पुस्तक के विषय में
शिष्य गुरु की शक्ति का ट्रांसमिटर, गुरु की ऊर्जा का संचारक होता है। विधुत शक्ति के संचार के लिए यह जरुरी है कि बिजली की तार कार्बन से मुक्त रहे। अगर तारों पर कार्बन जमा रहेगा तो बत्तियाँ नहीं जेलेगी। इसी प्रकार शिष्यत्व का प्रयोजन हमारी तारों पर जमे कार्बन को हटाकर उन्हें साफ रचना है, ताकि हमारे जीवन में दैवी कृपा का प्रवाह सतत् और निर्विघ्न रूप से होता रहे, और संक्षेप में यही शिष्य धर्म है।
सन् 2009 से स्वामी निरंजानन्द सरस्वती के जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ है और मुंगेर योगदृष्टि सत्संग श्रृंखला के अन्तर्गत योग के विभित्र पक्षों पर दिये गये प्रबोधक व्याख्यान स्वामीजी की इसी नयी जीवनशैली के अंग हैं।
रिखियापीठ में मनाये गये गुरु पूर्णिमा महोत्सव से लौटने के बाद स्वामीजी ने 'शिष्य धर्म' को अपने अगले सत्संग कार्यक्रम का विषय चुना। अगस्त 2010 में गंगा दर्शन में दिये गये इन सत्संगों में स्वामीजी ने गुरु तत्व के निरूपण से प्रारम्भ कर शिष्यत्व के विभित्र आयमों पर प्रकाश डाला है। उनके सारगर्भित शब्द हमें अपने भीतर झाँककर यह जाँचने के लिए मजबूर करते हैं कि शिष्यत्व की कसौटी पर हम कितने खरे उतरते हैं, हमारे व्यक्तित्व में कौन-सी कमियाँ हैं, और कैसे हम एक आदर्श शिष्य परम्परा का निर्वहन करने वाले साधक के लिए उच्चतक आदर्श क्या है-आध्यात्मिक मार्ग के सच्चे पथिकों के लिए यह एक आधारभूत प्रश्न रहा है,जिसका उत्तर इन सत्संगों में निहित है।
स्वामी निरंजनानन्द का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनाँदगाँव में 1960 में हुआ । चार वर्ष की अवस्था में बिहार योग विद्यालय आये तथा दस वर्ष की अवस्था में संन्यास परम्परा में दीक्षित हुए । आश्रमों एवं योग केन्द्रों का विकास करने के लिए उन्होंने 1971 से ग्यारह वर्षों तक अनेक देशों की यात्राएँ कीं ।1983 में उन्हें भारत वापस बुलाकर बिहार योग विद्यालय का अध्यक्ष नियुक्त किया गया । अगले ग्यारह वर्षों तक उन्होंने गंगादर्शन, शिवानन्द मठ तथा योग शोध संस्थान के विकास-कार्य को दिशा दी । 1990 में वे परमहंस-परम्परा में दीक्षित हुए और 1993 में परमहंस सत्यानन्द के उत्तराधिकारी के रूप में उनका अभिषेक किया गया । 1993 में ही उन्होंने अपने गुरु के संन्यास की स्वर्ण-जयन्ती के उपलक्ष्य में एक विश्व योग सम्मेलन का आयोजन किया । 1994 में उनके मार्गदर्शन में योग-विज्ञान के उच्च अध्ययन के संस्थान, बिहार योग भारती की स्थापना हुई।
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