वेदों के उद्भट विद्वान्, प्रस्थानत्रयी (गीता, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र) के प्रख्यात व्याख्याता एवं प्रशस्त भाष्यकार, अनेक आध्यात्मिक ग्रन्थों के रचयिता आद्य शंकराचार्य अध्यात्म जगत् के एक महान् तत्त्ववेत्ता थे। विद्वानों, साधकों, मुमुक्षुओं, जिज्ञासुओं एवं ज्ञानियों के लिए भी उनके द्वारा रचित ग्रन्थ समानरूप से लाभकारी हैं। आचार्य शंकर द्वारा रचित यह छोटी रचना "चर्पट पञ्जरिका स्तोत्रम्" "मोह मुद्गर" तथा "भज गोविन्दम्" नाम से भी विख्यात है।
प्रस्तुत रचना जगत-जंजाल में फंसे हुए मानवों को तो ज्ञान-वैराग्य की शिक्षा देती ही है; जिज्ञासुओं, विद्वानों, साधकों तथा ज्ञानी-वैरागियों को भी सतत् साधना के पथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा प्रदान करती है।
इसीलिए अनेक विद्वानों, शिक्षा-शास्त्रियों और कई संस्थाओं ने इसके अनुवाद का यथा संभव प्रयास किया है, किन्तु विद्वानों द्वारा इसका अनुवाद तत्त्वबोध के अभाव में सुबोध और हृदयग्राह्य न होकर क्लिष्ट और दुरूह बनकर रह गया है।
अतः हमारी संस्था मानव उत्थान सेवा समिति ने जन-साधारण तक आचार्य की यथार्थ भावना को पहुँचाने हेतु इस रचना का सरल, सुबोध, भाव-प्रबोधक अनुवाद करने का विचार किया।
इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु मैंने इसके अनुवाद का लघु प्रयास किया है। यूँ तो आचार्य शंकर जैसे अद्वितीय विद्वान् की रचना पर व्याख्या और अनुवाद मेरे जैसे अल्प-बुद्धि के लिए आकाश के चाँद को छूने जैसा कठिन कार्य है; क्योंकि मैं न तो विद्वान् हैं, और न ज्ञानी ही। तथापि मुझे सद्गुरु-कृपा का महान् संबल और सहारा है। सचमुच ही हृदय-आराध्य कृपासिन्धु सद्गुरुदेव 'श्री सतपाल जी महाराज की अहेतुकी कृपा से इसका अनुवाद अत्यन्त सहजता से सम्पन्न हो गया है। वस्तुतः इसमें मेरा कुछ भी प्रयत्न नहीं है; क्योंकि सद्गुरु-कृपा से अध्यात्म के गुप्त से गुप्त रहस्य भी स्वतः प्रकट हो जाते हैं।
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