मनुष्य अपनी चिन्तन-शक्ति के कारण ही पशु से भिन्न होता है। मानव चिन्तनशील प्राणी है। सतत चिन्तन करना ही सहज स्वभाव है। इस 'आर्ष चिन्तन-धारा' नामक ग्रंथ में कुल पंद्रह शोधलेख हैं। इनमें ऋग्वेद, वाल्मीकि रामायण, पुराण, श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस आदि ग्रंथों से बहुमूल्य मोती चुनकर एकत्रित किए गए हैं। लेखक ने विविध विषयों पर आधारित सुंदर एवं ज्ञान प्रद लेखों का संग्रह किया है। इसमें ब्रह्म का स्वरूप, भक्त शिरोमणि केवट, शबरीकी निश्छल भक्ति, अंगद की राम-भक्ति, काशी माहात्म्य आदि लेखों का अनुपम संकलन हुआ है, जो पाठकों को सतत रसानुभूति कराएगा।
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