निवेदन
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने अपने जीवनकालमें स्थान- स्थानपर बहुत ही भगवदविषयक प्रवचन दिये, उनका एकमात्र उद्देश्य था कि हमलोगोंका, मनुष्यमात्रका उद्धार हो। इन प्रवचनोंके अन्तर्गत एक बहुत ही रहस्यमय बात पड़ी गयी । उसमें बताया गया कि भगवान् रामचन्द्रजी जब अन्तर्धान होने लगे तो अयोध्यावासियोंको सरयूकी धारमें गोता लगवाकर अपने साथ परमधाम ले गये। भगवान् श्रीकृष्णने ऐरे (एक प्रकारकी घास) की धारसे यदुवंशियोंका उद्धार किया। इसी प्रकार मैं (गोयन्दकाजी) पुस्तकों एवं सत्संगद्वारा मनुष्योंका उद्धार करता हूँ। यह बात पढ़-सुनकर हमारे रोमांश हो जाना चाहिये। ऐसे अधिकार-प्राप्त महापुरुषके प्रवचन हमें सुनने-पढ़नेको मिल जायँ, यह हमारा कितना अहोभाग्य है। ऐसे प्रवचनोंको पढ़कर, मननकर जीवनमें लाकर हम केवल अपना उद्धार ही नहीं, अनेक भाई-बहिनोंका उद्धार करानेमें सहायक हो सकते हैं। उन्हीं महापुरुषके समय-समयपर दिये गये हुए प्रवचनोंको कई सजनोंने लिख लिया एवं टेप कर लिया।
भाई-बहिनोंको उन प्रवचनोंसे लाभ मिल जाय, इस हेतु उन प्रवचनोंको पुस्तकोंका रूप देकर प्रकाशित किया जा रहा है। हमें आशा है कि आपलोग इन प्रवचनोंको मनोयोगपूर्वक पढकर लाभ उठायेंगे।
विषय-सूची
1
भगवत्प्राप्तिमें भावकी प्रधानता
2
कर्तव्य- पालन एवं दूसरोंके अधिकारकी रक्षा
15
3
निष्कामभावकी सूक्ष्मता
32
4
सत्संगका रहस्य
41
5
महात्मासे कैसे लाभ उठावें
51
6
पात्रता एवं श्रद्धा
56
7
सगुण- साकार भगवान्का दर्शन एवं प्रभाव
71
8
महत्वपूर्ण बात
88
9
मनुष्य- जीवनकी सफलताका उपाय
105
10
वीरताका रहस्य
120
11
कल्याण-प्राप्तिका सरल साधन
129
12
भगवान् एवं महात्माका प्रभाव
135
13
साधन तीव्र करनेके लिये प्रेरणा
143
14
भगवत्स्मृतिकी महिमा
153
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