पुस्तक के विषय में
परिचय
इस उपन्यास का लेखक ऐनी''जदीदों’' (नवयुगवादियों) के आन्दोलन का एक प्रसिद्ध प्रतिनिधि तथा बुखारा की क्रातिकारी हलचल में आरम्भ से ही काम करने वाला रहा। ऐनी यद्यपि उन व्यक्तियों में था, जिन्होंने बुखारा में जदीदी आन्दोलन की नाव डाली, तथापि 'जदीदवाद' के खोखलेपन से जल्दी ही परिचित हो, उसने बोल्शेविक क्रांति के पथ को अपना लिया।
ऐनी की तीस-साला जुबली मनाते समय16 नवम्बर, 1945 को ताजिकिस्तान की राजधानी स्तालिनाबाद में ताजिक नेता आबिदोफ ने कहा था-''सामन्तवादी पूर्व(के देशों) में स्वकी, फिरदौसी, सादी, उमर खैय्याम, हाफिज-जैसे कितने ही योग्य और महान साहित्यकार पैदा हुए, किन्तु महामानव यदि सूली पर नही चढाये गये, तो भी सदा उत्पीडित या निर्वासित रहे। हमारे प्रसिद्ध लेखक(ऐनी) के जीवन का बहुत बडा भाग बुखारा के अमीरी अत्याचारपूर्णजमाने में गुजरा था।''
ऐनी की जीवनी के बारे में बेहतर होगा, कि मैं उनके पत्र ही को यहाँ उद्धृत करूँ, जिसे ऐनी ने23 अप्रैल, 1947 में समरकन्द से अनुवादक(राहुल) के पास भैजा था:
''मैं सन्1878 में बुखारा जिले के गिजदुआन तहसील में साक्तारी गाँव में एक गरीब किसान के घर पैदा हुआ।12 साल की वय में अनाथ हो गया । बड़ा भाई बुखारा में पड़ रहा था । उसने मुझे अपनी संरक्षता में ले लिया । वहाँ मैं पत्ता और मजूरी करता रहा । मदरसा आलमजान में एक बरस झाडूदार(फर्राश) का भी काम किया।1905 से अध्यापकी और पाठ्य-पुस्तकों के लिखने का काम करता रहा।1915-16 में एक साल किजिलतप्पा के कपास के कारखाने के ओटाई आफिस मैं काम किया।
1916 में बुखारा के एक मदरसे में मुदर्रिस( प्रोफेसर) नियुक्त हुआ ।1917 के राष्ट्रीय आन्दोलन या'फरवरी-क्राति' में अमीर के विरुद्ध काम किया।16 अप्रैल को गिरफ्तार करके मुझे75 कोड़े मारे गये, और' आबखाना नामक जेल में डाल दिया गया । रुसी क्राति-सेना ने मुझे जेल से निकाल कर कागन के अस्पताल में रखा, जहाँ52 दिन रहने के बाद मैं स्वास्थ-लाभ कर सका।17 जून, 1917 को समरकन्द आया। तब से समरकन्द नगर में ही मेंरा निवास है।
मार्च।1918 में कोलिसोफ युद्ध-काड के समय मेंरे टोटे भाई को, जो कि मुदर्रिस थे, अमीर ने पकडवाकर मरवा दिया ।1918 से मैं सोवियत के हाई-स्कूलों में पढ़ाने लगा, साथ ही 1919-21 में समरकन्द के दैनिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य-सम्पादक का भी काम करता रहा । बुखारा की क्रान्ति में भाग ले अमीर के विरुद्ध जनता को उभाड़ने का काम किया ।1922 में मेंरे बड़े भाई को साक्तारी गाँव में बसमाचियों( क्रान्ति-विरोधियों) ने मार डाला ।1921 के अन्त से1923 तक मैं बुखारा-जन-सोवियत-प्रजातन्त्र के वकील के नायब के तौर पर समरकन्द में काम करता रहा ।
1923 के अन्त से1925 तक समरकन्द में सरकारी व्यापार का संचालक रहा । 1926 से1933 तक तिरमिज में साहित्य और विज्ञान विषय सम्पादन का काम करता रहा1 सितम्बर, 1933 में ताजिक सरकार ने मुझे काम से छुट्टी दे दी, जिसमें कि मैं घर पर रह कर अपना साहित्य और विज्ञान-सम्बन्धी कार्य स्वतन्त्रापूर्वक कर सकूँ ।
1935 से मैं उजबेक्सिान की उच्च-शिआ-संस्थाओं, उजबेक सरकारी युक्विर्सिटी(समरकन्द), समरकन्द ट्रेनिंग कॉलेज, ताशकंद ट्रेनिंग कॉलेज, ताशकन्द लॉ कॉलेज, मध्य-एशिया युर्निवर्सिटी(ताशकंद) में एम० ए०, डॉक्टर-उम्मेदवार( पी-एच० डी०) और डॉक्टर( डी० लिट्) की परीक्षाओं का परीक्षक और परामर्शदाता होता आ रहा हूँ ।
1923 में समाजवादी सोवियत प्रजातत्र का केन्द्रीय कार्यकारणी का मेंम्बर चुना गया ।1929 से1938 तक भी उसका सदस्य रहा ।1931 में ताजिक सरकार ने मुझे'लाल श्रमघ्वज का तमगा प्रदान किया ।1935 में ताजिक सरकार की ओर से मुझे एक मोटरकार और भवन प्रदान किया गया और उजबेक सरकार की ओर से सनद और रेडियो मिला ।
1923 में अखिल सोवियत लेखक-संघ का मेंम्बर बुना गया ।1934-44 तक संघ के सभापति-मंडल का एक सभापति और ताजिकिस्तान तथा उजबेकिस्तान के लेखक-संघों की उच्च समितियों का भी सदस्य रहा । अप्रैल, 1941 में सोवियत सरकार ने'आर्डर ऑफ लेनिन नामक तमगा प्रदान किया ।1943 में उजबेक-साइंस अकादमी का'माननीय सदस्य' निर्वाचित हुआ ।1946 में'साइन्स के काम के लिये तमगा मिला ।1939 में स्तालिनाबाद की नगर सोवियत( कारपोरेशन) का मेंम्बर चूना गया ।26 अक्टूबर, 1940 को'माननीय साइन्सी नेता ताजिकिस्तान समाजवादी सोवियत प्रजातन्त्र' की उपाधि मिली । अक्तूबर1946 में उजबेक युनिवर्सिटी की साहित्य-फैकल्टी का डीन बनाया गया ।' '
23 अप्रैल, 1947 को आबिदोफ ने ऐनी की जुबिली में भाषण देते हुए, उनके साहित्यिक कार्यों पर भी प्रकाश डाला-
ऐनी की कितनी ही पुस्तके रुसी, उजबेकी, उक्रैनी भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं । उनका'अदीना ताजिक भाषा के साहित्य का यदि प्रथम उपन्यास है, तो ऐनी की दूसरी कृति दाखुंदा। निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति मानी जायगी ।
सब से पहिला बड़ा काम ऐनी का है ताजिक भाषा को अरबी शब्दों से शुद्ध करना, जो कि लम्बे ऐतिहासिक काल में(हमारी भाषा में) आ घुसेथे । ऐनी ने जनता की चालू भाषा से लाभ ही नहीं उठाया, बल्कि उस भाषा को पूर्ण और विकसित कर, अपनी कृतियों के द्वारा उसे दुनिया के साहित्य में स्थान दिलाया ।
अदीना और'दाखुंदा' की भाषा वह भाषा है जिसमें(ताजिकिस्तान) के लोग बातचीत है । इस काम ने तथा जनसाधारण के जीवन की गम्भीर जानकारी ने ऐनी को बहुत जल्दी प्रसिद्ध कर दिया । गाँवों, कलखोजों और क्सों में ऐसे कितने ही पाठक मिलेंगे, जो'अदीना, ''दाखुंदा की कहावतों को बातचीत में इस्तेमाल करते हैं । पूज्य गुरु सदरुद्दीन ऐनी बहुत बरसों तक हमारे बीच रह शत्रुओं को सत्रस्त करते हुए, हमारे समाजवादी देश की भलाई के लिये काम करते रहे?''
ऐनी ने पुराने ढंग से अरबी ओर इस्लामिक वाड्मय का गम्भीर अध्ययन किया था और वे एक बड़े स्वरसे के अध्यापक भी रहे । उनकी क्लम से ताजिक भाषा का यह पहिला उपन्यास लिखा जाना वैसा ही है, जैसे बनारस के किसी पुराने ढग कै महामहोपाध्याय का उपन्यास लिखने के लिये कलम उठाना । इस उपन्यास को लिख कर ऐनी ने समरकन्द से निकलने वाले दैनिक'आवाजे ताजिक में23 नवम्बर, 1924 से क्रमश: प्रकाशित कराना शुरु किया । वहाँ इसका नाम'सरगुजश्ते यक ताजिक कमबगल या कि अदीना(एक ताजिक गरीब की जीवनी अर्थात् मीना) था ।1927 में यह'अदीना' के नाम से अलग छपा, और उसी साल इसका रुसी अनुवाद भी हुआ । भाषा बहुत मँजी हुई नहीं है, तथापि इसका अपना महत्व है । इसीलिये ऐनी के उपन्यास'दाखुंदा, 'जो दास थे और'अनाथ' को हिन्दी मैं अनुवादित करने के बाद मैंने उस्की, प्रथम कृति'अदीना' का भी अनुवाद करना आवश्यक समझा।
प्रकाशकीय
हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास-प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है। राहुल जी की जन्मतिथि6 अप्रैल, 1893 ई० और मृत्युतिथि14 अप्रैल, 1963 है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था । बौद्ध दर्शन से स्तन। प्रभावित हुए कि स्वयं- बौद्ध हो गये। 'राहुल'नाम तो बाद में पड़ा-बौद्ध हो जाने के बाद ।'साकत्य' गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने-लगा। राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्न-भिन्न भाषा साहित्य एवं प्राचीन संष्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अघ्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था। प्राचीन और नवीन. साहित्य-दृष्टि की प्लिनी फ्लू और गहरी पैठ राहुल जी की थी-ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है । घुमक्कड जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही । राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन्1927 ई० में होती है । वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नही रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयों पर उन्होंने150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है । अब तक उनके130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चूके हैं । लेखों, निबन्धों. एवं भाषणों की गणना एक मुश्किल काम है।
राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल
प्राचीन-क्वीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रुसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला । राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गये. उसकी पूरी जानकारी हासिल कीं। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की । यही कारण है कि उस्के साहित्य में जनता, जनता का राज और मेंहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है ।
राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न विचारक है । धर्म, दर्शन, लोक्साहित्य यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथिया का सम्पादन आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है । राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरो से गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की ।'सिंह सेनापति जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उस्की रचनाओं मैं प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रत: आत्सात् कर हमें मौलिक दृष्टि देन का निरन्तर प्रयास किया है। चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन,इतिहास-सल्ल उपन्यास हो या 'वोल्गा से गंगा'की कहानियाँ-हर जगह राहुल जी की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी क्य दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है । उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।
समग्रत यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूचे भारतीय वाड्मय कै एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन एवं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यो पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत. लोगों की दृष्टि नहीं गई थी । सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कासा अपनी साम्यवादी कृतियो में किसानों, मजदूरों और मेंहनतकश लोगो की बराबर हिमायत करते दीखते हैं।
विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा-शैली अपना स्वरूप निधारित करती है। उन्होंने सामान्यत: सीधी-सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य विशषकर कथा- साहित्य-साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।' अदीना राहुलजी द्रारा ऐनी के क्रान्तिकारी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर है । इस शताब्दी के प्रारभिक चौथाई मै ऐनी बुखारा के क्रान्तिकारी हलचल में भागीदारी रहे हैं, जिन्होंने'जदीदी' आन्दोलन की नीव डाली और बाद में उन्हाने बोल्शेविक क्रान्ति के पथ कौ अपना लिया ।
ऐनी की कितनी ही पुस्तके रुसी, उजबेकी, उकेनी आदि भाषाओ में अनूदित हो चूकी हैं । अदीना' उनका ताजिक भाषा के साहित्य का प्रथम उपन्यास है । इस विश्व की श्रेष्ठतम साहित्यिक कथा-कृतियों में स्थान प्राप्त है । हिन्दी में इसका अनुवाद प्रस्तुत कर राहुलजी ने हिन्दी पाठकों को विश्व की एक श्रेष्ठ कथाकृति से परिचित कराया है।
अनुक्रम
1
अनाथ
9
2
हिसाब
14
3
मुक्ति
17
4
बिछोह
19
5
स्वाभाविक सुन्दरता
23
6
कपास का कारखाना
25
7
कारखाने में अदीना
29
8
हलचल
30
हमदर्द
32
10
फरवरी-मार्च 1917
35
11
घर वापस
39
12
फिर क्या देखा
42
13
फन्दा टूटा
45
यात्रा का निश्चय
48
15
यात्रा और जुटाई
51
16
यूनानी चिकित्सा
54
अचानक- अकारण बन्धु
57
18
डॉक्टर
61
अक्टूबर क्रान्ति
63
20
उन्नीस और अट्ठारह कोहिस्तान
70
21
अपरिचित पुरुष
71
22
शरीफ
75
गुल-अन्दाम
81
24
बहू लाना
86
सकट
88
26
चोर
92
27
बेहोशी
95
28
पतझड़
100
समाप्ति
101
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist