| Specifications |
| Publisher: Bharati Prakashan, Varanasi | |
| Author Edited By Vinod Kumar Mishra | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 258 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 300 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9789348597700 | |
| HBF591 |
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प्रस्तुत प्रकाशन जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट उ०प्र० के समाजशास्त्र, समाजकार्य एवं अर्थशास्त्र विभाग द्वारा 13 एवं 14 मार्च 2024 को आयोजित 'सतत् विकास एवं जनांकिकी संक्रमण विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किये गये पत्रों का संकलन है।
सतत् विकास एक दूरदर्शी योजना है, जो सभी नागरिको के लिए मजबूत बुनियादी ढाँचा तैयार करता है साथ ही सभी को समान अवसर प्रदान करता है, संसाधनों का आधुनिकीकरण और समावेशीत विकास इसकी प्राथमिकता है। आज मानव अपनी ही जनसंख्या बढाकर समस्याओं को जन्म दे रहा है। विकासशील देशों की जनसंख्या आकार एवं वृद्धि दर को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि निकट भविष्य में विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि दर की जो गति है उसके कारण इन देशों में भोजन, वस्त्र, आवास एवं रोजगार की समस्या विकराल रूप लेगी। विकासशील देश तीव्र गति से आर्थिक विकास हेतु प्रयासरत है। इन देशों को अपने प्रयास में सफलता भी प्राप्त हो रही है परन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या इन देशों के आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गई है।
किसी देश के सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक उत्थान में उस देश में उपलब्ध मानव संसाधन अथवा आर्थिक रूप से क्रियाशील जनसंख्या की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मानव संसाधन आर्थिक विकास का एक प्रभावकारी एवं सकारात्मक अवयब है। किसी देश के सर्वांगीण विकास के लिए वहाँ के मनुष्यों का कुशल, शिक्षित और बुद्धिमान होना आवश्यक है। अल्पविकसित देशों में क्रान्तिक कौशल, निर्णायक चार्तुथ एवं निपुणता की कमी रहती है जिसके कारण भौतिक पूँजी का समुचित कुशलता के साथ प्रयोग नहीं कर पाते है। अतः इन देशों में आज भौतिक पदार्थों पर व्यय करके आर्थिक विकास की समस्याओं को हल नही किया जा सकता है। बड़ी-बड़ी मशीने, नवीन तकनीक को आयोजित कर सकते हैं किन्तु योग्य इन्जीनियर के अभाव में कुशलता के साथ मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकते। मशीन के साथ-साथ योग्य मनुष्य का भी होना आवश्यक है जो उसे चलाता है। वर्तमान पीढ़ी को मात्र इस तथ्य से अवगत कराना पर्याप्त नही है कि परम्परागत नवीन मान्यताओं एवं विचारों को किस प्रकार नवीन स्वरूप प्रदान किया जा सकता है, बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें पूर्णतया नवीन विचारों, नवीन तकनीको एवं विधियों तथा नवीन उत्पादो के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए प्रोत्साहित किया जाय। केवल भौतिक पदार्थों पर निवेश करने से समस्याओं का समाधान नही हो सकता। भौतिक संसाधन के साथ-साथ मानव संसाधन के विकास पर भी ध्यान देना होगा। आज के युग में मानव संसाधन का विकास सतत विकास की प्रमुख शर्त एवं पूर्व आवश्यकता बन चुकी है।
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