मान्यता है कि अयोध्या नगरी भगवान् विष्णु के चक्र पर स्थित है। स्कन्दपुराण के अनुसार अयोध्या भगवान् विष्णु के चक्र पर विराजमान है। अयोध्या का सबसे पहला वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में अयोध्या को देवताओं का नगर बताया गया है। रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में ही किया गया है। पुराणों में इस नगर के सम्बन्ध में कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है, वहीं राम के जन्म के समय यह नगर अवध और वर्तमान में अयोध्या नाम जाना जाता है।
हिन्दू पौराणिक मान्याताओं के अनुसार सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अंवतिका और द्वारका को शामिल किया गया है। ये सभी सातों मोक्षदायिनी और पवित्र नगरियाँ यानी पुरियाँ हैं। चार वेदों में पहले अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर माना है। अयोध्या में भगवान् राम का जन्म हुआ था। अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे बसी है। रामायण के अनुसार राजा मनु ने अयोध्या बसाई थी। अयोध्या का सम्बन्ध न सिर्फ भगवान् राम से है बल्कि यहाँ अन्य धर्मों से भी इस नगर का गहरा जुड़ाव है।
रामायण के अनुसार सरयू नदी के किनारे बसा अयोध्या नगर सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु के द्वारा स्थापित किया गया था। वैवस्वत मनु का जन्म लगभग 6673 ईसा पूर्व में हुआ था। मनु ब्रह्माजी के पौत्र कश्यप की सन्तान थे। बाद में मनु के 10 पुत्र हुए जिनमें - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध थे। इक्ष्वाकु कुल में कई प्रतापी राजा, मुनि और भगवान् हुए है। इक्ष्वाकु कुल में भगवान् राम का जन्म हुआ था।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायकाः॥
उपर्युक्त सात पुरियाँ मोक्षदायिका इसलिये कही गयी हैं कि इनमें मृत्यु होने से प्राणीमात्र की मुक्ति निश्चित हो जाती है। सात पुरियों में प्रथम पुरी-श्रीअयोधयाजी की महिमा अपार है। मुक्तिदायिनी अयोध्यापुरी का अप्रतिम महिमा आर्ष ग्रन्थों विशेषकर विभिन्न पुराणों में प्राप्त होता है। इनमें भी स्कन्द पुराण के द्वितीय वैष्णव खण्ड का अयोध्या-माहात्म्य, रुद्रयामल-तन्त्र का अयोधया खण्ड विशिष्ट है। इसके अतिरिक्त श्रीवाल्मीकीय रामायण, श्रीरामचरितमानस के वर्णन भी उल्लेखनीय हैं।
प्राचीन भारत के सात सबसे पवित्र शहरों या श्सप्तपुरियोंश् में से एक के रूप में प्रतिष्ठित अयोध्या, पवित्र सरयू नदी के किनारे पर स्थित है। सरयू नदी के पूर्वी तट पर बसा अयोध्या नगर पुरातन काल के अवशेषों से भरा हुआ है। प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण व श्री रामचरितमानस अयोध्या के ऐश्वर्य को प्रदर्शित करते हैं। अवध क्षेत्र की पूर्व राजधानी अयोध्या, श्रद्धालुओं के हृदय में विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है।
भगवान् श्रीराम भारतवासियों के ही नहीं मानव मात्र के आदर्श हैं। श्रीराम को परब्रह्म का अवतार माना गया है, जो मर्यादाओं की रक्षा के लिये अवतरित हुए। सदाचार-संस्थापन और धर्म-रक्षण ही उनका मुख्य उद्देश्य था।
वास्तव में श्रीराम का जीवन ही भारतीय संस्कृति का दर्पण है। इसी कारण भगवान् श्रीराम की कथा का प्रचार-प्रसार और विस्तार भारतीय जनमानस में सर्वाधिक रूप से होता रहा है। उनके जीवन-चरित्र की घटनाएँ, लीलास्थल, लक्षण और उनके चिह्न जिनका वर्णन शास्त्रों में मिलता है, वे आज भी उपलब्ध हैं। इसी इसीलिये भगवान् श्रीराम का अवतार, उनकी लीलाएँ और उनकी कथाएँ कपोल कल्पित नहीं, बल्कि वास्तविक हैं।
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