पुस्तक परिचय
बालक मानव का पिता है! बालक के मन को जो सबसे पहला विचार प्रभावित करता, संस्कारो का जो स्वरुप, जो भाव-लहेरी उसकी कोमल बुध्दि के संपर्क में पहेली बार आती है, प्राय वाही चीज़ें उसके आगे जीवन के विकास में मांस रहित अस्थि के सामन ही योगदान देती हैं ! शिवजी की माता ने बाल्यकाल से ही उन्हें जो सर्वागीण शिक्षा दी , उसकी के कारण शिवजी भारतीय वीरों के शिरोमणि बने !
कहा गया है की व्यक्ति का प्रशिक्षण बहुत जल्दी शुरू नहीं किया जा सकता! साथ ही धर्महीन शिक्षण निसार है, मांस रहित अस्थि के सामन है! तिस पर बाल मन नग्न सत्य की अपेक्षा दृष्टान्तों के द्वारा अधिक सीखता है!
इन सब बातों को ध्यान में रख कर श्री स्वामी शिवानंद जी ने सोचा की एक ऐसी पुस्तक होनी चाहिए जो बच्चों को धर्म, नीति तथा अध्यात्म- संस्कृति के सत्यों को सुगमता से समझने में सहायता कर सके ! चूंकि स्वामी जी स्वाम इस सत्य में विश्वास रखते हैं की बाल्यावस्था ही विशाल समाज अथवा विश्व की आधारशिला है; अत; उन्होंने विशेष रूप से माध्यमिक रथ प्राथमिक पाठशालाओं के छात्रों के लिए एक अनूठी पुस्तक तैयार की है !
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