| Specifications |
| Publisher: Adivasi Lok Kala Evam Boli Vikas Academy And Madhya Pradesh Cultural Institution | |
| Author Edited By Kapil Tiwari | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 286 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.5x7 inch | |
| Weight 630 gm | |
| Edition: 2010 | |
| HBL706 |
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लोक समाजों के साथ जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक परम्परा में भी फाग गीत, संगीत और नृत्य परम्परा है। लेकिन जनजातीय फाग रचना किस अर्थ में लोक समाजों से अलग और विलक्षण है?
वास्तव में लोक समाजों में फाग 'बारहमासा' लोक रचना का भाग है और यह पौराणिक संदर्भ लिए एक पर्व से जुड़ी परम्परा है, जबकि जनजातीय समुदायों की फाग रचना का संदर्भ मूलतः 'प्रेम और श्रृंगार' पर केन्द्रित है, जिसमें सारे जीवन के विविध पक्ष-प्रकृति, वन, वृक्ष, फसलों, पशु, हाट, आसपास के प्रमुख नगर, वस्तुएँ आदि सभी समाहित होते हैं। वह श्रृंगार और प्रेम की भूमि पर जीवन की समग्रता का आकाश है, जिसमें जनजातीय गीति रचना की फाग गूँजती है।
वह वर्जनाहीन और उद्दाम वेग में रची गयी है अधिकांश फाग गीतों में एक विचित्र सी तात्कालिकता है। ऐसा लगता है, जैसे एक विशेष स्थिति, दृश्य और घटना में यह गीत तुरन्त बनाया गया है- वह किसी चली आती परम्परा का 'स्मरण गान' न होकर अभी और इसी क्षण जन्मी 'परम्परा' जैसा हो।
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