तन्त्र विद्या का प्रचलन पुरातन काल से सम्पूर्ण विश्व में रहा है । बौद्धकालीन युग में तो भारत के अतिरिक्त सुदूर देशों चीन, तिब्बत, भूटान, लंका, जावा, सुमात्रा आदि में भी इसका व्यापक रूप से प्रचार प्रसार देखने को मिलता है । इसी विद्या के बल पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या की प्राप्ति की थी । मन्त्र बल के द्वारा ही महर्षि विश्वामित्र ने एक नूतन स्वर्गलोक की रचना कर डाली थी । इतना ही नहीं, बल्कि विषम परिस्थितियो से त्राण पाने के लिए देवगण भी तन्त्र विद्या का आश्रयण किया करते थे । इसके कुछ उदाहरण यहाँ उद्धृत कर देना असंगत न होगा । जिस समय अपने वनवास काल में भगवान श्रीराम चित्रकूट पर निवास कर रहे होते है उस समय भरत जी उन्हें अयोध्या वापस लाने के लिए पहुँचते हैं । परन्तु यह कार्य देवों को स्वीकार नहीं था । अत देवताओं ने वहाँ उपस्थित सभी अयोध्यावासियों पर उच्चाटन प्रयोग कर दिया । जिसके फलस्वरूप सभी के मन में अस्थिरता उत्पन्न हो गयी । इसका वर्णन कवि सम्राट्र गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने निम्न वाक्यों में किया है
प्रथम कुमति करि कपट सकेला ।
सोइ उचाट सबके सिर मेला ।।
भय उचाट बस मन थिर नाहीं ।
क्षण बन रुचि क्षण सदन सुहाहीं ।।
दुबिध मनोगति प्रजा दुखारी ।
सरित सिंधु संगम जिमि बारी । ।
दुचित कतहुँ परितोष न लहहीं ।
एक एक सन मर्म न कहही । ।
(रामचरित मानस, अवध काण्ड)
इस प्रकार के असंख्य उदाहरण भरे पड़े हैं जिनमें तांत्रिक प्रयोगों की स्पष्ट झलक परिलक्षित होती है । इसी भाँति श्रीराम रावण युद्ध में जब रावण को अपनी पराजय सुनिश्चित प्रतीत होने लगी तो वह अमरत्व प्राप्ति के लिए तांत्रिक साधना मे. निरत हो गया, जिसकी सूचना विभीषण ने श्रीराम को दी । इस सन्दर्भ में तुलसीदास जी के वाक्य देखिए
नाथ करै रावण इक जागा ।
सिद्ध भये नहिं मरहिं अभागा । ।
(रामचरित मानस, लंका काण्ड)
उपर्युक्त उदाहरणों से यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध है कि तन्त्र विद्या का आश्रय लेकर साधक अलौकिक सिद्धियो का अधिकारी बन जाता था ।
तन्त्र शाख को ही आगम शाख के नाम से भी जाना जाता है । इस कलिकाल में सद्य सिद्धि प्राप्त करने के लिए इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है । पाश्चात्य देशों मे भी तन्त्र विद्या के प्रति लोगों की रुचि एवं आस्था बढ़ी है । फलस्वरूप इसके सम्बन्ध में नित्यप्रति वहाँ नवीन अन्वेषण किये जा रहे हैं । वैज्ञानिकों द्वारा इसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती जा रही है ।
प्रस्तुत पुस्तक डामर तन्त्र में षट्कर्मों (शांतिकरण, वशीकरण, मारण, उच्चाटन, स्तंभन तथा विद्वेषण) का विशद विवेचन किया गया है । इसके साथही साथ अनेकानेक ऐसे अनुभूत योगों का वर्णन भी किया गया है जिनके द्वारा ऐश्वर्य प्राप्ति, गृहबाधाओ का निवारण, रोगोपशमन आदि कार्य प्रयोक्ता सहज ही सफलतापूर्वक कर सकता है । भारतीय वनस्पतियों एवं जड़ी बूटियों का सम्बन्ध आयुर्वेद के अतिरिक्त तन्त्रशास्त्र से भी रहा है । इस हेतु उन जड़ी बूटियों का उल्लेख पुस्तक के अन्तर्गत किया गया है । परन्तु उन वनस्पतियों के प्रचलित नामों का ज्ञान सर्वसामान्य को नहीं है । फलत उनके हिन्दी नामों को कोष्ठक में दे दिया गया है जिससे प्रयोक्ताओं को कोई असुविधा न हो । उपर्युक्त योगों के अतिरिक्त पुस्तक में गारुडी विद्या की भी विस्तृत विवेचना की गयी है जिसकी सहायता से प्राणी की अकाल मृत्यु से सुरक्षा की जा सकती है । इम पुस्तक के परिशिष्ट भाग मे यन्त्रों का सचित्र विवरण दिया गया है जिसके द्वारा सामान्य व्यक्ति भी अल्प व्यय में अपनी कामनाएँ पूर्ण करने में समर्थ हो सकता है । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक पाठकों के लिए निःसंदेह रूप से उपयोगी सिद्ध होगी ।
अन्त में मैं चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी के प्रकाशक श्री टोडरदास जी रुम एवं कमलेशजी गुप्त को साधुवाद देना न भूलूँगा जिनकी तंत्रशास्त्र में अगाध रुचि एवं निष्ठा के फलस्वरूप प्रस्तुत पुस्तक 'डामर तन्त्र' इतने अल्पावधि में न्त्राशित होकर सुधी पाठकों के समक्ष आ सकी है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि प्रकाशक महोदय इस प्रकार की अन्याय तन्त्रोपयोगी पुस्तकें भविष्य में प्रकाशित कर आकांक्षी पाठकों को सतत लाभान्वित करते रहेंगे ।
विषयानुक्रमणी
प्राक्कथन
I
मंगलाचरण
1
प्रथम परिच्छेद
9
द्वितीय परिच्छेद
21
तृतीय परिच्छेद
45
चतुर्थ परिच्छेद
47
पंचम परिच्छेद
50
षष्ठ परिच्छेद
70
परिशिष्ट
94
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12516)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1896)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish (ज्योतिष) (1443)
Yoga (योग) (1094)
Ramayana (रामायण) (1390)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23073)
History (इतिहास) (8226)
Philosophy (दर्शन) (3385)
Santvani (सन्त वाणी) (2533)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist