आचार्य वाग्भटकृत अष्टाङ्गहृदय के सूत्रस्थान पर रहस्यपूर्ण, गुह्य, तीक्ष्णतर, दुरूह, सूक्ष्म ज्ञान का विभिन्न टीकाकारों द्वारा की गई एवं उपलब्ध टीकाओं-व्याख्याओं के माध्यम से जो प्रकाश डाला गया है, उनको सरल, सुगम बनाने के क्रम में यथाशक्य- बोधगम्य हिन्दी भाषा में अनुवाद एवं यथास्थान यथावश्यक विशेष विमर्श के माध्यम से उपयोगी बनाने का एक सुहृद प्रयास है।
अष्टाङ्गहृदय पर हारीत, क्षारपाणि, खारणादि, तन्त्रान्तर का सहयोग लेकर विद्वान टीकाकारों-अरुणदत्त (सर्वांगसुन्दरा), हेमाद्रि (आयुर्वेद रसायन) द्वारा की गई टीकाओं का सरल हिन्दी अनुवाद करने का एक छोटा सा प्रयास है जिसमें चन्द्रनन्दन, चक्रपाणिदत्त एवं डल्हण की टीकाओं के निर्देशों का यथास्थान क्लिष्ट प्रसंगों को सुगम बनाने में उद्धृत कर सरल बनाने में उपयोग किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में वाग्भटकृत अष्टाङ्गहृदय के सूत्रस्थान के रहस्यों को जो सूक्ष्म रूप में सूत्रित (सूचित) हैं का सविस्तार निरूपण किया गया है। अध्ययन, अध्यापन के क्रम में शास्त्रों का गहन अवलोकन एवं विद्वानों का अभिमत इस ग्रन्थ के गूढ़ रहस्यों के निराकरण में अत्यन्त ही सहयोगी सिद्ध हुए हैं जिनके समावेश रूपी अवदान से आचार्य वाग्भटकृत अष्टाङ्गहृदय की टीकाओं को समझने में सुधी पाठकजन अवश्य ही लाभान्वित होंगे, ऐसा दृढ़ विश्वास है जो 'सरस्वती' हिन्दी व्याख्या एवं यथास्थान विमर्श के साथ प्रस्तुत है।
प्रोफेसर सत्यदेव दूबे का जन्म १० जुलाई १९४५ को पूर्वाञ्चल-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के कुौरा, सिकन्दरपुर में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण अञ्चल में सम्पन्न होने के उपरान्त आयुर्वेदाचार्य (बी.ए.एम.एस.) की उपाधि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से १९७३ में प्राप्त की जबकि स्नातकोत्तर (डी.ए.वाई.एम.) १९७७ एवं पीएच.डी. की उपाधि १९८५ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के आयुर्वेद संकाय के द्रव्यगुण विभाग से ग्रहण कर लगभग ३२ वर्ष तक लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर के साथ विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन, शोधकार्यों के साथ संहिता ग्रन्थों पर सम्पादित कार्य विशेष महत्त्व रखते हैं।
इसी क्रम में सेवानिवृत्ति के उपरान्त आचार्य वाग्भटकृत अष्टाङ्गहृदय के ऊपर विभिन्न टीकाकारों द्वारा की गई टीकाओं का गहन अध्ययन कर उन पर विद्वत्तापूर्ण विमर्श एवं हिन्दी अनुवाद 'सरस्वती' हिन्दी व्याख्या शास्त्रगत् निर्देशों को समझने में अत्यन्त ही उपयोगी सिद्ध होगी।
आयुर्वेद विशेष रूप से द्रव्यगुण के क्षेत्र में अमूल्य अवदान स्वरूप आपके निर्देशन में २० छात्र स्नातकोत्तर (M.D.Ay.) एवं १५ छात्र पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त किये। एक सरल, मृदुभाषी एवं शास्त्रविद के रूप में आप द्वारा ५ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन आयुर्वेद जगत की एक विद्वत्तापूर्ण धरोहर के रूप में उपोयगी सिद्ध होंगी।
वेदों के समानान्तर अथवा उपवेद-आयुर्वेद एक प्राचीनतम | में पूर्णरूपेण विज्ञान है जिसके अवतरण की योजना जगन्नियन्ता के मन में सृष्टि (आदिमानव के पृथ्वी पर अवतीर्ण होने) के पूर्व ही बन चुकी थी, इससे इसकी चिरन्तनता एवं शाश्वतता का उद्घोष होता है। चरक, सुश्रुत जैसी प्राचीन आर्ष संहिताओं के समकक्ष बृहत्त्रयी में स्थान पाने का सौभाग्य प्राप्त करने में समर्थ वाग्भटकृत् अष्टांगहृदय व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से अपने महत्त्व को सार्थक करने में सफल सिद्ध है। यह प्राचीन युग का अन्तिम एवं नवीन युग का प्रथम संग्रहकार है जो भारत के स्वर्णयुग का प्रतिनिधित्व करता है एवं इससे तत्कालीन आयुर्वेदीय परम्परा तथा सांस्कृतिक दशा का अच्छा परिचय मिलता है जो लेखक की युगानुरूप सन्दर्भ रचना के रूप में उस काल को समझने के लिए एक उत्कृष्ट साधन हो सकता है।
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