अग्निपुराण का स्वरूप एवं उसका श्लोकपरिमाण पुराणों में अष्टादश पुराणों (जो कभी कभी महापुराण भी कहलाते हैं) को जो सूचियों मिलती हैं, उनमें अग्नि या आग्नेय नाम अवश्य मिलता है, जिससे अग्निपुराण की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता ज्ञात होती है। अग्नि नामक देव इस पुराण के वक्ता है, अतः यह अग्नि नाम से अभिहित होता है। आग्नेय का अर्थ है- अग्नि से सम्बन्धित अथवा अग्नि द्वारा प्रोक्त।
अग्निपुराण के स्वरूप एवं परिमाण के विषय में पुराणों में कुछ निर्देश मिलते हैं। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि जिस पुराण में अग्नि ने वसिष्ठ को ईशानकल्प का वृत्तान्त कहा, वह आग्नेय पुराण है (५३।२८)। स्कन्दपुराण के प्रभासखण्ड (२।४७) तया नारदीयपुराण (१।९९।१) का भी यही मत है।
प्रचलित अग्निपुराण का वक्ता यद्यपि अग्नि है, तथापि इसमें ईशानकल्प का नाम नहीं मिलता। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कोई प्राचीनतर ईशान कल्पीप-वृत्तान्तख्यापक अग्निपुराण था जो लुप्त हो गया है और प्रचलित अग्निपुराण उस पुराण का आश्रय करके लिखा गया है (अल्प प्राचीन सामग्री के साथ अत्यधिक नवीन सामग्री जोड़कर)।
विभिन्न समयों में विभिन्न अग्निपुराण (प्राचीन तथा नवीन सामग्री का संयोजनात्मक) प्रचलित थे- इस तथ्य में सर्वबलिष्ठ हेतु है- अग्निपुराण के परिमाण के विषय में मतभेद। अग्निपुराण में एक स्थल पर अग्निपुराण का परिमाण १२००० (२७२।११), तथा अन्यत्र (३८३१६४) १५००० कहा गया है। इस पुराण का श्लोक परिमाण भागवतानुसार १५४०० (१२।१३।५), देवीभागवतानुसार १६००० (१।३।९) तथा नारदीय-पुराणानुसार १५००० है (१।९९।२)। एक निश्चित ग्रन्य के श्लोक परिमाण के विषय में ऐसे मतभेद नहीं हो यरुता, अतः यह स्वीकार्य है कि इन पुराणों के रचनाकारों ने अपने समय में जिस अग्निपुराण को देखा था, उसके परिमाण का ही उल्लेख उन्होंने किया है।
निवन्वग्रन्यों को देखने से भी ज्ञात होता है कि कभी प्रचलित अग्निपुराण से पुयक् (चाहे सर्वथा भिन्न न हो) कोई अग्निपुराण विद्यमान था, क्योंकि निबन्ध- ग्रन्यों में उद्युत अग्निपुराण के श्लोक प्रचलित अग्निपुराण में नहीं मिलते (अपेक्षा-कृत अर्वाचीन निबन्धग्रन्थों में प्रचलित अग्निपुराण के श्लोक उद्धृत मिलते हैं)।प्रसिद्ध निवन्धग्रन्य कार वल्गल सेन ने तो प्रचलित अग्निपुराण को अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में एक अप्रामाणिक ग्रन्य कहा है।'
अग्निपुराण को 'तामस' माना गया है (पश्चपु० ६।२६३।८१-८२) ।पुराणों में ही कहा गया है कि तामस वह पुराण होता है जिसमें अग्नि अथवा शिव की महिमा का प्रधानतः प्रतिपादन किया गया हो (मत्स्यपु० ५३/६८-६९) । प्रचलित अग्निपुराण में अग्निदेवता के माहात्म्य के विषय में कुछ भी नहीं कहा गया। इससे भी यह सिद्ध होता है कि प्रचलित अग्निपुराण से मिन्न कोई प्राचीन- तर अग्निपुराण था जिसमें अग्निमहिमा का विशेपरूप से प्रतिपादन किया गया था।
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