भारतीय दर्शन
भारतीय दर्शन के मूर्धन्य विद्वान् और यशस्वी लेखक प्रोफेसर डॉ० चन्द्रधर शर्मा के अंग्रेजी भाषा मेंए क्रिटिकल सर्वे ऑफ इन्डियन फिलॉसोफीनामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के - जिसके अब तक देश में कई संस्करण और विदेशों में ब्रिटिश तथा अमरीकी संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं - हिन्दी रूपान्तर की हिन्दी-प्रेमी विद्यार्थियों और पाठकों को वर्षों से प्रतीक्षा थी । यह हर्ष का विषय है कि स्वयं प्रोफेसर चन्द्रधर शर्मा द्वारा कृत उनके इस ग्रन्थ का हिन्दी में संशोधित तथा परिष्कृत रूपान्तरभारतीय दर्शन: आलोचन और अनुशीलनशीर्षक से प्रकाशित हो रहा है ।
इस ग्रन्थ में प्रोफेसर शर्मा ने अपने उक्त अंग्रेजी ग्रन्थ के कई अंशों को हिन्दी में नवीन परिशोधित रूप में लिखा तथा आवश्यक परिवर्तन किए हैं जिससे इस ग्रन्थ की महत्ता और उपादेयता और बढ़ गई है । इस ग्रन्थ में भारतीय दर्शन के विविध सम्प्रदायों का, मूल ग्रन्थों के आधार पर, निष्पक्ष, प्रामाणिक, तुलनात्मक और आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है । दर्शन के गूढ़, जटिल और दुरूह विषयों को सरल तथा सुस्पष्ट रूप में प्रतिपादित किया गया है जिसमें प्रोफेसर शर्मा सिद्धहस्त हैं । भारतीय दर्शन के हिन्दी प्रेमी विद्यार्थियों, जिज्ञासुओं और प्रबुद्ध पाठकों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी और उपादेय है ।
प्रस्तावना
यह ग्रन्थ मेरे भारतीय दर्शन के मूल ग्रन्यों के अनेक वर्षों के गहन अध्ययन पर आधृत है । विविध भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों के आलोचन, विवेचन और मूल्यांकन में मैंने यथासम्भव निष्पक्ष दृष्टि अपनाई है तथा कई गढ़़ दुरूह और जटिल विषयों को सरल और सुस्पष्ट रूप में प्रस्तुत करने का पूर्ण प्रयत्न किया है । दार्शनिक सम्प्रदायों के यथामति विवेचन में विद्वानों में मतभेद हो जाना अस्वाभाविक नहीं है किन्तु इससे हमें यह अधिकार प्राप्त नहीं होता कि हम मतभेद के नाम पर अपने उन पूर्वाग्रह-ग्रस्त विचारों को किसी दार्शनिक सम्प्रदाय पर बलात् आरोपित करें जो उस सम्प्रदाय के मौलिक ग्रन्यों में स्पष्टतया प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रतिकूल हों । यह ग्रन्थ भारतीय दर्शनों के विविध सम्प्रदायों का निष्पक्ष प्रामाणिक और आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास करता है । इसके विवेच्य विषय अत्यन्त व्यापक और विस्तृत हैं, अत: यह ग्रन्थ उनके सर्वांगीण सविस्तार विवेचन का दावा नहीं करता; एक ग्रन्थ में यह सम्भव भी नहीं है ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा १९४७ में डी. फिल. की उपाधि हेतु स्वीकृत बौद्ध दर्शन और वेदान्त में द्वद्वात्मक तर्क शीर्षक अपने शोध-प्रबन्ध से तथा उसी विश्वविद्यालय द्वारा १९५१ में डी. लिट् की उपाधि हेतु स्वीकृत भारतीय और पाश्चात्य दर्शन में द्वन्द्वात्मक तर्क का प्रभुत्व शीर्षक अपने शोध-प्रबन्ध से ली गई सामग्री का मैंने अपने उक्त आग्लभाषारचित ग्रन्थ २ क्रिटिकल सर्वे ऑफ इन्डियन फिलॉसोफी में समावेश किया है । इस हिन्दी ग्रन्थ में भी उक्त सामग्री के कुछ अंशों का कहीं-कहीं उपयोग किया गया है ।
मैं सहर्ष उन सभी सम्माननीय विद्वानों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ जिनसे या जिनकी कृतियों से मुझे प्रेरणा और सहायता मिली है । प्रोफेसर सुरेन्द्रनाथ दासगुप्त प्रोफेसर सर्वपल्ली राधाकृष्णन् प्रोफेसर मैसूर हिरियन्ना और प्रोफेसर हरिदास भट्टाचार्य का मैं विशेष आभारी हूँ । इलाहाबाद विश्वविद्यालय का दर्शनविभाग जिनके आचार्यत्व से गौरवान्वित और विख्यात हुआ उन अपने गुरुवर प्रोफेसर रामचन्द्र दत्तात्रेय रानडे तथा प्रोफेसर अनुकूलचन्द्र मुकर्जी प्रस्तावना को मैं सादर प्रणाम करता हूँ जिनसे मैंने दर्शनशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया तथा जिनकी कृपा से मेरी विद्या फलवती हुई । मैं अपने पूज्य ब्रह्मलीन पितृचरण को सादर प्रणाम करता हूँ जिनके आशीर्वाद का प्रकाश मेरे जीवन-पथ को आलोकित करता रहा है । मैं पूज्यपाद श्रीराधा बाबा को सादर प्रणाम करता हूँ जिनकी अहैतुकी कृपा से यह ग्रन्थ प्रकाश में आ रहा है । मेरे अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थ क् क्रिटिकल सर्वे ऑफ इन्डियन फिलॉसोफी के प्रकाशक मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली इस हिन्दी-ग्रन्थ को भी प्रकाशित कर रहे हूँ इसके लिये मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ ।
विषय-सूची
1
वेद और उपनिषद्
2
भगवद्गीता
3
चार्वक दर्शन
4
जैन दर्शन
5
प्रारम्भिक बौद्ध दर्शन
(क)
भगवान् बुद्ध के दार्शनिक सिद्धान्त
(ख)
हीनयान दर्शन
6
शून्य या माध्यमिक दर्शन
7
विज्ञानवाद या योगाचार दर्शन
8
स्वतन्त्र-विज्ञानवाद या सौत्रान्तिक योगाचार दर्शन
9
सांख्य दर्शन
10
योग दर्शन
11
वैशेषिक दर्शन
12
न्याय दर्शन
13
पूर्वमीमांसा दर्शन
14
शङ्कराचार्य के पूर्व का अद्वैत वेदान्त दर्शन : गौडपादाचार्य
15
शङ्कराचार्य का अद्वैत वेदान्त दर्शन
16
शङ्कराचार्योतर अद्वैत वेदान्त दर्शन
17
बौद्ध और वेदान्त दर्शन
18
रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत वेदान्त दर्शन
19
वेदान्त के अन्य सम्प्रदाय
20
शैव तथा शाक्त सम्प्रदाय
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