आधुनिक हिंदी साहित्य के नायकों में अन्यतम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (1884-1941) का बहु आयामी सर्जनात्मक अवदान निश्चय ही भारत के साहित्यिक - अकादमिक जगत की एक युगांतरकारी घटना है। सतत ज्ञान-साधना को समर्पित एक सुधी अध्येता आचार्य को हिंदी के अध्ययन-अनुशीलन के पुरस्कर्ता की भूमिका जब मिली तो उसे उन्होंने सात्विक गंभीरता के साथ स्वीकार किया और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उच्च शिक्षा के परिसर में एक नये भारतीय अनुशासन को स्थापित और संवर्धित किया। अंग्रेज़ी उपनिवेश की गुलामी की अवधि में स्वायत्त चिंतन और सृजन का प्रतिमान स्थापित करने का उनका यत्न स्वदेशाभिमान के साथ साहित्य-क्रर्म की अनेक विधाओं में व्यक्त हुआ।
उल्लेखनीय है कि हिंदी-अध्ययन के उन्मेष काल में ही आचार्य शुक्ल ने जिस परिनिष्ठित संस्कार के साथ कोश-निर्माण, आलोचना, निबंध, काव्य-शास्त्र, इतिहास, पाठ्यालोचन, अनुवाद और काव्य तथा कथा के सृजन का जो कार्य सम्पादित किया वह आज भी साहित्य साधकों के लिए स्पृहणीय है। जब इस समग्र कार्य के लिए उपलब्ध परिवेश और संसाधनों को देखते हैं तो आचार्य शुक्ल की महनीयता एक चमत्कार सरीखी लगती है। काशी में लगभग तीन दशक (1910-से 1941) की अवधि में अध्यवसायपूर्वक अध्ययन, अध्यापन और सृजन के समर्पित जीवन में आचार्य शुक्ल ने सामाजिक सांस्कृतिक संवेदना और सजगता के साथ साहित्य की एक सरणि का निर्माण किया। यह हिंदी जगत का सौभाग्य था कि उनके अकादमिक साहस और तर्क-विवेकसम्मत समीक्षा पद्धति ने साहित्य-चिंतन को एक परिपक्व दृष्टि दी और हिंदी नव जागरण को आकार प्रदान किया।
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