इस कृति का संपादन कार्य करते समय मुझे कुछ नवीन जानकरियाँ भी मिलीं, जैसे नागरीदास के ही काल में प्रख्यात कवि घनानंद (आनंदघन) का भी नागरीदास जी से संपर्क रहा और दोनों ने साथ-साथ वृंदावनवास किया। घनानंद के विषय में यह संदर्भ अभी तक मेरे जैसे साहित्य-साधकों के लिए अज्ञात ही था। घनानंद स्वयं भी जिस 'सुजान' नामक दरबारी नर्तकी के लौकिक प्रेमपाश से मुक्त होक़र अलौकिक प्रेमतत्व की ओर, राधा-कृष्ण के दिव्य भक्ति-प्रेम की राह बढ़े थे, वह नागरीदास और बनीठनी की प्रेमासक्ति का ही एक रूप है। प्रसिद्ध है कि मृत्यु के समय उन्होंने अपने प्राणहर्ताओं को 'जर 'अर्थात धन की जगह, उसके उलट 'रज' की ओर उन्मुख किया था।
लेखक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने इस पूरी रचना को बड़े ही काव्यात्मक भाषा में लिखा है। उनकी यह संपूर्ण कृति स्वयं में ही किशनगढ़ शैली की सुंदर चित्र रचना (पेंटिग) जैसी बन पड़ी है। इसमें उपन्यास जैसा मनोरंजक तत्व और प्रबंध काव्य जैसा काव्य रस-दोनों का एक साथ आस्वाद मिलता है। पूरी रचना गल्प रचना का भी एक सुंदर उदाहरण है और ललित निबंध का भी। 'बनीठनीः प्रेमकथा से चित्रकला तक' के लेखक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय विद्वान एवं सरल व्यक्तित्व के धनी हैं। इस पुस्तक में उन्होंने बनीठनी के जीवन के उस पक्ष को उजागर किया है जो पाठक वर्ग से अछूता था।
श्रीराधा कृष्ण की रस केलि क्रीड़ा भूमि वृन्दावन आज देश का प्रसिद्ध मन्दिर नगर है। सोलहवीं सदी में जब वैष्णव भक्ति आन्दोलन उत्तर भारत में जोर पकड़ रहा था, तब प्राचीन मथुरा नगर के निकट यह वन वैष्णव साधना और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र बनकर उभरने लगा। इस दिव्य भूमि से आकर्षित होकर देश भर के वैष्णव आचार्य एवं भक्तकवि वृन्दावन आये और सदैव के लिए यहीं के होकर रह गये। मुग़ल बादशाह अकबर के समय में यहाँ कुछ भव्य मन्दिरों का निर्माण राजपूत राजाओं द्वारा कराया गया। किन्तु वृन्दावन का वास्तविक नगरीकरण प्रारम्भ हुआ अठारहवीं सदीं में, जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन शुरु हुआ और छोटे-बड़े क्षेत्रीय रजवाड़े स्वतंत्र और शक्तिशाली होने लगे थे। तब शायद ही कोई हिन्दू राज्य हो जिसने वृन्दावन के निर्माण में अपना योगदान न दिया हो, बल्कि ऐसा लगता है कि मानो उस युग में निर्माण कार्य कराने की कोई प्रतिस्पर्धा चल रही हो जिसके चलते वृन्दावन में राजपूत, जाट, बुन्देला, मराठा रजवाड़े और छोटे जींदार व सेठ सुन्दर मन्दिरों, कुंज-महलों, बागों और घाटों का निर्माण करा रहे थे।
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