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डायल डी फ़ॉर डॉन (सी बी आई के अभियानों के दिलचस्प किस्से): Dial D for Don (Interesting Stories of CBI Operations)

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Item Code: HBC801
Author: Neeraj Kumar
Publisher: Penguin Books India Pvt. Ltd.
Language: Hindi
Edition: 2016
ISBN: 9780143426844
Pages: 252
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 216 gm
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100% Made in India
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Book Description
पुस्तक परिचय

ऐसे ही अनेक महत्त्वपूर्ण अभियानों के पीछे अद्भुत प्रतिभा के धनी एक आई पी एस अधिकारी की बेहद पैनी गुप्तचरी रही है। अपने 37 वर्षों के कार्यकाल के दौरान नीरज कुमार ने इंटरपोल, एफ़ बी आई, न्यू स्कॉटलैंड यार्ड तथा ऐसी ही अनेक दूसरी एजेंसियों की मदद से कई आतंकवादी कोशिशों को नाक़ामयाब किया है और दुनिया भर में फैले ख़तरनाक संगठित आपराधिक गिरोहों को तबाह किया है।

कुमार अपने इन निहायत ही बेबाक संस्मरणों में अपने ग्यारह सबसे प्रमुख प्रकरणों के माध्यम से पाठक को सी बी आई के काम करने के तरीके की एक रोमांचक झलक पेश करते हैं, जिनमें गुजरात के बेक़ाबू डॉन अब्दुल लतीफ़ की गिरफ्तारी, पंजाब के मुख्यमन्त्री बेअंत सिंह की हत्या में शामिल रहे खूंखार आतंकवादी जगतार सिंह तारा की गिरफ़्तारी, और दिल्ली के एक राजनेता का भेष धारण किए दाऊद के वफ़ादर रोमेश शर्मा की धरपकड़ जैसे प्रकरण शामिल हैं।

धमाकेदार ब्योरों और बेचैन कर देने वाले रहस्यों से भरपूर डायल डी फ़ॉर डॉन हमारे वक़्त की कुछ बेहद रोमांचकारी अपराध कथाओं का बहुत करीबी नज़ारा पेश करती है।

लेखक परिचय

नीरज कुमार देश के एक अत्यन्त प्रतिष्ठित पुलिस अधिकारी हैं। उन्होंने सेंट स्टीवन्स कॉलेज, दिल्ली से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और 1976 में वे भारतीय पुलिस सेवा में आ गए। 2013 में वे दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके पहले वे सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इंवेस्टिगेशन (सी बी आई) में डी आई जी के और फिर बाद में संयुक्त निदेशक के पदों पर रहे। सी बी आई के अपने नौ वर्षों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अनेक सनसनीखेज़ मामलों की जाँच की और आतंकवाद, संगठित अपराध, आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार से सम्बन्धित अनेक अभियानों का संचालन किया। बाद में वे दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के संयुक्त कमिश्नर रहे। उस दौरान पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद से निपटना उनके दायित्त्वों में मुख्य रूप से शामिल था, और फिर वे दिल्ली के जेल महानिदेशक भी रहे।

सैंतीस वर्षों के अपने यशस्वी सेवा-काल के दौरान कुमार ने अनेक उच्चस्तरीय दायित्त्वों का निर्वाह किया तथा कई अनूठे कामों की पहल की, जिनमें कैदियों की साक्षरता और रोज़गार का कार्यक्रम; अपराधों के प्रति संवेदनशील नौजवानों के लिए युवा नामक कार्यक्रम; पुलिस में दर्ज की गई शिकायतों पर की गई कार्रवाइयों की नियमित जानकारी उपलब्ध कराने सम्बन्धी आपका अपडेट नामक योजना; और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ लोगों की मुलाक़ात के लिए जन सम्पर्क नामक मंच शामिल हैं।

कुमार ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित पारदेशीय संगठित अपराध सम्मेलन में तथा बाद में संयुक्त राष्ट्र के ही अपहरण और फिरौती-विरोधी मैनुअल को तैयार करने में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। भारत सरकार ने उनको 1993 में पुलिस मैडल फ़ॉर मेरिटोरियस सर्विस और 1999 में प्रेसिडेंट्स पुलिस मैडल फ़ॉर डिस्टिग्विसेज़ सर्विस प्रदान कर उनके काम को सम्मानित किया है। कुमार इन दिनों बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फ़ॉर क्रिकेट इन इंडिया (बी सी सी आई) की भ्रष्टाचार विरोधी और सुरक्षा इकाई के मुख्य सलाहकार हैं।

भूमिका

वर्ष 2014 के शुरुआती महीनों में एक दिन मुझे एस हुसैन जैदी की पुस्तक - बायकला टु बैंकॉक के प्रकाशक की ओर से फ़ोन आया जिसमें मुझसे इस पुस्तक के लोकार्पण-कार्यक्रम में शामिल होने का अनुरोध किया गया था। मुझसे यह भी कहा गया कि पुस्तक के लोकार्पण के बाद मुझको उसके लेखक के साथ सार्वजनिक बातचीत भी करनी होगी। मैं किंचित पशोपेश में था कि इस प्रकाशनगृह को मेरा ख़याल क्यों आया होगा, मैंने फ़ोन करने वाली महिला से पूछा कि वह यह सम्मान मुझको क्यों बख़्श रही हैं। उस भद्र महिला ने कहा : 'सर, लेखक की ऐसी इच्छा है।'

हुसैन जैदी से मैं पहले मिला तो नहीं था लेकिन मैं उनकी पुस्तक ब्लैक फ्रायडे के नाते उनको जानता था, जिसपर इसी नाम से फ़िल्म भी बनी थी। प्रकाशक ने कार्यक्रम के एक दिन पहले मुझे बायकला दु बैंकॉक की एक प्रति भेज दी। चूँकि मैंने सी बी आई के अपने नौ वर्ष के कार्यकाल के दौरान मुम्बई के माफ़िया से सामना किया था, और इस नाटक के एक-एक किरदार से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था, इस पुस्तक को पढ़ना मेरे लिए बहुत ही रोचक साबित हुआ। मैं कुछ ही बैठकों में इसको पढ़ गया और 'लेखक के साथ बातचीत' के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया।

पुस्तक का लोकार्पण-कार्यक्रम बहुत सुन्दर ढंग से सम्पन्न हुआ। लेखक के साथ मेरी बातचीत रोचक और आनन्ददायी रही, बावजूद इसके कि ज़्यादातर वक़्त मैं पुस्तक की कमियों की ओर इशारा करता रहा, मैंने टाँग खींचने में कोई कसर नहीं रखी। हो सकता है इस प्रक्रिया में मैंने कार्यक्रम के आयोजकों तथा लेखक, दोनों को ही नाखुश किया हो।

प्राक्कथन

जब मैं पुलिस महकमे में शामिल हुआ था, तो हमें सिखाया गया था कि ऐसा कोई अपराध नहीं है जिसकी गुत्थियाँ सुलझाई न जा सकती हों और अगर आपका ध्यान एकाग्र हो और आप अपनी धुन के पक्के हों, तो आप किसी भी चोटी पर चढ़ सकते हैं। यहाँ तक कि इण्टेलीजेंस ब्यूरो में भी, जहाँ मैंने पन्द्रह से ज़्यादा वर्षों तक काम किया है, अन्दरूनी तौर पर यही माना जाता था कि ऐसा कोई काम नहीं है जिसमें आप कामयाब न हो सकते हों, आपको केवल उस काम में अपना मन लगाना ज़रूरी है। सी बी आई (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इंवेस्टिगेशनः केन्द्रीय जाँच आयोग) अद्भुत जगह है, जैसा कि इस संगठन में काम करते हुए मैंने पाया। इस बात को यह पुस्तक भी कई तरह से दर्शाती है। जैसे-जैसे यह लेखक, तमाम तरह की बाधाओं का सामना करता हुआ, एक के बाद एक प्रकरणों से निपटता है, वैसे-वैसे आप शब्दशः उसके जोश और उसकी कामयाबी के लुत्फ़ को महसूस करते हुए चल सकते हैं। आश्चर्य की बात नहीं कि नीरज 'ऑपरेशन डेज़र्ट सफ़ारी' में लिखते हैं कि यह उनकी ज़िन्दगी का सबसे रोमांचक और सन्तोषजनक प्रकरण था। न ही आश्चर्य उस ज़बरदस्त प्रशंसा और आभार को देखकर होता है जो उनको गुजरात सरकार और गुजरात पुलिस की ओर से मिला था जब उन्होंने उस गिरोह सरगना अब्दुल लतीफ़ को गिरफ़्तार किया था, जिसकी कुख्याति दाऊद इब्राहिम के क़रीब पहुँचती लगती थी। वह उल्लास भी अविस्मरणीय है जो उन्होंने और उनके दल के सदस्यों ने उस वक़्त महसूस किया था जब वे, आई एस आई (इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस पाकिस्तान की सरकारी खुफ़िया एजेंसी) द्वारा तैयार की गई तमाम तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए, अन्ततः याकूब मेमन के परिवार को, और कुछ समय बाद उसकी बीवी और उनकी महीने भर की बेटी को, दुबई से वापस लाने में कामयाब हुए थे। नीरज को मैं एक मृदुभाषी व्यक्ति के रूप में जानता रहा हूँ, जिनको किसी तरह का तमाशा करने या अपना आपा खो देने की आदत नहीं है।

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