| Specifications |
| Publisher: Manav Utthan Sewa Samiti, Delhi | |
| Author Satpal Ji Maharaj | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 128 (With B/W Illustrations) | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 7.5x5.5 inch | |
| Weight 110 gm | |
| HAF278 |
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वर्ष १९७७ के प्रारम्भ में तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) में त्रिवेणी के पावन तट पर कुम्भ का महान् पर्व पड़ा था, जिस अवसर पर अपार जन-समूह एकत्रित हुआ था। सरकारी आँकड़ों के अनुसार लगभग एक करोड़ व्यक्ति इस महापर्व में सम्मिलित हए। धार्मिक आस्था और श्रद्धा इस देश के जन-मानस में कितनी गहरी और विस्तार में फैली हुई है, यह महान् पर्व उसका एक ज्वलंत उदाहरण था।
यों तो कुम्भ का यह पर्व अपने आप में ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अनेक विशिष्टताएँ रखता है, किंतु मुख्यतः धर्म ही इसकी आधार-शिला है। इस पर्व के प्रारम्भ के सम्बन्ध में समुद्र-मंथन से प्राप्त अमृत-कुम्भ की जो कथा चली आ रही है, उसके साथ-साथ इस पर्व के महत्त्व को बढ़ाने वाली सबसे बड़ी बात यह रही है कि इस अवसर पर बहुत बड़ा धार्मिक-समाज एकत्र होता रहा है जिसमें उच्च कोटि के विद्वान्, धर्माचार्य, संत-महात्मा, साधु-समाज तथा श्रद्धालु एवं जिज्ञासु जन-समूह सम्मिलित होता रहा है और इसका सदुपयोग धर्म के वास्तविक स्वरूप के मंथन एवं विवेचन में होता रहा है।
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