पुस्तक-परिचय
भृगु के नाम पर ऐसी भी पुस्तकें प्रकाशित हो रही है जिनका भृगुकालीन होना संदेहास्मद है । भृगु-नवनीतम 'तथा' भृगु-सूत्रम् तथा 'भृगु-सहितोक्त श्लोको को ही सम्मिलित किया हे क्योकि हजारों वर्षो से श्रुति-स्मृति के माध्यम से इन्हीं दोनों का देशव्यापी प्रचार होता रहा है । सम्मत के सूत्रों तथा श्लोकों की बोधगम्य व्याख्या पाठकों को उल्लसित करेगी । देश-काल-पात्र-परिवर्तन के आलोक में लेखक ने सूत्रो तथा श्लोकों के सन्दर्भ में जो नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है उससे पाठक लाभन्वित होंगे । पुस्तक उपयोगी तथा स्वागत-योग्य है ।
लेखक-परिचय
इस पुस्तक के लेखक श्री के.के. पाठक गत चालीस वर्षो से ज्योतिष-जगत में एक प्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं । ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व एल्फा पब्लिकेशन ने लिया है ताकि पाठकों की सेवा हो सके ।
आदरणीय पाठकजी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं। यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए । इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षो तक कार्यरत रहने के पश्चात सन् 1993 ई. में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए।
"इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज" द्वारा सन् 1998 ई. में आदरणीय पाठकजी को "ज्योतिष भानु" की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् 1999 ई. में पाठकजी को "आर संथानम अवार्ड" भी प्रदान किया गया ।
ऐस्ट्रो-मेट्रोओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है ।
हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं ।
प्राक्कथन
हिन्दू-ज्योतिष के प्रमुख संस्थापकों में एक भृगु ऋषि भी थे। पितामह, कश्यप तथा नारद के पश्चात् ही भृगु का स्थान वरीयता क्रम में आता है। वह परशुराम के पिता थे। उनका जन्मकाल 5000-6000 वर्ष ई. पू० था ।
भृगु वशिष्ठ, पराशर, गर्ग तथा जैमिनी से पूर्व हुए थे । हिन्दी होराशास्त्र को भृगु ने ही सर्वप्रथम ठोस रूप प्रदान करके पराशर, जैमिनी तथा यवनाचार्यों के लिये मार्ग प्रशस्त कर दिया । अत: होराशास्त्र के आदि प्रवर्तक के रूप में भृगु ही मान्यता प्राप्त करने के सक्षम अधिकारी हैं।
भृगु की सर्वाधिक विश्वसनीय कृति ह्रभृगु-सूत्रमह है जिसे गत सात हजार वर्षो से श्रुति-स्मृति तथा तालपत्र के माध्यम से लोगों ने बचाकर रखा है । भृगु-सूत्रम् में सूर्यादि नौ ग्रहों के कुंडली के बाहर भावों में स्थित होने पर जो संभाव्यफल हैं उन्हें दर्शाया गया है। स्पष्ट है कि ये फल ग्रह। तथा भावों के कारक तथा नैसर्गिक गुणों पर ही आधारित हैं। इसे वर्त्तमान पुस्तक के प्रथम खंड में दर्शाया गया है।
द्वितीय खंड में तथाकथित भृगु-संहिता में वर्णित बारह भावेशों के बारह भावा में जो संभाव्यफल हैं उन्हें दर्शाया गया है।
भृगु तथा अन्य ऋषियों ने बहुत से फल ऐसे भी बतायें हैं जो आज प्रसंगहीन हो गये है तथा आज के परिवर्तनशील युग में नये सिरे से भी कुछ फलों पर विचार करना आवश्यक हो गया है। वर्तमान पुस्तक में मैंने दोनों ही पहलुओं पर ध्यान देते हुए जहां आवश्यक समझा वहां क्षेपक अथवा टिप्पणी दे दी है।
वर्ष 1999 में निष्काम पीठ प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित मेरी अंग्रेजी पुस्तक "Bhrigu or Predictive Astrology" इस दिशा में प्रथम प्रयास रही जिसका पाठकों ने पुरजोर स्वागत किया तथा दो वर्षो बाद ही उसका द्वितीय संस्करण निकालना पड़ा ।
वर्तमान पुस्तक 'भृगु-नवनीतम्' उपरोक्त अंग्रेजी पुस्तक का मात्र हिन्दी अनुवाद न होकर उससे कई कदम आगे है। अंग्रेजी पुस्तक में कोई संस्कृत श्लोक नहीं था जबकि वर्तमान पुस्तक में भृगु-सूत्र तथा भृगु-संहिता के सभी श्लोक देकर ही उनके हिन्दी अनुवाद दिये गये हैं। अंग्रेजी पुस्तक की तुलना में वर्तमान पुस्तक में बहुत से नये तथा महत्वपूर्ण क्षेपक और टिप्पणी दिये गये हैं । उपरोक्त कारणों से वर्तमान पुस्तक और भी अधिक उपयोगी हो गयी है, विशेषकर हिन्दी के पाठकों के लिये । आशा है हिन्दी के पाठक इस पुस्तक का पुरजोर स्वागत करेंगे ।
भृगु द्वषि तथा उनके पुत्र भार्गव परशुराम अनन्य शिवभक्त थे। अत: भृगु-नवनीतम गणपति-शिव-पार्वती को महानतीज तथा गणेश चौथ पर्व के शुभ अवसर पर अर्पित है।
विषय-सूची
1
रविफलम्
2
चन्द्रफलम्
9
3
भोमफलम्
16
4
बुधपालम्
24
5
गुरुफलम्
31
6
शुक्रफलम्
38
7
शनिफलम्
45
8
राहु केतु फलम्
51
भावेश फलम्
55
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