारे में आपने लिखने का मन में दृढ़ निश्चय कर लिया है मैं उनके बारे में उपलब्ध साहित्य सामग्री शीघ्र ही आप को उपलब्ध करा दूँगा।"
वैसे तो किसी महापुरूष के जीवन, उसके व्यक्तित्व तथा कृतित्व के बारे में कुछ भी लिखना सरल नहीं है, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ। परन्तु किसी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिख कर जनता के सम्मुख उसके प्रस्तुतिकरण से बढ़ कर कोई पुण्य का कार्य भी नहीं है।
व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखना बहुत ही साधना का कार्य हैं यह कभी भी उस व्यक्ति की प्रशंसा, स्तूति अथवा चापलूसी पूर्ण कार्य नहीं है, बल्कि बहुत ही नपा-तुला संतुलित श्रंगारण है, उस व्यक्ति का जिस पर लिखा जाता है। आभूषण अधिक हो गये या पौशाक अधिक भड़कीला हो गया तो श्रंगार प्रसाधन असंतुलित हो जाता है और नायिका सम्मोहन खो देती है। श्रंगारण तथा प्रसाधन के सभी अलंकरण उपकरण इतने संतुलित और सावधानी पूर्वक हों कि नायिका का अन्तः सौन्दर्य ही उदभासित हो। ऐसा न हो कि स्वयं नायिका ही कोई बनावटी उपकरण नजर आने लगे। इस लिये व्यक्तित्व और कृतित्व पर तब तक लिखना कठिन कार्य है जब तक उस व्यक्ति के बारे में सब कुछ जान न लिया जाये।
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