यदि विश्वास जड़ हो जाए तो कला भी जीवन्त नहीं रहती। जड़ विश्वास यह है कि रंग और रेखा बोलते नहीं और आँखों से सुना नहीं जा सकता, लेकिन अनुभव यह कहता है कि रंग और रेखा वाचाल होते हैं तथा आँखें उनके संवाद को सुनती हैं। आँखों का यही सुनना बाद में देखना हो जाता है, रंग और रेखा का संवाद, रूप की ऐसी देह बन जाती है, जिसके कंठ से रूपायन की कहानी झरने लगती है, तब भीमबैठका से लेकर अजन्ता और बाघ की मित्तियाँ इस कथा पाठ की मुखर मंच बन जाती हैं। इसलिए इतिहास के गलियारे में ऐसे मुखर मंच तब से सजते रहे हैं, जब से मनुष्य की संवेदना ने अपनी आँखें खोलीं। भित्तियों की गवाही से कहें तो रूपायन की यह कहानी पाषाण युग के पूर्व से आरंभ होती है और फिर इसकी यात्रा कभी विराम नहीं लेती। भित्तिचित्रों की इस यात्रा का साक्षी होना भी इस यात्रा में साझीदारी करने की तरह है, क्योंकि इन्हें निहारते-निहारते आप स्वयं उस युग का अंग बन जाते हैं।
मुझे सौभाग्य मिला इस यात्रा की साझीदारी करने का। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग ने मुझे यह दायित्व सौंपा कि मैं मालवा के भित्तिचित्रों का सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण करूँ। यह कार्य पहले कभी समग्र रूप में नहीं हुआ। बरसों पहले मालवा की चित्रांकन परम्परा पर सर्वप्रथम विस्तृत शोध कार्य करने वाले प्रख्यात कला इतिहासकार स्व. राय आनन्दकृष्णजी ने तथा भारतीय चित्रांकन परम्परा के विलक्षण मनीषी डॉ. रॉबर्ट स्केल्टन ने मुझसे यह आग्रह किया कि मालवा की इस भित्ति चित्रांकन परम्परा का अध्ययन मुझे करना चाहिए। इसी बीच प्रख्यात संस्कृतिविद तथा भारतीय कला के प्रख्यात मनीषी डॉ. हर्ष दहेजिया जी जो कार्लटन विश्वविद्यालय ओटावा, कनाडा में भारतीय संस्कृति विभाग के विभागाध्यक्ष हैं, ने मुझसे यह आग्रह किया कि मध्यप्रदेश की भित्तिचित्र परम्परा पर मैं उनके साथ कार्य करूँ। इसी कड़ी में हम दोनों ने अंग्रेजी में बुन्देलखण्ड की चित्रांकन परम्परा का एक सर्वेक्षण भी प्रकाशित किया।
मध्यप्रदेश की भित्तिचित्र परम्परा का अध्ययन अपने आपमें बड़ा रोचक विषय है। यहाँ चौथी-पाँचवीं सदी में बनी बाघ की गुफाओं के अंकन से भित्तिचित्रों की परम्परा के प्रमाण मिलते हैं। बाद में एक लम्बा अन्तराल है, इसका कारण भित्तिचित्रों का निर्माण न होना नहीं है, अपितु उनका नष्ट हो जाना है। फिर भी जो भित्तिचित्र मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में उपलब्ध हैं, वे इस समृद्ध परम्परा के अनूठे साक्ष्य हैं तथा मालवा इस दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंचल है।
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