हे लोगो । तुम्हारे जीवन के तक बीत चुके हैं और शीघ्र ही निकट आ रहा है। कोरी कल्पना के सहारे बनाई दिन काफी हद तुम्हारा अन्त इसलिये, अपनी गई उन चीजों का तुम त्याग कर दो, जिनसे तुम चिपके हुए हो और ईश्वर के आदेशों का दृढता के साथ अनुपालन करो ताकि तुम सौभाग्यवश वह प्राप्त कर सको जो उसने तुम्हारे लिये निर्धारित किया है और उनमें बनो जो सही मार्ग का अनुसरण करते हैं। दुनिया की चीजों और उनके मिथ्या अलंकरणों से प्रसन्नता मत प्राप्त करो और न ही उनसे कुछ उम्मीद लगाओ। सर्वोपरि, सर्वमहान ईश्वर पर अपना भरोसा रखो । शीघ्र ही वह उन सब चीजों को ध्वस्त कर देगा जो तुम्हारे पास हैं। उसे ही अपना भय मानो और अपने साथ उसकी संविदा को मत भूलो और नाहि उनमें से बनो जो एक पर्दे के कारण उससे दूर रहा करते है।
सृष्टि के आरम्भ से अब तक महान धर्मगुरूओं ने सार्थक जीवन जीने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश दिये हैं, लेकिन उन्होंने इस यात्रा के वर्णन के लिए अलग-अलग प्रतीकों का इस्तेमाल किया है। लगभग चालीस सौ साल पहले पामिस्ट ने बड़ी सहजता से लिखा 'मुझे अनन्त पथ की ओर अगसर करो। ईसा मसीह ने अपने शिष्यों को शिक्षा दी 'जीवन-पथ का द्वार संकीर्ण है और रास्ता कठिन।' इसके लगभग 600 सालों के बाद मुहम्मद साहब ने कहा 'अल्लाह केवल उन्हें रास्ता दिखलाते हैं जो शांति के मार्ग पर उनके कृपापूर्ण आशीष की कामना करते हैं। यह और अन्य सभी धर्मों की परम्परायें अलग-अलग उदाहरणों से उसी 'मार्ग' या 'पथ' का वर्णन करती हैं। इन सब ने आध्यात्मिक विकास की एक जैसी ही प्रक्रिया बतलाई है।
आज मानवजाति को बहाउल्लाह के प्रकटीकरण के आध्यात्मिक जीवन-यात्रा का सर्वाधिक स्पष्ट वर्णन मिलता है, हालाँकि आध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त करने के मार्ग में मुश्किलें और बाधाएँ हैं। इसलिए, अब्दुल-बहा ने कुछ व्यक्तिगत कसौटियाँ निर्धारित की हैं जिनमें मानव पर आत्मा के वस्तुतः 'विकासोन्मुख होने की जाँच की जा सकती है।
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