दो शब्द
स्वतंत्र भारत में हमारे संगीत ने एक नई करवट ली है । प्राचीन महाराजाओं और नवाबों की विरासत में पलनेवाला संगीत आज जनसाधारण की कला के रूप में सामने आ गया है । दिन भर की कड़ी मेहनत और उद्योग धंधों से छुट्टी पाने के बाद शाम को प्रत्येक प्राणी सुख अनुभव करने के लिए तथा गृहस्थ और समाज का मनोरंजन करने के लिए संगीत की रसमयी स्वरलहरियों में डूब जाना चाहता है । उस समय वह सारी थकान जोर दुःखों को भूलकर अपने प्रिय गीत अथवा वाद्य के सहारे जानपद की दृष्टि करने लगता है ।
हममें से बहुत से रसज्ञ व्यक्ति अपने इच्छित वाद्यों द्वारा मनोरंजन करने में सफल हो जाते हैं । किन्तु कुछ व्यक्ति, जो वाद्य बजाना नहीं जानते, वे उस पीड़ा का अनुभव चुपचाप हृदय में करते रहते हैं । अच्छे शिक्षक अथवा धन के अभाव में वे अपना इच्छित वाद्य सीखने में असमर्थ रहते हैं ।
बैंजो आज का सबसे सस्ता और लोकप्रिय वाद्य है । बेंजो बजाने की सरल तरकीब पर अनेक व्यक्तियों ने पुस्तकें लिखने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक वे कोई ऐसा ढंग पेश नहीं कर सके हैं, जिससे कि साधारण पढ़ा लिखा व्यक्ति भी अपनी मनोकामना पूरी करने में समर्थ हो सके ।
आकाशवाणी, दिल्ली से प्रसारित होनेवाले वाद्यवृन्द के सदस्य तथा अनेक वाद्यों के कुशल वादक श्री चिन्तामणि जैन ने हमारे तान रोध पर संगीत जगत् के चले आ रहे इस अभाव की पूर्ति करके यह पुस्तक सरल भाषा में कठिन परिश्रम द्वारा तैयार की है । हमें विश्वास है कि उनका प्रयास और हमारी प्रेरणा, बैंजो सीखने वाले दिज्ञासुओं की सहायता करने में पूर्णरूपेण सफल सिद्ध होगी ।
भूमिका
मुझे मेरे एक मित्र ने बैंजो मास्टर लिखने के लिए जब पत्र लिखा, तो मुझे बड़ा कौतूहल हुआ इसलिए नहीं कि मैं कोई बड़ा कलाकार या लेखक हूँ और एक छोटे से नाचीज खिलौने (प्रारम्भ में बैंजो खिलौनों की दूकानों पर मिलते थे, अतएव जनसाधारण की दृष्टि में यह एक खिलौना मात्र था) पर कुछ लिखकर अपना और पाठकों का समय नष्ट करूँ, वरन् मुझे तो इसलिए कुछ आश्चर्य हुआ कि लोगों ने इसके मनमाने नामकरण किए हुए हैं जैसे बुलबुलतरंग, झुनझुना, तुनतुना आदि । इन नामों को सुनकर ही हंसी आती है । साथ ही जनसाधारण की रुचि का भी इन नामों से पता लगता है, तब ऐसे हास्यास्पद वाद्य पर लिखी हुई पुस्तक भी हँसी का कारण बनती है लो साहब, खिलौने से खेलने के लिए भी पुस्तक या गाइड की जरूरत है । इसके अतिरिक्त कई बैंजो गाइड बाजार में मिलती भी हैं, फिर एक और पुस्तक लिख वाकर मेरे मित्र मेरी समझ में कोई लाभप्रद कार्य नहीं कर रहे हैं । खैर, फिर भी मैं बाजार गया, दो तीन पुस्तकें बैंजो सम्बन्धी देखीं, तब मुझे अपने मित्र के लिखने की सार्थकता प्रतीत हुई । वस्तुत इनमें कोई भी पुस्तक ऐसे ढंग से लिखी हुई नहीं मिली, जिससे थोड़ा सा पढ़ा लिखा आदमी भी कुछ लाभ उठा सके । मैंने स्वयं एक आध धुन इनमें लिखी गिनतियों के आधार पर गुन गुनाकर देखी, तो मुझे भी उलझन मालूम हुई और जब विशेष ध्यानपूर्वक देखी गएँ, तो अनेक स्वरलिपियाँ अशुद्ध भी दिखाई दीं ।
कुछ पुस्तकों में तो केवल चाभियों के निशान या नंबर गाने के साथ साथ दिए हैं, स्वर नहीं दिए । ऐसा होने से उन लोगों के लिए वे पुस्तकें बिलकुल बेकार हो गई, जिनके पास नए डिजाइन के बैंजो हैं, जिनमें कि हारमोनियम की तरह स्वरों की चाभियाँ बनाई गई हैं । और, ऐसे ही बैंजो आजकल प्रचार में अधिक दिखाई दे रहे हैं ।
इन सब बातों पर ध्यान देते हुए प्रस्तुत पुस्तक लिखने की अत्यन्त आवश्यकता प्रतीत हुई । इस पुस्तक में दोनों प्रकार के अर्थात् टाइप के स्वरोंवाले और हारमोनियम के स्वरोंवाले बैंजो बजाने की विधियाँ साथ साथ लिखी हैं, जिससे प्रत्येक प्रकार के बैंजो रखनेवाले सज्जन पूर्ण लाभ उठा सकें । अब मुझे पूर्ण विश्वास है कि बैंजों वादन की यह पुस्तक हँसी का कारण नहीं बन सकेगी ।
इस पुस्तक में वही चिह्न, जो टाइपवाले बैंजों में अंकित हैं, प्रयोग में लाए गए हैं, जिससे विद्यार्थियों को हिन्दी और अँग्रेजी, दोनों की गिनतियों का झमेला न मालूम पड़े, जो चिह्न पुस्तक में लिखा है, वही बैंजों में आसानी से मिल सके । दूसरे प्रकार के हारमोनियम जैसे स्वरोंवाले बैंजो के लिए स्व० भातखंडे जी की सरलतम स्वरलिपि का प्रयोग किया गया है, जिससे इस प्रकार के बैंजो बजानेवाले सज्जन हारमोनियम आदि अनेकों वाद्यों पर भी बिना कठिनाई के वही गाना निकाल सकें, जो बैंजो पर निकाल लेते हैं ।
इस पुस्तक में संगीत की शास्त्रीय जानकारी अर्थात् (Theory) बिलकुल सरल शब्दों में, जितनी कि आवश्यक है, कराई गई है । ऐसी पुस्तकों का पूर्ण अभाव है । विशेष ज्ञान वृद्धि के लिए तो अनेक ऊँचे दर्ज की पुस्तकें प्राप्त हैं । इस पुस्तक में तीन अध्याय हैं । क, ख और न । क भाग में बैंजों का परिचय, मिलाने और बजाने की विधि, शास्त्रीय ज्ञान, ताल ज्ञान और अलंकार आदि हैं ।
ख भाग में कुछ लोकप्रिय धुनों के अतिरिक्त सूरदास, तुलसीदास और कबीरदास के भजन भी हैं । इन भजनों की विशेषता यह है कि ये सरलतम होने के साथ हौं साथ दस ठाठों के स्वरों में बंधे होने से इनके द्वारा दस आश्रय रागों का ज्ञान भी स्वयमेव हो जाता है । इसका उद्देश्य शास्त्रीय संगीत की जानकारी के साथ साथ रुचि को इस ओर आकर्षित कराना भी है ।
ग भाग अर्थात् तीसरे अध्याय में कुछ प्रचलित राष्ट्रीय गीत, सैनिक गीत, बाल गीत आदि दिए गए हैं, जिनसे लोगों में उत्साह एवं स्फूर्ति के भाव जाग्रत् होंगे ।
इतना सब कुछ होने पर भी फिल्मी गीत या धुनें इसमें प्राय सम्मिलित नहीं की गई हैं । अंत में केवल एकाध ऐसी फिल्मी धुन दे दी गई है, जो बहुत समय तक स्थायी रह सके । अन्य फिल्मी गीतों को सीखने के लिए संगीत कार्यालय, हाथरस से फिल्म संगीत पत्रिका के अनेकों अंक प्रकाशित हो चुके हैं, जिनसे लाभ उठाया जा सकता है ।
विषय सूची
5
बैंजो का इतिहास
9
स्वरलिपि चिह्न परिचय
13
वाद्यों के प्रकार में बैंजो का स्थान
14
बैंजो के प्रकार
बैंजो मिलाने की विधि
15
बैंजो बजाने का ढंग
16
शास्त्रीय ज्ञान
17
दस ठाठ
22
ताल ज्ञान
27
अलंकार
29
मार्चिग धुन
33
नृत्य धुन (तीन ताल)
34
नृत्य सुन (कहरवा)
35
वीणा का लहरा
36
शहनाई की धुन
38
राम धुन
40
ओ३म् जय जगदीश हरे
41
श्री रामचन्द्र कृपालु
44
जाऊँ कहाँ, नजि चरन
46
रे मन मूरख, जनम
48
अबकी टेक हमारी
50
कौन कुटिल खल कामी
52
बीत गए दिन
54
रहना नहिं देश बिराना
55
भज मन राम चरण
58
नैना भए अनाथ
60
साधो, यह तन ठाठ
62
वैष्णव जन तो तेने
65
मैया मोरी, मैं नहिं
67
झीनी झीनी बीनी
70
जनगण मन अधिनायक
72
वंदे मातरम्
76
विजयी विश्व तिरंगा
79
जय भारत माता
81
हम स्वतन्त्र देश के
83
हँस हँस देंगे प्राण
86
हम वीर सिपाही
90
बीन नागिन
92
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