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संगीत शिक्षा के बदलते आयाम: The Changing Face of Music Education

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Item Code: HAH046
Author: TULIKA PANDIT
Publisher: Kanishka Publishers Distributors
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789393322579
Pages: 200
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.00x6.00 inch
Weight 370 gm
Fully insured
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100% Made in India
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Book Description
प्राक्कथन

संगीत एक कला है। कला रचना शक्ति की देन है। अस्तु, संगीत में भी रचना शक्ति समाहित है। संगीत बोल, ध्वनि एवं भावना प्रकट करने के अनेक सिद्धान्तों की मंजुषा है। ये सिद्धान्त विभिन्न संगीतज्ञों की रचनाएं हैं। संगीत स्वर, ताल एवं भाव-भंगिमा का रचनात्मक प्रकाशन है जो गायन, वादन और नृत्य रूप में प्रकट होता है।

शिक्षा मानव के चतुर्दिक विकास में सहायक होती है। बालक की अन्तर्निहित प्रगति को व्यक्त करना ही शिक्षा है। मस्तिष्क, हृदय तथा शरीर का सन्तुलित विकास न हुआ तो शिक्षा अधूरी रह जाती है। संगीत की शिक्षा हृदय विकास की सद्भावना, प्रेम प्रभूति सद्‌गुणों का सृजन, कल्याण की भावना आदि को विकसित करती है। संसार की कायापलट रचना शक्ति का परिणाम है। सुई से लेकर चन्द्रलोक तक यात्रा करने वाले स्पुटनिक तथा चंद्रयान 3 तक का आविष्कार तथा खोज रचना शक्ति के कारण ही संभव हुआ है। संगीत इस रचना शक्ति के विकास में सहायक है, अस्तु शिक्षा में संगीत का महत्व है।

संगीत का सम्बन्ध मानव समाज की कलात्मक उपलब्धि से है, सभ्यता एवं संस्कृति के संरक्षण में इसका महत्वपूर्ण योग है। आरंभ में संगीत विद्या का आदान-प्रदान गुरु शिष्य परम्परा के द्वारा सम्पन्न होता रहा। व्यक्तिगत संगीत शिक्षण की इस परम्परा में वही लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते थे जिनमें संगीत की नैसर्गिक प्रतिभा, अनुकरण की क्षमता और सीखने की अतीव उत्कंठा या तड़प होती थी। स्वाभाविक रूप से ऐसे लोगों की संख्या अत्याल्प होती थी तथा आज के लोकतान्त्रिक समाज में इस परम्परा का निर्वाह यदि असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन अवश्य है। इक्कीसवीं शताब्दी के आधुनिक परिवेश में किसी भी विषय में गुरू शिष्य परम्परा की व्यक्तिगत शिक्षण प्रणाली न तो उपयुक्त ही है और न उचित ही। परिस्थितियों के अनुसार संगीत शिक्षण में परिवर्तन आया तथा गुरुकुलों व आश्रमों के साथ-साथ संगीत शिक्षा घरानों में, तत्पश्चात् संस्थाओं व विश्वविद्यालयों में दी जाने लगी। जिसकी वजह से आज बहुसंख्यक विद्यार्थियों की शिक्षा की कामना पूरी हो पा रही है।

किसी भी कार्य को करते समय जो भी समस्याएं आती हैं, उनका निराकरण कर आगे बढ़ना व कार्य को सुचारू रूप से सम्पन्न करना विचारशील मनुष्य का कर्तव्य है। इसी दृष्टि से संगीत के शिक्षा क्षेत्र में नित्य नवीन उभरने वाली समस्याओं पर चिन्तन, मनन कर तथा उन समस्याओं को दूर कर एक स्वच्छ संगीत शिक्षा प्रणाली का उद्भव हो सके ऐसा प्रयास आवश्यक है।

आज एक मान्यता सी हो गई है कि शिक्षा प्राप्त करने का अर्थ कोई उपाधि लेना है परन्तु मात्र उपाधि को पूर्ण शिक्षा नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि किसी भी वस्तु का प्रायोगिक या विस्तारपूर्वक ज्ञान न होने पर विश्लेषणात्मक विवेचन करना सम्भव नहीं होगा। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से उपाधि लेकर एक विद्यार्थी जब शिक्षक बन जाता है तब उसके लिये विषय के सभी क्षेत्रों का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है। अतः उसकी विचार शक्ति इतनी प्रबल होनी चाहिए कि वह अध्ययनरत रहकर आने पाली पीढ़ी को सही दिशा दे सके।

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