अघोराचार्य महाराज कीनाराम जी की समाधि जिस स्थान पर अवस्थित है, उसके बारे में बताया जाता है कि बाबा कालूराम जी ने उसे बाबा कीनारामजी को अर्पित किया था। लोगों का विश्वास है कि भगवान दत्तात्रेय ने स्वयं बाबा कालूराम के रूप में उपस्थित होकर अघोराचार्य को यह स्थान प्रदत्त किया था। अघोराचार्य की समाधि जिस स्थान पर स्थित है वह पूर्व में क्रींकुण्ड के नाम से जाना जाता है। उसे अघोराचार्य के पूर्व से ही औघड़पीठ होने का गौरव प्राप्त हो चुका था। ऐसा इसलिये कहा जा सकता है कि वहाँ इस समय लगभग पचपन औघड़ अघोरेश्वरों की समाधियाँ हैं, वह अघोराचार्य के महानिर्वाण के बाद उन औघड़ अघोरेश्वरों की होगी जिन्होंने उस स्थान पर साधना की, रही होगी। वह क्षेत्र पहले घोर जंगल था और निकटवर्ती गंगा तट पर बहुत बड़ा श्मशान था। इसलिये वह दुर्गम स्थान सामान्य लोगों के पहुँच के बाहर था। अघोराचार्य बाबा कीनाराम के काल से ही लोगों का आवागमन प्रारम्भ हुआ होगा। उनके पूर्व अघोर पथ की ओर साधना में रत औघड़ साधु ही वहाँ पहुँचते रहे होंगे। जब अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी जूनागढ़ की अपनी यात्रा के बाद कच्छ के दलदलों को पार कर कराची में हिंगलाज देवी के स्थान पर पहुँचे, तो स्वयं देवी ने उन्हें क्री-कुण्ड जाने का निर्देश दिया था और उन्हें बताया था कि वहीं मेरा यंत्र है, इससे उस स्थान का महत्त्व और उसकी प्राचीनता का पता लगता है।
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