| Specifications |
| Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur | |
| Author Ajay Patel | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 272 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 440 gm | |
| Edition: 2007 | |
| ISBN: 8188571245 | |
| HBM917 |
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प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का प्रतिपाद्य "नरेन्द्र कोहली के उपन्यासों में युग-चेतना" है। मैंने अपना अध्ययन पौराणिक उपन्यासों तक सीमित रखा है, जिससे विषय की गहराई से छान-बीन की जा सके। नरेन्द्र कोहली भारतीय अस्मिता और भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव रखने वाले आधुनिक रचनाकार हैं। एक रचनाकार के रूप में उनका उद्देश्य है - पाठकों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराना तथा संस्कारों के धरातल पर जीवन के विवेक और कर्तव्यबोध से संपृक्त कराना। रामकथा और महाभारत-कथा की घटनाओं का तर्क संगत, बुद्धिवादी, समाजशास्त्रीय, राजनीतिक और ऐतिहासिक विश्लेषण कर उन्हें युगीन संदर्भों से जोड़ने में कोहली जी सफल सिद्ध हुए हैं। कोहली जी ने अपने युग की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक समस्याओं की गुत्थियों को पौराणिक घटनाओं एवं चरित्रों के माध्यम से उद्घाटित करने और सुलझाने का सार्थक प्रयास किया है।
कोहली जी के पौराणिक उपन्यासों के स्वतन्त्र रूप से विवेचन-विश्लेषण का अभी तक कोई ठोस प्रयत्न नहीं हुआ है। अतः मुझे अपने शोध-प्रबन्ध के लिए इस विषय का चयन उचित प्रतीत हुआ। कोहली जी के पौराणिक उपन्यासों में निरूपित युग-चेतना के विस्तृत विवेचन के साथ-साथ उनके शिल्पगत वैशिष्ट्य का विवेचन-विश्लेषण करना भी प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का उद्देश्य रहा है। इस अध्ययन को सात अध्यायों में विभक्त किया गया है।
प्रथम अध्याय में नरेन्द्र कोहली के जन्म और जीवन सम्बन्धी तथ्यों का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया गया है। नरेन्द्र कोहली की बहुमुखी प्रतिभा एवं प्रखर व्यक्तित्व सम्बन्धी उपलब्ध तथ्यों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। इसी अध्याय में कोहली जी के प्रकाशित साहित्य का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। साथ ही कोहली जी के पौराणिक उपनयासों का वस्तुगत परिचय प्रस्तुत किया गया है।
द्वितीय अध्याय में 'युग-चेतना' शब्द के अर्थ एवं स्वरूप की चर्चा करते हुए साहित्य और युग-चेतना का सम्बन्ध स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। युग-चेतना का परम्परा और परिवेश दोनों से निकट का सम्बन्ध है। इस अध्याय के अन्तर्गत उपन्यास में युगचेतना के विशिष्ट महत्त्व पर प्रकाश डालने का नम्र प्रयास किया गया है। साहित्य-विधा के रूप में उपन्यास मानव जीवन के निकटतम होने से समाज जीवन को अपेक्षाकृत अधिक यथार्थता से प्रस्तुत कर सकता है। उपन्यास और समाज शीर्षक के अन्तर्गत राजनीति, धर्म एवं संस्कृति जैसे पहलुओं पर भी विचार किया गया है।
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