रामचरितमानस के असुर पात्र' विषय लीक से हट कर चौंकाने वाला भी है और साहसपूर्ण भी। सत् पात्रों पर शोध तो प्रायः होते रहे हैं और हो रहे हैं। आदर्श पात्र परिकल्पना के प्रति सभी समर्पित भाव रखते हैं किन्तु उनके ही दूसरे ध्रुवीय कोण में झाँकना एक साहसपूर्ण है। मानस के अध्ययन अध्यापन में अभी तक की जो प्रवृत्ति विशेष रूप से उभर कर सामने आयी है वह सात्त्विक भाव को ही मुख्यता प्रदान करने वाली रही है। डॉ हेमवती शर्मा ने अपने विषय का चुनाव चली आ रही विषय की परिपाटी से हट कर किया है जो प्रशंसनीय भी है और विचारणीय भी।
गोस्वामी तुलसीदास जितने बड़े भक्त कवि हैं उतने ही बड़े मानवीय संबंधों के चितेरे भी। रामचरित्र इसीलिए 'मानस' है। 'मानस' शब्द एक तरह से 'कामधुक' शब्द की तरह है। जो अपने स्वरूप में अथाह और अनन्त तो है ही साथ में यह हृदय रूपी मानस से भी संबंधित है। मानस में अनन्त-अनन्त वृत्तियां समायी हुई हैं उसमें सात्त्विक, राजसिक और तामसिक तीनों ही प्रकार की वृत्तियों के भाव विकार समाये हुए हैं। मानव समाज को सबसे बड़ा खतरा यदि किसी वृत्ति विशेष से है तो वह है-आसुरी वृत्ति से। 'असवः प्राणः' अर्थात् असुर के असु शब्द का अर्थ है प्राण और 'र' का अर्थ है रमण करना जो प्राणों में ही रमण करे उसे असुर कहते हैं। प्राण में रमण करना सुनने और दिखायी देने में सामान्य-सा शब्द लगता है किन्तु उसकी अर्थपूर्ण व्यंजना बहुत ही गहरी और विचारणीय है।
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