पुस्तक के विषय में
आत्मा का जागरण सवाल यह है कि हम किस भांति जाग जाएं और भीतर देख सकें। अगर हम भीतर जाग कर देख सकें तो वहां कोई ईगो, कोई अस्मिता, कोई अहंकार, कोई मैं वहां नहीं है। फिर वहां जो है वही परमात्मा है, फिर वहां जो है वही मोक्ष है, फिर वहां जो हैं वही निर्वाण है। फिर उसे कोई कोई नाम दे दे, इससे कोई भेद नहीं पडता । वहां जो है, वही परम आनंद है, वही परम सत्य है।
कैसे हम जाग जाएं कैसे हम भीतर ज्योति जगा लें कैसे भीतर दीया जल जाए और हम खोज सकें?
पहला सूत्र : हमारे चारों तरफ जो जगत है, उसके प्रति हमें जाग्रत होना चाहिए सोए हुए नहीं । हम उसके प्रति सोए हुए है । क्या आपको खयाल है, कभी आपने सड़क पर चलते हुए लोगों को पांच मिनट के लिए रुक कर होश से देखा हो? क्या आपको खयाल है कि दरख्तों के पास बैठ कर आपने पांच मिनट दरख्तों को होश से देखा हो 'क्या आपको खयाल है, सुबह उगते सूरज को पांच क्षण ठहर कर आपने पूरे विवेक से देखा हो, पूरे जागरण से, रात के आकाश के तारे कभी देखे हों? सब भांति शांत और मौन होकर देखा हो?सब तरह के विचार को छोड़ कर, निर्विचार होकर, शांत होकर, चारों तरफ जो दुनिया फैली है, उसे पहचाना हो, उसके प्रति आख खोली हों 'नहीं खोली है, हम करीब-करीब सोए-सोए चले जाते है । चलते रहते है सोए-सोए ।.
तो बाहर के जगत के प्रति जागरण का प्रयोग!
कैसे करें?
कभी अचानक ठहर जाएं । चलते-चलते रास्ते पर रुक जाएं और जरा देख-भाग तरफ क्या है?कभी घर की छत पर आख खोल कर बैठ जाएं और देखें -ये तारे क्या है? कुछ सोचें न, सिर्फ देखें । चीजों के प्रति जागने का मतलब है सोचें नहीं, देखे।
जो भी बाहर दिखाई पड़े-बहुत है बाहर, क्या नहीं है बाहर-उसे बहुत ध्यान में देखना, बहुत ध्यान से सुनना, सारी इंद्रियों का अत्यंत ध्यान से, बहुत इंटेसिवली उपयोगकरना। भोजन करते वक्त पूरी तरह स्वाद लेना जरूरी है; आख खोल कर फूल को देखते वक्त पूरी तरह उसके सौदर्य को पी लेना जरूरी है; संगीत सुनते वक्त उसकी ध्वनियों को कानों के पूरे-पूरे प्राणो तक पहुंच जाना जरूरी है; किसी का हाथ हाथ में लें, तो उसका हाथ हाथ से जुड़ जाना जरूरी है । इतनी समग्रता से. इतने होश से. इतनी तन्मयता से जब कोई व्यक्ति बाहर के जीवन में जीना शुरू करता है, तो एक अवेयरनेस, एक जागरण, एक ज्योति उसके भीतर जमानी शुरू होती है ।
फिर यही ज्योति दूसरे सूत्र में मन के प्रति लगानी होती है । मन है भीतर, विचारों से भरा हुआ, विचार ही विचार हैं वहा । कामनाएं कल्पनाएं, इच्छाएं है वहां, स्मृतियां है, भविष्य की आकांक्षाएं है, वे सब मन के भीतर चल रही हैं । जैसे सड़क पर लोग चल रहै हैं, ऐसा मन में भी यात्रा चल रही है बहुत सी चीजो की । पहले बाहर के प्रति जागे, फिर मन के प्रति जागे । फिर मन को देखें कि यह क्या हो रहा है मन के भीतर ?हम सोए-सोए चल रहै हैं, मन के प्रति हमने कभी देखा ही नहीं कि वहा क्या हो रहा है । हम अपने काम में लगे है और मन अपना काम कर रहा है । हमें ख्याल भी नहीं है कि मन में क्या हो रहा है, कितना हो रहा है, कितनी बड़ी फैक्टरी वहां चौबीस घंटे चल रही है । अगर कोई आपके दिमाग से सारी की सारी फैक्टरी को बाहर निकाल कर रख दे, तो पूरा शैतान का कारखाना वहां मिलेगा । वहां क्या हो रहा है, नहीं कहा जा सकता ।
एक छोटे से आदमी के मन के भीतर कितना क्या चल रहा है, उसे भी देखना और जानना जरूरी है, उसके प्रति भी जागना जरूरी है, उसके प्रति भी होश रखना जरूरी है । कभी दो क्षण बैठ कर उसे भी देखें कि मन के भीतर क्या हो रहा है । जितना हम फिकर करते है अपने कपड़ों की कि वे ठीक है कि गलत; अपने जूतों की कि उनमें कील निकली है कि नहीं; अपने बालो की कि वे ठीक काढ़े गए कि नहीं; उतनी फिकर भी हम उस मन की नहीं करते जो हमारे प्राणों में भीतर बैठा है कि वहा क्या हो रहा है । वहा कितनी कीलें है, वहा कितनी गंदगी है, वहा कितना सब अव्यवस्थित है, कितना डिसऑर्डर है, कितनी अनार्की है, कितनी अराजकता है, कितना पागलपन है, वहां कोई देखने की फिकर नहीं । हम अपने कपड़े ठीक-ठाक कर लेते हैं, बाहर से इत्र किक लेते हैं, फूल सजा लेते हैं और चल पड़ते हैं । और भीतर क्या लिए हुए है. उसके प्रति भी जागना बहुत जरूरी है ।
अत्यंत निष्पक्ष भाव से, जो भी चलता हो मन में, बुरा- भला, कुछ भी, उसे शांति से देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें । और आप हैरान हो जाएंगे, उसे देखते-देखते ही आपको दो बातें पता चलेंगी । एक, कि जिसे आप देख रहै हैं वह और आप अलग हैं । एक यह बहुत क्रांतिकारी बोध होगा कि विचारों को जिन्हें आप देख रहै है, वे अलग है, आप अलग हैं । नहीं तो आप देख भी नहीं सकते थे, देखने वाला अलग है । और यह बोध आ जाएगा कि देखने वाला अलग है, तो मन एकदम बदल जाएगा, बात दूसरी हो जाएगी, मैं अलग हूं विचार अलग है । एक संबंध टूट जाएगा, मैं अलग हूं विचार अलग हैं । फिर विचारों की कोई पीड़ा, बोझ, भार नहीं रह जाएगा मन पर । जो अलग है, वह बात खत्म हो गई ।
दूसरी बात देखते-देखते यह पता चलेगी जैसे कोई हवाई जहाज से उड रहा हो, नीचे के मकानो को देखे, तो मकान सब जुडे हुए मालूम पड़ते है दो मकानो के बीच में खाली जगह मालूम नहीं पडती । अभी आप इतने लोग यहा बैठे है, अगर हजार फीट ऊपर से जाकर में देख- तो आपके बीच में कोई खाली जगह दिखाई नहीं पडेगी लेकिन मैं धीरे-धीरे, धीरे-धीरे करीब आऊ, तो हर आदमी और उसके पडोसी के बीच में खाली जगह दिखाई पडेगी, इंटरवल होगा, गैप होगा जब आप विचारो के प्रति जागेगे और उनके करीब आकर देखेंगे, तो दूसरी बात आपको पता चलेगी-हर दो विचारों के बीच में थोडी सी खाली जगह है, जहा कोई विचार नहीं है। एक विचार जाता है, फिर दूसरा आता है, दोनो के बीच में एक खाली जगह है, जहा कोई विचार नहीं, इंटरवल है, गैप है । वह गैप बडा अदभुत है उसी खाली जगह में आपकी आत्मा है उसी विचारशून्य क्षण में आप गहरे कूद सकते है वही जगह है जहां से आप भीतर छलांग ले सकते है । जब आपको ये गैप दिखाई पडेंगे तो आपको पता चलेगा विचार मैं नहीं हूं, बल्कि जो रिक्त जगह है वह मैं हूं । और जैसे ही यह बोध होगा कि जो रिक्त स्थान है, जो खाली शून्य अतराल है, वह मैं हूं वह जो स्पेस हें बीच में, वह मैं हूं ता आपको आत्मा की परफ जागने का पहला मोका इन्ही रिक्त स्थानो में से मिलेगा।
और तीसरा जागरण है आत्मा का वह आपको करना नहीं पडता है दो जागरण आप करते है, तीसरा जागरण अनायास अपने आप घटित होता है दो काम आप करते है, तीसरा काम परमात्मा करता है बाहर के प्रति और उस मन के प्रति आप नाग जाए, तीसरा जागरण अपने से अपने से पैदा होगा तीसरा जागरण, दो जागरण का अनिवार्य परिणाम है जैसे एक किसान बीज बो देता है, फिर बीज बोने के बाद पौधे की रक्षा करता है फिर पौधे में फल आते है, फूल आते हें । लकिन फूल लाने नहीं पड़ते, फूल अपने आप आते है बीज बोना पडता है, पौधे की सम्हाल करनी पडती है, लेकिन फूल लाने नहीं पड़ते, वे अपने आप आते है उनको कोई खीच-खीच कर नहीं निकालता कि अब फूल भी निकाले, जैसे बीज बोए थे, अब फूल भी निकाले । और किसी ने अगर फूल निकालने की कोशिश की, तो फिर फूल कभी न निकलेगें फूल तो अपने से आते है, वह फ्लावरिंग अपने से होती है दो काम किसान करता है, बीज बोता है, पौधे की रक्षा करता है, तीसरा काम परमात्मा करता है, फूल खिलाने का जीवन की खोज में भी जागरण का बीज मनुष्य को बोना पडता है जागरण की रक्षा मनुष्य को करनी पडती है । आर वह जो परम जागरण है, उसके फूल अपने आप आते है । वे सहज आते है, वे परमात्मा की तरफ से आते है वह हमारे श्रम की भेट है परमात्मा की ओर से वे हमें खीच कर नहीं लाने पड़ते।
इसलिए दो जागरण आप साधे तीसरा जागरण आपको उपलब्ध होता है इसीलिए जब तीसरा जागरण उपलब्ध होता है, तो साधक को पता चलता है कि मैंने क्या किया यह पा अपने आप आया और तभी वह परमात्मा के प्रति कृतज्ञता और ग्रेटिटयूड से भर जाता है वह कहता है मैंने क्या किया? मैंने तो कुछ और ही किया था, जिसका कोई मूल्य नहींहें । और यह जो मिल गया है, यह तो मैं जानता भी नहीं था कि मैंने कभी किया । यह क्या हो गया? एक बिलकुल अनूठा, अद्वितीय, अलौकिक, अज्ञात, अननोन अनुभव उसके ऊपर अवतरित हो जाता है । वह उसे ग्रेस मालूम होती है, वह भगवत्-कृपा मालूम होती है, लगता है कि भगवान की कृपा से यह हो गया । वह सहज तीसरी घटना घटती है । वह तीसरी घटना घट सके, उसके लिए दो घटनाओ की तैयारी हर मनुष्य को करनी होती है । तो अंतिम रूप से यह कहूंगा कि परमात्मा करे वह प्यास इन बातो से आपके भीतर गहरी हो, जो इन बातों को केवल सुनने का सुख न बनाए बल्कि किसी दिन अनुभूति के आनंद में परिवर्तित कर दे ।
अनुक्रम
1
चित्त का दर्पण
11
2
बोध की पहली किरण
23
3
चित्त मौन हो
41
4
जीवन्त का लक्ष्य
61
5
यांत्रिक जीवन से मुक्ति
81
6
एक ही मंगल है-जागरण
101
7
तुम ही हो परमात्मा
121
8
अहंकार का भ्रम
139
9
नई संस्कृति की खोज
161
10
सत्य है अनुसंधान-मुक्त और स्वतंत्र
179
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