हिन्दी साहित्य केस्वर्णकालसंज्ञा से विभूषित भक्ति काल के उदय का संबंधदक्षिण से जुड़ता है औरभक्ति द्राविण उपजीपद का अक्सर प्रयोग किया जाता । है । तमिलनाडु के शैव संतों ने, जिन्हें नायन्मार कहा जाता है, जिन भक्ति गीतों को रचा था, उन्हें तिरुमुरै में संकलित किया गया । तिरुमुरै संग्रह में जिन महान संतों । कै पद मिलते हैं, उनमें संबंधर, अप्पर, सुंदरर मणिक्कवसगर और तिरुमुलर प्रमुख है । इन रचनाकारों का समय 600 ई. से 1200 ई. के बीच का रहा है । ये पददक्षिण भारत के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को समझने में हमारी मदद करते है ।
प्रस्तुत पुस्तक में अनुवादक ने पदों की व्याख्या कर शैव आदोलन के विभिन्नआयामों पर प्रकाश डाला है और शैव भक्तों के चुनिन्दा पदों के अनुवाद कोसंकलित किया है । अनुवादक ने नायन्मार संतों के जीवनवृत्त को देकर उनकीऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित किया है ।
डॉ. ना. सुंदरम
डॉ. ना. सुंदरम (जन्म 1930) ने भक्ति काल पर विशेष रूप से कार्य किया है ।आपने मीरा और आंडाल के तुलनात्मक अध्ययन के अतिरिक्त तिरुवल्लुवर और 1 सुब्रह्मण्यम भारती की कविताओं का हिन्दी में अनुवाद किया है । हिन्दी के विभिन्न लेखकों को तमिल पाठकों से और तमिल रचनाकारों को हिन्दी पाठकों । से जोड्ने में इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है ।
डॉ. सुंदरम् को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने सर्वोत्तम अनुवाद पुरस्कार, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा ने रचनाकार सम्मान, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार तथा विश्व भारती, शांति निकेतन ने हिन्दी सेवी. पुरस्कार से सम्मानित किया है ।
प्राक्कथन
रामलिंग अडिहल् के माणिक्कवाचकर के प्रति यह भावपूर्ण उद्गार शैव साहित्य की महत्ता को उद्घाटित करते हैं । इसी प्रकार सुंदरमूर्ति कहते हैं- मैं तिल्लै में विराजे प्रभु के भक्तन-संतन का दासानुदास हूँ । शैव साहित्य के पदों में जटाजूटधारी, गंगाधर, त्रिपुर विनासक शिव का लीलामय विराटवर्णन है । सुंदरर, नंबि आंडार नंबि और शंक्किलार ने शैव साहित्य का संचयन कर शिव भक्तों का वर्णन किया है । मैंने इन भक्तों के द्वारा संकलित बारह तिरुमुरै ग्रंथों को आधार मानकर उन ग्रंथों के चुने हुए अंशों का हिन्दी भावानुवाद इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है । मैंने इन पदों का चयन करते समय-लोकप्रियता, काव्यात्मकता, भक्ति संवेदना आदि बातों को ध्यान में रखा है । इन बारह तिरुमुरै के अतिरिक्त भी शैव साहित्य का अनंत विस्तार है, पर मैंने ग्रंथ के कलेवर और सीमा निर्धारण के लिए बारह तिरुमुरै में से ही काव्यांशों का चयन किया है ।
धर्मपुर आदिनम" मठ से 1963 में प्रकाशित तेवारम् व माणिक्कवाचकर के पदों को मैंने इस अनूदित ग्रंथ का आधार बनाया है । धर्मपुर आदिनम से प्रकाशित ग्रंथ के आधार ही तमिष़ निलयम, चेन्नै ने तेवारम् तिरुवाचकम् परियपुराणम आदि के जनसुलभ संस्करण टीका के साथ सन् 1995 में प्रकाशित किए हैं । शैव साहित्य पर केन्द्रित डी. रवीन्द्र कुमार सेठ के कई ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं, इसके अतिरिक्त डॉ. शिशिर कुमार सिंह द्वारा अनूदित तिरुमूलर का हिन्दी अनुवाद केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की सहायता से प्रकाशित हुआ है । मैंने अपने इस ग्रंथ में उपर्युक्त ग्रंथों से सहायता ली है । माणिक्कवाचकर द्वारा विरचित तिरुवाचकम् का हिन्दी अनुवाद, जो कि मेरे द्वारा किया गया है, विश्वभारती, शांतिनिकेतन से दो खंडों मेंप्रकाशित हो चुका है । इसके साथ ही डी. रामसिंह तोमर के साथ मैंने तेवारम् के समस्त पदों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है । उपर्युक्त अनूदित सामग्री से भी मैंने इस संचयन में सहायता ली है । तिरुमूलर के पदों का अनुवाद प्रस्तुत करते समय शिशिर कुमार सिंह द्वारा किए गए अनुवाद से मैंने काफ़ी अंश सहायता हेतु लिया है । डी. रवीन्द्र कुमार सेठ के सराहनीय कार्य से भी मैं बहुत लाभान्वित हुआ हूँ । डी. रवीन्द्र कुमार सेठ और डी. शिशिर कुमार सिंह का मैं हृदय से आभारी हूँ ।
मैंने नायन्मारों के जीवनवृत्तों को लिखने के लिए अनेक ग्रंथों से सहायता ली है । उन संदर्भ ग्रंथों का विवरण परिशिष्ट में है । विशेषकर जीवनवृत्त देते समय जनश्रुति एवं किंवदंती और ऐतिहासिक आधारों के लिए तथा नायन्मारों के कलात्मक पक्षों का विवरण देते समय- धर्मपुर आदिनम से प्रकाशित ग्रंथ ही आधार रहा है । पदों की संख्या भी इसी ग्रंथ के आधार पर दी गई है ।
मैं साहित्य अकादेमी का भी हृदय से आभारी हूँ जिसने मुझे यह कार्य सौंपकर शिवभक्ति की ओर प्रवृत्त किया है ।
इस कार्य के निष्पादन में भाषा-केन्द्र के निदेशक प्रो. वृषभ प्रसाद जैन एव उनके सहयोगी मित्रों का मुझे विशेष योगदान मिला ।
डी. रामानुज अस्थाना ने इस समूचे कार्य को एक रूप देने में और अनुवाद आदि में मेरी बहुत सहायता की है । पांडुलिपि तैयार करने में उन्होंने अपना पूरा योगदान दिया है । इन सबको मैं शुभकामनाएँ देता हूँ । टंकण कार्य में सहयोग देने के लिए श्री मनोज कुमार द्विवेदी एवं श्री भालचंद्र सिंह को मैं हृदय से आशीर्वाद देता हूँ ।
मैंने आलवार साहित्य के संचयन का अनुवाद करते समय मूल तमिष़ पदों का देवनागरी लिप्यंतरण दिया था, पर इस ग्रंथ में मैंने मात्र हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है, जिससे पुस्तक का कलेवर सीमित और सुगठित रहे और अधिक पदों का हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत हो सके ।
अनुक्रम
प्रथम खंड
तिरुमुरै ग्रंथों के आधार पर शैव साहित्य का संक्षिप्त परिचय एवं शैव सिद्धांत
9
शैव साहित्य एक परिचय
शैव साहित्य
तिरुमुरै में संगीत तत्त्व
15
द्वितीय खंड
प्रथम, द्वितीय, तृतीय तिरुमुरै
22
चतुर्थ, पंचम, षष्ठ तिरुमुरै
44
सातवाँ तिरुमुऱै
75
आठवाँ तिरुमुऱै
115
नौवाँ तिरुमुऱै
144
153
ग्यारहवाँ तिरुमुऱै
176
बाहरवाँ तिरुमुऱै
186
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