SALE CLOSES IN

Look Inside

आयु निर्णय शोध-सिद्धान्त एवं प्रयोग: Determination of Life

$12.75
$17
(25% off)
Quantity
Delivery Usually ships in 3 days
Item Code: NZA921
Publisher: Alpha Publications
Author: गिरीश चन्द्र जोशी और बिरेन्द्र नौटियाल (Girishchand Joshi and Birendra Notiyal)
Language: Hindi
Edition: 2007
ISBN: 9788179480502
Pages: 183
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 250 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

लेखक के बारे में

सोलह वर्ष की किशोरावस्था से ही ज्योतिष सीखने के प्रति रूझान के परिणामस्वरूप स्वाध्याय से ज्योतिष सीखने की ललक व गुरू की तलाश में कुमाऊँ क्षेत्र के तत्कालीन प्रकाण्ड ज्योतर्विदों के उलाहने सहने के बाद भी स्वाध्याय से अपनी यात्रा जारी रखते हुए वर्ष 1985 में वह अविस्मरणीय दिन आया जब वर्षा की प्यास बुझानेहेतु परम गुरू की प्राप्ती योगी भाष्करानन्दजी के रूप में हुई । पूज्य गुरूजी ने न केवल मंत्र दीक्षा देकर मेंरा जीवन धन्य कर दिया अपितु अपनी ज्योतिष रूपी ज्ञान की अमृतधारा से सिचित किया । शेष इस ज्योतिष रूपी महासागर से कुछ क़े पूज्य गुरूदेव श्री के० एन० राव जी के श्रीचरणों से प्राप्त हुई जैसा कि वर्ष 1986 की गुरूपूर्णिमा की रात्रि को योगी जी के श्रीमुख से यह पूर्व कथन प्रकट हुए '' कि मेंरे देह त्याग के बाद सर्वप्रथम मेंरी जीवनी तुम लिखोगे मैं वैकुण्ड धाम में नारायण मन्दिर इस जीवन में नहीं बना पाऊँगा मुझे पुन : आना होगा । कलान्तर में योगी जी का कथन सत्य साबित हुआ वर्ष 1997 से प्रथम लेखन- 1 योगी भाष्कर वैकुण्ठ धाम में योगी जी के जीवन पर लघु पुस्तिका का प्रकाशन हुआ । तत्पश्चात् 2. हिन्दू ज्योतिष का सरल अध्ययन भाषा टीका 3. व्यावसायिक जीवन में उतार-चढ़ाव भाषा टीका 4. आयु अरिष्ट अष्टम चन्द्र तथा प्रतिष्ठित पत्रो-दैनिक जागरण तथा अमर उजाला में प्रकाशित सौ से अधिक सत्य भविष्यवाणियों के उपरान्त दो वर्षा की अथक खोज के उपरान्त लुप्त हो चुकी परमायुदशा अब आयु निर्णय आपके हाथ में है।

पुस्तक के बारे में

उपलब्ध प्राचीन शास्त्रीय कन्धों में आयु निर्णय हेतु अनेकों पद्धतियों का उल्लेख किया गया है। परन्तु, उन सब में सर्वोत्तम परिणाम जैमिनी पद्धति से आयु निर्णय तथा पाराशरी के योगायु के सिद्धान्तों द्वारा विद्वान ज्योर्तिविद प्राप्त करते हैं, किन्तु पाम विधि से जैमिनी सिद्धान्तानुसार अल्प-मध्य व दीर्घ में से एक खण्ड निर्धारण करने के उपरान्त कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का प्रयोग करना एक जटिल समस्या है। कारण यह है कि विभिन्न ग्रन्थों में कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों में अनेक मतान्तर हैं। सम्भवतया जैमिनी मुनि के जटिलतम एवं दुरूह गागर में सागर रूपी श्लोकों को समझने अथवा उनके अनुवाद में त्रुटि रह गई हो या सम्भवतया सम्पूर्ण जैमिनी शास्त्र उपलब्ध ही न हो ।

प्रस्तुत पुस्तक के प्रत्येक उदाहरण में पाम विधि से आयु खण्ड के निर्धारण के उपरान्त जैमिनी के अधिक प्रचलित कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का प्रयोग किया गया है तथा उसी उदाहरण में पाम विधि से आयु खण्ड निर्धारण के उपरान्त पाराशरी के प्रमुख कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का प्रयोग किया गया है ताकि पाठक दोनों विधियों का तुलनात्मक अध्ययन व विश्लेषण करते हुए स्वंय निर्णय कर सके कि उन्हें किस विधि को अपनाना है। तदुपरान्त, जातक को प्राप्त कुल परमायु अथवा अनुपातिक विशोंत्तरी दशा का तृतीयांश ज्ञात कर लें। यदि जातक को पाम विधि से अल्पायु खण्ड प्राप्त हो रहा हो, तो जातक को प्राप्त कुल परमायु वर्षों में से उसके तृतीयांश के दो खण्डों को घटाना होगा । अब पाराशरी योगायु के कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का उपयोग करने के उपरान्त यदि जातक की आयु में हास की अधिकता हो, तो उक्तवत् दो खण्डों को घटाने के उपरान्त प्राप्त आयु संख्या के वर्षो में से कुल परमायु दशा के तृतीयांश का एक खण्ड और घटा दिया जायेगा। इसके विपरीत यदि पाम विधि से आयु खण्ड अल्प प्राप्त हो रहा हो परन्तु पाराशरी योगायु के कक्षा वृद्धि व कक्षा ह्रासों का प्रयोग करने के उपरान्त जातक कक्षा ह्रास की अपेक्षा कक्षा वृद्धि अधिक प्राप्त कर रहा हो, तो वह अल्प से मध्मायु खण्ड प्राप्त कर रहा है। ऐसी स्थिति में उक्तवत् जातक को प्राप्त कुल परमायु दशा में से उसके तृतीयांश के दो खण्डों को घटाने के उपरान्त प्राप्त परमायु वर्षों में तृतीयांश का एक खण्ड और जोड़ा जायेगा।

यदि जातक को पाम विधि से मध्यमायु प्राप्त हो रही हो, किन्तु पाराशरी योगायु के कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का प्रयोग करने के उपरान्त यदि कक्षा ह्रास अधिक प्राप्त हो, तो इसका तात्पर्य है कि जातक मध्य से अल्पायु खण्ड प्राप्त कररहा है। ऐसी स्थिति में जातक को प्राप्त कुल भोग्य परमायु वर्षा में से प्राप्त परमायु वर्षो के तृतीयांश का एक खण्ड का मान मध्यमायु हेतु पुन: कक्षा हास से प्राप्त अल्पायु हेतु एक और खण्ड का मान इस प्रकार तृतीयांश के कुल दो खण्डों का मान घटाना होगा । इसके विपरीत यदि जातक पाम विधि से मध्यमायु प्राप्त करने के उपरान्त योगायु की कक्षा वृद्धियाँ अधिक प्राप्त कर रहा हो, परिणाम स्वरूप वह मध्य से पूर्णायु खण्ड प्राप्त कर रहा है। ऐसी स्थिति में कुल प्राप्त परमायु के तृतीयांश में से प्रथम उक्तवत तृतीयांश का एक खण्ड मध्यमायु हेतु घटा देगें, पुन: कक्षा वृद्धि से प्राप्त दीर्घायु खण्ड हेतु एक खण्ड और जोड़ देगें, अर्थात् ऐसी दशा में जातक को प्राप्त परमायु वर्षादि यथावत रहेंगी, वही उसकी स्पष्टायु होगी ।

यदि जातक को पाम विधि से दीर्घायु खण्ड प्राप्त हो रहा हो, किन्तु पाराशरी के कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के योगायु सिद्धान्तों का प्रयोग करने के उपरान्त जातक कक्षा हास अधिक प्राप्त हो रहा हो अर्थात् वह दीर्घ से मध्यमायु खण्ड प्राप्त कर रहा है। ऐसी स्थिति में जातक को कुल प्राप्त योग्य परमायु दशा वर्षादि के तृतीयांश के एक खण्ड का मान प्राप्त कुल परमायु वर्षादि में से घटाना होगा। इसके विपरीत यदि किसी जातक को कक्षा हास की अपेक्षा कक्षा वृद्धियाँ अधिक प्राप्त हो रही हो, तो ऐसी स्थिति में जातक को प्राप्त कुल योग्य परमायु दशा वर्षादि के तृतीयांश का एक खण्ड का मान कुल परमायु दशा में जोड्ने से स्पष्टायु प्राप्त होगी ।

उक्त दोनों विधियों का प्रयोग सौ जन्मांगो पर करने के उपरान्त पाराशरी योगायु के कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों द्वारा ही अधिक प्रतिशत परिणाम प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त पुस्तक में बालारिष्ट, योगारिष्ट, जैमिनी के सर्वाधिक प्रचलित कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के सिद्धान्तों का उल्लेख, पाराशरी अल्प-मध्य व दीर्घायु के योगों का विशद विवेचना तथा जन्मांग के द्वादश भावों तथा नव ग्रहों में से आयु की वृद्धि या हास करने वाले सम्बन्धित भावों- भावेशों, लग्नों-लग्नेशों आदि की सबलता व निर्बलता का आकलन किस प्रकार किया जाए, सरलतम विधि से समझाने का भरसक प्रयास किया गया है। अन्त में कुल भोग्य परमायु दशा, प्रत्येक ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा अल्प समय में ज्ञात करने हेतु अत्यन्त सरलीकृत व सूक्ष्म तालिकाएँ दशान्तर आदि को ज्ञात करने की विधि को समझाते हुए दी गई हैं। पुस्तक में अधिक प्रतिशत देने वाली पाराशरी के योगायु सम्बन्धी कक्षा वृद्धि और कक्षा हास के सिद्धान्तो का प्रयोग करने के बाद जातक को प्राप्त कुल परमायु दशा के तृतीयांश के मान को कक्षा वृद्धि या कक्षा हास के अनुरूप जोड़ा या घटाया गया है, परिणाम स्वरूप जातक को प्राप्त कुल आयु वर्षों अर्थात् जितने वर्ष सम्बन्त्रि त जातक जीवित रहा उसमें न्यूनतम दस से बीस वर्षों का अन्तर कुछ उदाहरणों में प्रान्त हुआ है, चूकि पाम विधि से एक आयु खण्ड का मान बत्तीस -बत्तीस वर्षांका होता है, परमायु विधि से प्रयोग करने पर इसे दस से बीस वर्षों के मध्य लाया जाना सम्भव हुआ है। इसमें भी गोचर व मारक दशा का विचार करते हुए और निकटतम बिन्दु तक पहुँचा जा सकता है। यदि जातक का जन्म समय शुद्ध हो, तो कालचक्र दशा का प्रयोग स्पष्ट संकेत दे सकती है।

पुस्तक में आयु निर्णय सम्बन्धी सभी प्रमाणित व ठोस सिद्धान्तों का समावेश करने का प्रयास किया गया है। पाम द्वारा प्राप्त आयु खण्ड में प्राप्त परमायु के तृतीयांश को कक्षा वृद्धि व कक्षा हास के अनुरूप ऋण-धन करना एक प्रारम्भिक शोध है। शोधार्थी व जिज्ञासु पाठक इस विधि में और शोध कर अधिक निकटतम बिन्दु तक आयु गणना करने में सक्षम हो सकेंगे ।

 

विषय-सूची

1

अध्याय-1 शोध व्याख्या व आयु गणना विधि

1-10

2

अध्याय-2 आयु निर्माण के सिद्धांत

11-69

3

अध्याय-3 पराशरी, परमायु व जैमिनी पद्धति के संयुक्त उदाहरण

70-102

4

अध्याय-4 अभ्यास करें

103-113

5

अध्याय-5 कुल परमायु दशा व प्रत्यन्तर दशा की सरलीकृत तालिकाएँ

114-165

**Sample Pages**














Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories