कई बरस पहले नोबेल पुरस्कार कमेटी के सचिव गियरलुडस्टेड ने महात्मा गाँधी को कबरपुरको सो पाने कीस करते हुए कहा था कि "नोबेल पुरस्कारों के सौ बरस से अधिक के इतिहास में जिस नाम का न होना सबसे ज्यादा खलता है, वह हैं महात्मा गाँधी। गाँधी की महानता को तो इस पुरस्कार के न मिलने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन क्या नोबेल कमेटी के बारे में भी यही बात कही जा सकती है?" इसी तरह दो और लोगों को भी नोबेल पुरस्कार न दिये जाने पर कमेटी को अफ़सोस करना चाहिए-तोल्स्तोय और प्रेमचंद। रूस में आम लोगों के बीच जितने लोकप्रिय तोल्स्तोय हैं, भारत में उतने ही प्रेमचंद। इनमें कई समानताएँ हैं, जिनमें सबसे बड़ी यह कि इन्होंने किसानों के साथ निचले तबके के प्रति भी करुणा और सहानुभूति प्रदर्शित की। प्रेमचंद के बारे में रामविलास शर्मा कहते हैं कि "भारतीय भाषाओं में बहुत से कथा लेखक हुए। प्रेमचंद उन सबसे अलग दिखाई देते हैं। हमारे समाज में बहुत से वर्ग हैं, उनके बहुत से स्तर हैं। प्रायः सभी का चित्रण प्रेमचंद ने किया है, पर उनके कथा साहित्य में जो सबसे ज्यादा जगह घेरता है, औरों से ऊपर उभरता है, वह है-किसान। किसानों में भी अनेक स्तर हैं। कुछ धनी हैं, कुछ साधारण खाते-पीते हैं। इनके साथ भूमिहीन खेत मजदूर और सेवक हैं, जो मजदूरी करते हुए दूसरों की सेवा करके किसी तरह जिंदगी बसर करते हैं। किसानों से जिन्हें बराबर साबका पड़ता है- जमींदार, महाजन, पुरोहित और सरकारी अफ़सर वगैरह, इन सबका भी चित्रण प्रेमचंद ने किया है।
किसान का अपना जीवन कैसा है, दूसरों से उसके संबंध किस तरह के हैं, इस सबका चित्रण भी प्रेमचंद करते हैं। महावीरप्रसाद द्विवेदी का 'संपत्ति शास्त्र' और 'सरस्वती' में किसानों से संबंधित उनकी टिप्पणियाँ पढ़ते हुए लगता है कि जो दुनिया प्रेमचंद के कथा साहित्य में दिखती है, उसी की छानबीन द्विवेदी जी कर रहे थे। प्रेमचंद और द्विवेदी जी का अवध से घनिष्ठ संबंध रहा, लेकिन बंकिम यहाँ से दूर बंगाल में रहते थे, वह किसानों के बारे में जो कहते रहे, उसे पढ़कर प्रेमचंद याद आते हैं। अपनी रचनाओं में प्रेमचंद ऐसी स्थिति का चित्रण कर रहे थे, जो केवल हिंदी प्रदेश के लिए नहीं, वरन् सारे भारत के किसानों के लिए सही थी। बंकिम यशस्वी उपन्यासकार हैं, लेकिन गाँवों के यथार्थ को उन्होंने अपने उपन्यासों का मुख्य विषय नहीं बनाया। यह काम प्रेमचंद ने किया। इससे उनके व्यापक राष्ट्रीय महत्त्व का बोध होता है। साधारण खाते-पीते या ग़रीब किसान का चित्रण करना आसान नहीं होता। अंग्रेजी में टॉमस हार्डी ने ग्रामीण जीवन पर अनेक उपन्यास लिखे हैं। धनी किसान पुराने ढंग से खेती करते हैं, लेकिन पूँजीवादी संबंधों के प्रसार के साथ उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है।
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