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समकालीन भारतीय साहित्य- साहित्य अकादेमी की द्वैमासिक पत्रिका वर्ष 37 अंक 186 (जुलाई-अगस्त 2016): Contemporary Indian Literature- Bimonthly Magazine of Sahitya Akademi Year 37 Issue 186 (July-August 2016)

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Item Code: HBA414
Author: Edited By Ranjit Saha
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Language: Hindi
Edition: 2016
Pages: 212
Cover: PAPERBACK
Other Details 9x6 inch
Weight 350 gm
Book Description
संपादकीय

हिंदी आलोचना का अनुशासन पर्व

भारतीय साहित्य के अन्यतम विद्वान और हिंदी समालोचना के अनन्य प्रवक्ता डॉ. नगेंद्र (1915- 1999) आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद भारतीय शास्त्र परंपरा और आलोचना के महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं। अंग्रेजी और हिंदी में एम.ए. की उपाधियाँ प्राप्त कर कॉमर्स कॉलेज, दिल्ली में दस वर्षों तक अंग्रेजी में अध्यापन एवं ऑल इण्डिया रेडियो के समाचार प्रभाग में सेवाएँ प्रदान करने के बाद डॉ. नगेंद्र हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े और वर्ष 1952 में इसके आचार्य तथा अध्यक्ष बने। आगरा विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की मानद उपाधि प्राप्त डॉ. नगेंद्र ने भारतीय साहित्य को गहरी आत्मीयता और अंतरंगता से उसकी समग्रता में देखा तथा परखा। भारतीय काव्यालोचन को उसकी परंपरा और निरंतरता के साथ उन्होंने पश्चिमी काव्य सरणियों का तात्त्विक विश्लेषण किया। उन्होंने भारतीय महाकाव्य, भारतीय साहित्य कोश, भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, तुलनात्मक साहित्य, भारतीय सौंदर्यशास्त्र एवं विश्वसाहित्य शास्त्र आदि ग्रंथों में सैद्धांतिक पद्धतियों एवं वैचारिक सरणियों के सम्यक् अनुशीलन के साथ तर्कपूर्ण विवेचन किया। अपने समकालीन, परवर्ती एवं अनुवर्ती पीढ़ियों के साहित्यकारों, अध्यापकों, आलोचकों एवं अध्येताओं के लिए चिंतन के नए गवाक्ष खोले। तीस से अधिक मौलिक कृतियों और पचास से अधिक संपादित ग्रंथों के लेखन द्वारा उन्होंने भारतीय साहित्य चिंतन प्रणाली को जहाँ अपेक्षित विस्तार दिया, वहाँ साहित्यालोचन के विभिन्न अनुशासनों को संबोधित, व्यवस्थित एवं मर्यादित भी किया।

विभिन्न सम्मानों एवं अलंकारों से समादृत पद्मभूषण डॉ. नगेंद्र भारतीय काव्य परंपरा में अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रस सिद्धांत के लिए सुविख्यात हैं, जिसे वर्ष 1965 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला। उन्होंने रसशास्त्र के साथ भारतीय सौंदर्यशास्त्र की मूल संकल्पना और उसकी अवधारणाओं को शास्त्रीय रूढ़ियों से मुक्त कर व्यापक और विकासशील रूप में काव्य का सार्वभौम सिद्धांत प्रतिपादित किया। चिंतन एवं अनुचिंतन से विकसित प्रौढ़ समालोचकीय आस्था और दृष्टि उनके सभी ग्रंथों में मिलती है।

डॉ. नगेंद्र निर्विवाद रूप से भारतीय साहित्य, विशेषकर भारतीय आलोचना साहित्य के एक सशक्त और समर्थ हस्ताक्षर हैं। अपनी सुदीर्घ साहित्यिक यात्रा में उन्होंने एक पल गँवाए बिना अध्यापन के साथ आलोचना कर्म को अपने जीवन का मिशन बना लिया था। यह उनके लिए एक तरह से चुनौती भी थी कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग को इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समकक्ष ही नहीं, बल्कि उनसे बड़ा सिद्ध कर दिखा सकें। संभवतः तब उनके सहयोगियों और विरोधियों ने इस तथ्य को प्रचारित नहीं किया हो, लेकिन डॉ. नगेंद्र ने इस अघोषित एजेंडे को हमेशा ध्यान में रखा। ऐसा करना देर-सवेर अगर संभव हो पाया तो यह केवल डॉ. नगेंद्र की कार्य क्षमता और संकल्पना के बल पर ही। इस कार्य के लिए उन्हें अपनी युवावस्था में ऊर्जा मिली थी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की अनुशंसा से उनकी आलोचनात्मक कृति सुमित्रानंदन पंत (1938) के लिए।

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