पिछली पूरी एक शताब्दी में दो ही तरह की फिल्में बनी हैं। पहली तरह की फिल्में वे हैं जो फिल्म भाषा में बाहरी यथार्थ की पुनर्प्रस्तुति होती हैं। जो भी हमारे आसपास का या कहीं और का यथार्थ होता है उसके आधार पर बनी फिल्में प्रथम प्रकार की फिल्में हैं। उन्हें कहानी का रूप दिया गया तो वे फीचर फिल्म या कथा चित्र, और नहीं दिया गया तो वे तथ्य चित्र या वृत्त चित्र कहलाते हैं। ऐसी फीचर फिल्में ही व्यावसायिक सिनेमा हैं। फिल्म माध्यम कला माध्यम है। कहानी कला है। फिल्म कला है। फिल्म लेखन, अभिनय, सम्पादन, संगीत या निर्देशन कला है। पूरी फिल्मभाषा ही कला है। इसलिए फिल्में कला के बिना नहीं हो सकतीं। इसलिए कलासिनेमा या कला फिल्मों का कोई अन्य प्रकार नहीं होता। न हो सकता है। कलाफिल्म कोई संज्ञा नहीं हो सकती। फिल्मकला एक सुन्दर और अद्भुत संज्ञा है। कलाभाषा का अद्भुत चाक्षुष लोक।
दूसरी तरह की फिल्में फिल्मभाषा या कलाभाषा में बाहरी यथार्थ की पुनर्प्रस्तुति नहीं होतीं। ये फिल्में कवि के अन्तःसंसार का रूपायन होती हैं। ऐसी फिल्में कवि के आन्तरिक जगत को प्रतिविम्बित करती हैं। इस आन्तरिक जगत में बाहरी यथार्थ भी रहता है लेकिन मुख्य रूप से कवि या फिल्मकार की निजी अनुभूतियां, अन्तर्दृष्टि, स्वप्न, मनुष्य और उसकी पृथ्वी को लेकर एक सुनिश्चित दर्शन और आध्यात्मिक उपलब्धि या तलाश होती हैं। इसी आन्तरिक लोक का रूपायन कलाभाषा यानी फिल्मभाषा में होता है। जैसे ऋषि होने का अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास दृष्टि या विजन है, उसी प्रकार दूसरी तरह की फिल्में वे हैं जिनके जरिये फिल्मकार अपनी दृष्टि या विजन को हमसे साझा करता है।
क्लासिक सिनेमा या काव्यस्पर्शीय फिल्में
पिछली पूरी एक शताब्दी में दो ही तरह की फिल्में बनी हैं। क्योंकि दो ही तरह की फिल्में बन सकती हैं। पहली तरह की फिल्म वह है जो फिल्मभाषा में बाहरी यथार्थ की पुनर्प्रस्तुति होती है। जो भी हमारे आसपास का या कहीं और का यथार्थ होता है उसके आधार पर बनी फिल्में प्रथम प्रकार की फिल्में हैं। उन्हें कहानी का रूप दिया गया तो वे फीचर फिल्म या कथाचित्र, और नहीं दिया गया तो वे तथ्यचित्र या वृत्तचित्र कहलाते हैं। तथ्यचित्रों में यथार्थ, स्थिति या तथ्यों का अविकल फिल्मांकन होता है। जब ऐसा यथार्थ किसी कहानी के रूप में फिल्मों में होता है तो इस कथाचित्र या फीचर फिल्म को देखकर हमें लगता है कि काश ऐसा हुआ होता या कहीं ऐसा न हो जाय। जब हो जाता है तो उनकी वीडियो रेकॉर्डिंग या उन पर बनी फिल्म तथ्यचित्र है। अन्यथा, फीचर फिल्म या कथाचित्र। यथार्थ-आधारित ऐसी कहानियां फिल्म के लिए फिल्मभाषा में लिखी भी गयी हैं और पहले से लिखी कहानी या उपन्यास के आधार पर भी बनती गयी हैं। ये हुई पहली तरह की फिल्में। इन्हें व्यावसायिक सिनेमा कहा जाता है। ये व्यावसायिक फिल्में हैं। फिल्म व्यवसाय या उद्योग, फिल्म के इसी प्रकार पर निर्भर है। फिल्ममाध्यम कलामाध्यम है। कहानी कला है। फिल्म कला है। फिल्मलेखन, अभिनय, सम्पादन, संगीत या निर्देशन कला है। पूरी फिल्मभाषा ही कला है। इसलिए फिल्में कला के बिना नहीं हो सकतीं। इसलिए कलासिनेमा या कलाफिल्मों का कोई अन्य प्रकार नहीं होता। न हो सकता है। कलाफिल्म कोई संज्ञा नहीं हो सकती। फिल्मकला एक सुन्दर और अद्भुत संज्ञा है। कलाभाषा का अद्भुत चाक्षुष लोक।
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