पुस्तक के बारे में
भारतीय समाजवाद की त्रयी में आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण के साथ डा. राममनोहर लोहिया का नाम आता है। भारतीय राजनीति के अद्भुत व्यक्तित्व, सृजनशील रहने वाले निष्काम कर्मयोगी के रूप में लोहिया नौजवान पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-स्रोत बने रहेंगे । वे विश्व इतिहास के उन चंद व्यक्तियों में शामिल थे जो द्वैत से ऊपर उठकर सबके प्रति सम्यक् और समान दृष्टि रखते थे।
यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व को जानने और उनके विचारों को समझने के उद्देश्य से लिखी गई है। पुस्तक के लेखक डा. मस्तराम कपूर जाने माने लेखक हैं । आपने स्वतंत्रता सेनानी ग्रंथमाला के 11 खंडों का संपादन किया है। आपके दर्जनों उपन्यास, कहानी संग्रह और बाल उपन्यास भी प्रकाशित हो चुके हैं।
लेखक की ओर से
इस पुस्तक में डा. राममनोहर लोहिया के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व की एक झलक मात्र प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। भारतीय राजनीति का यह ऐसा व्यक्तित्व है जिसे समझना उन लोगों के लिए करीब-करीब असंभव है जो बंधी बधाई धारणाओं का बोझ अपने दिलों व दिमागों पर अनजाने ढोते रहे हैं। ये बंधी बधाई धारणाएं चाहे अंग्रेजी के माध्यम से प्राप्त पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति से आई हों या भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उन रूपों से जो अपनी ऊर्जस्विता खोकर बेजान और रूढ़ हो गए हैं। लेकिन उन नौजवान पीढ़ियों के लिए जिनका दिमाग खुला है और जो भविष्य की तलाश में किन्हीं जोखिम भरे रास्तों पर चलने को तैयार हैं, लोहिया के व्यक्तित्व को समझना मुश्किल नहीं होगा, बल्कि लोहिया में उन्हें एक विश्वसनीय मार्गदर्शक साथी मिलेगा। लोहिया ने अपने को पहाड़ खोदकर, जंगलों के झाड़-झंखाड़ काटकर और नदियों पर पुल आदि बनाकर यात्रा का मार्ग सुगम करने वाले 'सैपर्स और माइनर्स दल का सिपाही कहा था और इसके लिए लोकभाषा से शब्द लेकर ।हुत खूबसूरत नाम सफरमैना दिया था ।
मेरा प्रयत्न रहा है कि यह पुस्तक, पृष्ठों की सीमा के भीतर. कम से वाम बोझिल किंतु अधिक से अधिक जिज्ञासाओं को जगाने वाली बने । इसीलिए मैंने आवश्यक संदर्भों के विस्तृत विवरण देने के बजाय (जिसका विद्वानों तथा शोधार्थियों में अधिक प्रचलन है) संकेत मात्र दिए हैं। जीवन-यात्रा से संबंधित दूसरे अध्याय का प्रमुख स्रोत चूंकि श्रीमती इंदुमति केलकर की पुस्तक लोहिया है अत: इसमें दिए गए वे उद्धरण जिनके साथ स्रोत का उल्लेख नहीं है, इसी पुस्तक के मान लिए जाने चाहिए । अन्यत्र यथास्थान स्रोत का उल्लेख किया गया है।
लोहिया के विचारों की तपिश को सहन करना आसान नहीं है। उनके समय में और उनके निधन के बाद के विगत 36 वर्षों में भी, उनके विचारअधिकांश लोगों के लिए असह्य तपिश भरे रहे हैं। यह बात उन सभी महापुरुषों पर लागू होती है जिन्होंने मानव-समाज को नई दिशा दी है। अपने समय में बदनाम और उपेक्षित ये महापुरुष समय बीतने के साथ-साथ अधिकाधिक प्रासंगिक बने हैं। डा. लोहिया भी इसी श्रेणी में आते हैं। उनकी बताई सात क्रांतियों की प्रक्रिया इक्कीसवीं शताब्दी में और तीव्र होगी, इसके संकेत मिल रहे हैं। इन क्रांतियों को अपनी तार्किक परिणति तक ले जाने का दायित्व नौजवान पीढ़ियों पर ही होगा ।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (876)
Agriculture (85)
Ancient (994)
Archaeology (567)
Architecture (525)
Art & Culture (848)
Biography (587)
Buddhist (540)
Cookery (160)
Emperor & Queen (489)
Islam (234)
Jainism (271)
Literary (868)
Mahatma Gandhi (377)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist