पुस्तक के विषय में
विचार समझ से महत्वपूर्ण गए हैं, क्योंकि बहुत ममत्व हमने उनको दिया है। इस ममत्व को एकदम तोड़ देना जरुरी है। और तोड़ना कठिन नहीं है, क्योंकि यह बिलकुल काल्पनिक है। यह जंजीर कहीं है नहीं, केवल कल्पना में है। विचार के प्रति ममत्व का त्याग जरूरी है। पहली बात: विचार के प्रति अपरिग्रह का बोध। दूसरी बात: विचार के प्रति ममत्व का त्याग। और तीसरी बात: विचार की प्रति तटस्थ साक्षी की स्थिति।
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय बिंदु:
जीवन की खोज और मृत्यु का बोध
क्या हमारे मन स्वतंत्र हैं या परतंत्र ?
कहां है इस सारे जगत का जीवन स्रोत ?
निर्विचार द्वार है सत्य का
प्रवेश के पूर्व
सामान्यत: मनुष्य अविचार में ही जीता है । एक तो वासनाओं की परतंत्रता है और दूसरी श्रद्धा और विश्वास की । शरीर के तल पर भी मनुष्य परतंत्र है और मन के तल पर भी। शरीर के तल पर स्वतंत्र होना संभव नहीं है, लेकिन मन के तल पर स्वतंत्र होना संभव है। ...मन के तल पर मनुष्य कैसे स्वतंत्र हो सकता है? कैसे उसके भीतर विचार का जन्म हो सकता है? विचार का जन्म न हो तो मनुष्य के जीवन में वस्तुत: न तो कुछ अनुभूति हो सकती है, न कुछ सृजन हो सकता है । तब हम व्यर्थ ही जीएंगे और मरेंगे । जीवन एक निष्फल श्रम होगा। क्योंकि जहां विचार नहीं, वहा आंख नहीं; जहां विचार नहीं, वहां स्वयं के देखने और चलने की कोई शक्ति ही नहीं है । और जो व्यक्ति स्वयं नहीं देखता, स्वयं नहीं चलता, स्वयं नहीं जीता, उसे कोई अनुभूति जो उसे मुक्त कर सके, कोई अनुभूति जो उसके हृदय को प्रेम से भर सके, कोई अनुभूति जो उसके प्राणों को आलोकित कर सके, असंभव है । जीवन में कुछ भी हो उस होने के पहले आखों का होना जरूरी है।
विचार से मेरा अर्थ है : दृष्टि। विचार से मेरा अर्थ है : स्वयं की सोचने की क्षमता । विचार से मेरा अर्थ विचारों की भीड़ नहीं है। विचारों की जो भीड़ है वह हम सबके भीतर है, लेकिन विचार हमारे भीतर नहीं है। विचार तो बहुत हमारे भीतर घूमते हैं, लेकिन विचार की शक्ति हमारे भीतर जाग्रत नहीं है।
और यह बहुत आश्चर्य की बात है कि जिसके भीतर जितने ज्यादा विचार घूमते है उसके भीतर विचार की क्षमता उतनी ही कम होती है । जिसके भीतर विचारों का बहुत ऊहापोह, विचारों का बहुत आंदोलन, बहुत भीड़ है, उसके भीतर विचार की शक्ति सोई रहती है। केवल वही व्यक्ति विचार की शक्ति को उपलब्ध होता है जो विचारों की भीड़ को विदा देने में समर्थ हो जाता है। इसलिए बहुत विचार आपके मन में चलते हों, तो यह मत समझ लेना कि आप विचार करने में समर्थ हो गए है ।
बहुत विचार चलते भी इसीलिए हैं कि आप विचार करने में समर्थ नहीं हैं । एक अंधा आदमी किसी भवन के बाहर जाना चाहे, तो उसके भीतर पच्चीस विचार चलते हें-कैसे जाऊं, किस द्वार से जाऊं, कैसे उठूं किससे पूछूं? लेकिन जिसके पास आंख है, उसे बाहर जाना है, वह उठता है और बाहर हो जाता है। और उसके भीतर विचार नहीं चलते हैं । वह उठता है और बाहर हो जाता है। उसे दिखाई पड़ रहा है।
विचार की शक्ति दर्शन की क्षमता है। जीवन में दिखाई पड़ना शुरू होता है । लेकिन विचारों की भीड़ से कोई दर्शन की क्षमता नहीं होती, बल्कि विचारों की भीड़ मे दर्शन की, देखने की क्षमता छिप जाती है, ढंक जाती है।
विचार करना क्या है? विचार करने का अर्थ है : जीवन की समस्या के प्रति स्वयं की चेतना का जागना। जीवन की समस्या का समाधान स्वयं की चेतना से उठना । जीवन जब प्रश्न खड़े करे, तो उधार उत्तर न हो, उत्तर अपना जागे । अभी भी जीवन तो रोज समस्याएं खड़ी करता है, लेकिन उत्तर हमारे उधार होते है। इसलिए जीवन की कोई समस्या कभी हल नहीं होती।
समस्या हमारी, समाधान दूसरों के। उनका कहीं कोई मेल नहीं होता है । जीवन रोज प्रश्न खड़े करता है, जीवन रोज समस्याएं खड़ी करता है, लेकिन हमारे पास रेडीमेड तैयार उत्तर है जो दूसरों ने दिए है। उन उत्तरों को लेकर हम जीवन के सामने खड़े होते हैं । समस्याएं जीत जाती हैं, समाधान गिर जाते हैं।
अनुक्रम
1
जीवन की खोज
2
अविचार
17
3
स्वतंत्रता और आत्म-क्रांति
35
4
विचार
53
5
विचार एक आत्मानुभूति
69
6
निर्विचार
87
ओशो एक परिचय
107
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट
108
ओशो का हिंदी साहित्य
110
अधिक जानकारी के लिए
115
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (1737)
Philosophers (2384)
Aesthetics (332)
Comparative (70)
Dictionary (12)
Ethics (40)
Language (370)
Logic (72)
Mimamsa (56)
Nyaya (137)
Psychology (409)
Samkhya (61)
Shaivism (59)
Shankaracharya (239)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist