माधवराव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' को आधुनिक हिंदी की पहली कहानी मान मा सकते हैं, जो अप्रैल, 1901 में 'छत्तीसगढ़ मित्र' में छपी थी। इसे मानक मानकर चलें तो हिंदी कहानी की उम्र सवा सौ बरस होने को है। इस कालखंड में समय-समय पर श्रेष्ठ और मानक कहानियों के संचयन निकालने की कोशिशें होती रहीं। बीसवीं सदी के अंत में महेश दर्पण ने 'बीसवीं शताब्दी की हिंदी कहानियाँ' जैसा वृहद् संचयन निकाला तो लगभग उसी के साथ इक्कीसवीं सदी के एकदम आरंभ में डॉ. राहुल का 'बीसवीं सदी : हिंदी की मानक कहानियाँ' संचयन प्रकाशित हुआ, जिसमें बीसवीं सदी के प्रमुख हिंदी कहानीकारों की सौ कहानियों का चयन किया गया। इसी तरह कमलेश्वर के संपादन में साहित्य अकादेमी से प्रकाशित संचयन 'बीसवीं सदी की हिंदी कथा यात्रा' में 186 कहानियाँ संकलित हुई हैं। सन् 2013 में पुष्पपाल सिंह के संपादन में छह खंडों में 'हिंदी की क्लासिक कहानियाँ' छपीं, जिसमें 124 कथाकार हैं। फिर अखिलेश ने मानवीय संबंधों की सवा सौ कहानियों की सीरीज संपादित की। और अब आया है संतोष चौबे और मुकेश वर्मा का संचयन 'कथादेश', जिसके अठारह खंडों में छह सौ से अधिक कहानियाँ संकलित हैं।
अपने संचयन का आरंभ महेश दर्पण जहाँ आधुनिक हिंदी की प्रारंभिक कहानी 'एक पथिक का स्वप्न' (माधवराव सप्रे) से करते हुए किशोरीलाल गोस्वामी (इंदुमती), भगवानदास (प्लेग की चुड़ैल), रामचंद्र शुक्ल (ग्यारह वर्ष का समय), महावीर प्रसाद द्विवेदी (स्वर्ग की झलक), राजेंद्रबाला घोष उर्फ एक बंग महिला (दुलाईवाली), वृंदावनलाल वर्मा (राखीबंद भाई) आदि की सन् 1910 से पूर्व छपी आरंभिक कहानियों से भी पाठक का परिचय करवा उसे देश और काल की आरंभिक पीठिका पर बिठा हिंदी कथा की यात्रा शुरू करवाते हैं, वहीं डॉ. राहुल के संचयन की पहली रचना जून, 1916 की 'सरस्वती' में छपी प्रेमचंद की कहानी 'पंच परमेश्वर' है और यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि डॉ. राहुल को हिंदी की सौ मानक कहानियों का चयन करना था, जबकि 229 कहानियों वाले महेश दर्पण के संचयन में इतिहास की पीठिका तक पहुँचने का पर्याप्त अवकाश था, जो डॉ. राहुल के पास नहीं था। प्रेमचंद, गुलेरी और प्रसाद की त्रिमूर्ति सभी संचयनों में है, लेकिन अखिलेश के संचयन में गुलेरी छूट गए हैं, जबकि एक बंग महिला यानी राजेंद्रबाला घोष मौजूद हैं। हाँ, हाल ही में छपे संतोष चौबे और मुकेश वर्मा के संचयन 'कथादेश' में सन् 1803 में लिखी गई सैयद इंशा अल्ला खाँ की 'रानी केतकी की कहानी' भी संकलित है, जिसे आरंभिक हिंदी की पहली कहानी माना जाता है। उस समय की कई अन्य कहानियाँ भी यहाँ हैं।
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